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और कितना आगे जाओगे, बहुत पीछे रह गये मां-बाप

’68 साल पहले पंडित स्मृति नाथ मिश्र की बहू और सावित्री मिश्रा की देवरानी बन कर भागलपुर आयी थीं संध्या मिश्रा. भले ही एक कोख से नहीं जन्मीं, पर दोनों के बीच की मोहब्बत अब भी जवां है. इतने साल साथ रहे, लेकिन आपस में कभी भौं नहीं चढ़े. कई प्रतिकूल परिस्थितियां देखीं, लेकिन पांच […]

’68 साल पहले पंडित स्मृति नाथ मिश्र की बहू और सावित्री मिश्रा की देवरानी बन कर भागलपुर आयी थीं संध्या मिश्रा. भले ही एक कोख से नहीं जन्मीं, पर दोनों के बीच की मोहब्बत अब भी जवां है. इतने साल साथ रहे, लेकिन आपस में कभी भौं नहीं चढ़े. कई प्रतिकूल परिस्थितियां देखीं, लेकिन पांच संतानों को पाल-पोष कर मुकाम तक पहुंचाने की जिद न छोड़ीं.

बड़ी के कदमों में पूर्व मुख्यमंत्री भागवत झा आजाद भी झुका करते थे, तो आज भागलपुर आने पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी दोनों के चरण स्पर्श किये बगैर लौट नहीं पाते. ऐसी शख्सीयत आज इस बात से दुखी हैं कि कई घर ऐसे हैं, जहां सिर्फ मां-बाप इसलिए बच गये हैं कि उनके बच्चे आज बहुत आगे निकल चुके हैं.’

भागलपुर : स्वतंत्रता सेनानी स्व निशि कांत मिश्रा की धर्मपत्नी संध्या मिश्रा (85 वर्ष) और स्व निशि कांत मिश्रा के बड़े भाई स्वतंत्रता सेनानी सह पत्रकार स्व गोपाल कृष्ण मिश्रा की धर्मपत्नी सावित्री मिश्रा (91 वर्ष) आज परिवार के टूटन के दौर में समाज के लिए प्रेरणा स्रोत से कम नहीं. दोनों रिश्ते में जेठानी-देवरानी हैं, पर देवरानी को हमेशा जेठानी के साथ बड़ी बहन की तरह दुलार मिला, तो देवरानी से जेठानी को बड़ी बहन से भी बढ़ कर सम्मान. दिलचस्प बात है कि उनका खाना-पीना साथ-साथ होता है, तो बीमार भी अकेले नहीं पड़तीं. हाल में भी दोनों बीमार पड़ी और पटना के एक अस्पताल में अगल-बगल के बेड पर भरती हुईं. अब स्वस्थ हैं.
दोनों जेठानी-देवरानी ने गुलाम भारत का जख्म देख-महसूसा, तो आजाद देश में खुशियां पाने के सपने भी बुनीं. लेकिन देश को जिस परिवार ने केवल देना सीखा था, आजादी के बाद भी उनका संघर्ष से पीछा नहीं छूटा. संध्या मिश्रा बताती हैं कि बहुत जतन किये. बच्चे छोटे-छोटे थे. उन्हें पालना और पति को अंगरेजों की जेल में मिली प्रताड़ना के कारण आंखों की बुझती जा रही रोशनी को बचाना संघर्ष से कम नहीं था. पहले कोलकाता, फिर दिल्ली और इस दौरान सीतापुर के अस्पतालों में लंबे इलाज से केवल आस दिख रही थी. 1968 में लगा जैसे जीवन में अंधेरा छा गया हो,
जब पति (निशि कांत मिश्रा) की दूसरी आंखों की रोशनी भी चली गयी, लेकिन सिर रखने के लिए जेठानी ने अपने कंधे कभी झुकने नहीं दिये. आखिरकार उन दोनों ने जिंदगी की जंग जीती और पुत्र डॉ उदय कांत मिश्र (इंजीनियर), डॉ रवि कांत मिश्र (पैथोलॉजिस्ट), राजीव कांत मिश्र (शिक्षाविद) की कामयाबी ने उनके आंचल खुशियों से भर दी. खास बात यह कि दोनों बहुएं आज भी इसके पीछे की ताकत अपने ससुर पंडित स्मृति नाथ मिश्र और सास जया के आशीष को बताती हैं. इसी कारण तो काली चरण मिश्रा लेन में अपने घर का नाम जेएस भवन रखा.
तब की राजनीति में स्वार्थ नहीं था
अरेंज मैरेज और लव मैरेज में बेहतर क्या. इस सवाल पर दोनों का मंतव्य समान था. कहती हैं कि किसी लड़की को 10 लड़केवाले देखने आते हैं और रिजेक्ट कर चले जाते हैं. यह कतई उचित नहीं है. उस दौरान लड़की पर क्या गुजरता है, इसे कोई महसूस नहीं कर सकता. आज की पढ़ी-लिखी लड़की समझदार हो गयी हैं.
जात-बिरादरी का बंधन टूट चुका है. वह अगर लव मैरेज करना चाहते हैं, तो माता-पिता को इनकार नहीं करना चाहिए. इसे स्वीकारना चाहिए. सावित्री मिश्रा सवालिया लहजे में कहती हैं कि जब 32 गुणों का मिलान किया जाता था, तब लड़की को चूल्हा फूंकने के इतर जीवन में मिलता ही क्या था. आज वह अपनी जिंदगी जीना चाह रही, तो रोक-टोक क्यों.
कहती हैं जवाहरलाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन, इंदिरा गांधी, विनोबा भावे, मदर टेरेसा से मिल चुकी हैं. इनमें कई महापुरुष तो इनके घर भी आ चुके हैं. पूर्व मुख्यमंत्री भागवत झा आजाद घर के सदस्य के रूप में थे. आज की राजनीतिक परिदृश्य पर कहती हैं कि तब के राजनीतिज्ञ सीधे-साधे होते थे. उनमें स्वार्थ नहीं होता था. आज के राजनीतिज्ञों में स्वार्थ ज्यादा है. लेकिन फिर कहती हैं कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सेवा को तवज्जो देते हैं. वो कहती हैं कि शराबबंदी हुई है, अच्छी बात है. लेकिन इसे जनता को स्वीकारना होगा,
तभी यह अभियान सफल होगा. खुद के परिवार पर सवाल सुन खिली-खिली सी दिखने लगी. कहने लगीं, आज उनकी तीन बहुओं ने जिस तरह प्यार दिया है, उसकी तारीफ सहजता से नहीं की जा सकती. लेकिन समाज में टूटते संयुक्त परिवार के सवाल पर दुखी हो जाती हैं और सावित्री देवी कहती हैं कि आज के विचार जुदा हैं,
लेकिन उन्हें यह समझना चाहिए कि संयुक्त परिवार का आनंद दुनिया के किसी महफिल में भी नहीं मिल सकता. संध्या मिश्रा कहती हैं कि संयुक्त परिवार में बच्चों में संस्कार पलता है. आज जो बच्चे जहां पढ़ने जाते हैं, वहीं नौकरी कर लेते हैं और शादी कर वहीं शिफ्ट हो जाते हैं. इस दौड़ में उन्हें याद भी नहीं रहता कि हर दिन बेटे-बेटियों को दुलारने के लिए मां-पिता किस तरह पल-पल तड़पते हैं. ऐसे मां-पिता को अकेले देख टीस उठती है.

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