घोघा बाजार में 131 वर्ष पुराना है सरस्वती पूजा का इतिहास

ग्राम देवी के रूप मे पूजी जाती हैं सरस्वती माता चार दिवसीय अखाड़ा का होता है आयोजन, लगता है भव्य मेला घोघा : कहलगॉव व नाथनगर विधान सभा क्षेत्र के बीच स्थित पीरपैंती विधान सभा क्षेत्र अंतर्गत घोघा बाजार में सरस्वती पूजा का इतिहास 131 वर्ष पुराना है. यहां मां सरस्वती को ग्राम देवी के […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 12, 2016 6:51 AM

ग्राम देवी के रूप मे पूजी जाती हैं सरस्वती माता

चार दिवसीय अखाड़ा का होता है आयोजन, लगता है भव्य मेला
घोघा : कहलगॉव व नाथनगर विधान सभा क्षेत्र के बीच स्थित पीरपैंती विधान सभा क्षेत्र अंतर्गत घोघा बाजार में सरस्वती पूजा का इतिहास 131 वर्ष पुराना है.
यहां मां सरस्वती को ग्राम देवी के रूप में पूजते हैं. सरस्वती पूजा के अवसर पर हर वर्ष यहां चार दिवसीय अखाड़े का आयोजन किया जाता है. कई जिलों के अलावा सीमावर्ती राज्य से पहलवान आते हैं.
कहते हैं ग्रामीण : कृषि वैज्ञानिक घाघ भंडारी के नाम पर यहां का नाम घोघा पड़ा. घोघा बाजार कभी सैनिक छावनी हुआ करता था. यहां सीमावर्ती पश्चिमी जिले व राज्यों से व्यवसायियों का आना जाना होता था. बाद में व्यवसायी यहां स्थायी रूप से बस गये. वर्ष 1885 मे व्यवसायियों ने यहां रामजानकी मंदिर की स्थापना की. इसे पांच साल बाद वर्ष 1891 मे सरस्वती मंदिर की स्थापना हुई. इसके साथ ही यहां हर साल सरस्वती पूजा शुरू हुई.
अखाड़े व सरस्वती मेला के अग्रदूत : काशीनाथ दुबे, हरिलाल श्रीवास्तव, द्वारका नाथ चौधरी, राधिका चौधरी व देवनारायण दुबे स्थापना काल के अग्रदूत थे. इन्ही लोगों ने विचार-विमर्श कर यहां ग्राम देवी के रूप मे माता सरस्वती का मंदिर स्थापित करने का निर्णय लिया. सर्वसम्मत्ति से 1891 मे बांस व खर से मंदिर का निर्माण कर प्रतिमा स्थापित की गयी. वर्ष 1991 में सौ साल पूरा होने पर खर व बांस के मंदिर को हटा कर, भव्य मंदिर का निर्माण कराया गया.

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