कलम के जादूगर थे पंचकौड़ी बनर्जी

स्मृति. भागलपुर के पंचकौड़ी ने अंतरराष्ट्रीय स्तर की पत्रकारिता में फूंकी थी जान भागलपुर में जनमे थे. जिला स्कूल में पढ़ाई करने के बाद विभिन्न शहरों में ज्ञानार्जन किया. बड़े-बड़े ज्ञानियों में उनकी गिनती होने लगी. विविध भाषाओं पर उनकी पकड़ थी. पत्रकारिता के क्षेत्र में उनका सानी नहीं था. पत्रकारिता का उन्हें प्रकाश स्तंभ […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 10, 2016 6:52 AM

स्मृति. भागलपुर के पंचकौड़ी ने अंतरराष्ट्रीय स्तर की पत्रकारिता में फूंकी थी जान

भागलपुर में जनमे थे. जिला स्कूल में पढ़ाई करने के बाद विभिन्न शहरों में ज्ञानार्जन किया. बड़े-बड़े ज्ञानियों में उनकी गिनती होने लगी. विविध भाषाओं पर उनकी पकड़ थी. पत्रकारिता के क्षेत्र में उनका सानी नहीं था. पत्रकारिता का उन्हें प्रकाश स्तंभ कहा जाता था. ऐसी महान शख्सीयत को आज उनके ही घर भागलपुर में याद करनेवाला कोई नहीं.
भागलपुर : भागलपुर में जन्मे पंचकौड़ी बनर्जी ने विश्व स्तर की पत्रकारिता में जान फूंकी थी. क्षेत्रीय स्तर की पत्रकारिता में प्रवेश कर राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय फलक पर अपनी पहचान बनायी, लेकिन भागलपुर में प्राय: सभी उनको भूल चुके हैं. चूंकि न कहीं उनकी प्रतिमा लगायी गयी और न ही उन्हें याद करने के लिए कोई कार्यक्रम होते हैं, ऐसे में इस कलम के जादूगर को भागलपुर पूरी तरह से भूल चुका है.
जिला स्कूल में की थी पढ़ाई : इतिहासकार डॉ रमन सिन्हा द्वारा लिखित पुस्तक भागलपुर : अतीत एवं वर्तमान में बताया गया है कि पंचकौड़ी बनर्जी का जन्म 20 दिसंबर 1866 में भागलपुर में हुआ था. पश्चिम बंगाल के हालिसहार निवासी पंचकौड़ी जी के पिता बेनी माधव बनर्जी थे. बेनी माधव भागलपुर में एक सरकारी कर्मचारी हुआ करते थे. पंचकौड़ी जी की शिक्षा-दीक्षा भागलपुर के जिला स्कूल से हुई. पढ़ाई के बाद वर्ष 1887 में पटना कॉलेज से संस्कृत ऑनर्स की डिग्री ली. बनारस से साहित्याचार्य की डिग्री भी पायी.
उर्दू व पर्सियन पर भी थी पकड़ : संस्कृत के अलावा उन्होंने हिंदी, अंगरेजी, उर्दू सहित पर्सियन भाषा का भी ज्ञान प्राप्त किया था. वर्ष 1895 में बंगवासी समाचारपत्र में कॉलम लिखना शुरू कर पत्रकारिता के क्षेत्र में कदम रखा. बंगाल में ही प्रकाशित अंगरेजी दैनिक टेलीग्राफ के संपादक भी बने. 1899 में कांग्रेसी पत्रिका वसुमति की कमान उन्हें दी गयी, लेकिन 1901 में उन्होंने उस पत्रिका को छोड़ दिया. उनके गुरु इंद्रनाथ बंदोपाध्याय की विशेष कृपा उन पर थी. ब्रह्मवांधव उपाध्याय द्वारा संपादित दैनिक संध्या सहित रंगालय में भी वे लिखते थे.
बंगाल पब्लिसिटी बोर्ड में अनुवादक भी रहे
1908 के हिताब्दी दैनिक के संपादक बने. इसके बाद वे हिंदी दैनिक भारत मित्र, 1918 में वे बंगाल पब्लिसिटी बोर्ड में बंगाली अनुवादक नियुक्त किये गये. 1922 में दैनिक स्वराज, नायक के लिए भी लिखा. इसके अलावा फ्रांसिस ग्लाइवन अनुवादित आइने-अकबरी, श्रीश्री चैतन्य चरितमित्र, रूपलहरी, सिपाहीर, युद्धेर इतिहास, विंगसा शताब्दीर महाप्रलय, धर्म प्रचारक पुस्तक की रचना की. पंचकौड़ी बनर्जी के बारे में यह उल्लेख एसपी सेन द्वारा संपादित व इंस्टीट्यूट ऑफ हिस्टोरिकल स्टडीज, कलकत्ता द्वारा प्रकाशित डिक्शनरी ऑफ नेशनल बायोग्राफी (वाल्यूम – ए डी, 1972) में भी किया गया है.

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