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60-70 की उम्र में युवाओं सा उत्साह, फिक्र पूरे जहान की

भागलपुर : शहर में बुजुर्गों की यह अनोखी टोली है. इसमें भागलपुर शहर के कमोबेश हर इलाके से एक-दो बुजुर्ग जुड़े हुए हैं. इनकी बराबरी में विरले कोई टोली मिले, जो एक वर्ष में 250 से अधिक आयोजन करती हो और वह भी अलग-अलग विषयों पर. इनके कार्यक्रम में कोई तामझाम नहीं होता, बिल्कुल सादगी […]

भागलपुर : शहर में बुजुर्गों की यह अनोखी टोली है. इसमें भागलपुर शहर के कमोबेश हर इलाके से एक-दो बुजुर्ग जुड़े हुए हैं. इनकी बराबरी में विरले कोई टोली मिले, जो एक वर्ष में 250 से अधिक आयोजन करती हो और वह भी अलग-अलग विषयों पर. इनके कार्यक्रम में कोई तामझाम नहीं होता, बिल्कुल सादगी समेटे हुए.

इसके लिए दीप, मोमबत्ती, दियासलाई, कार्यक्रम से संबंधित तसवीरें, बैनर आदि हर वक्त तैयार रखते हैं. नेपालीजी की जयंती हो, तो इनके अंदर गीतकार की भावना जाग उठती है. गणेश शंकर विद्यार्थी की जयंती हो, तो ये पत्रकारिता के भविष्य के लिए चिंतक के रूप में मुखर होते हैं. यही नहीं, पर्यावरण दिवस पर पर्यावरण के संरक्षण के लिए प्रेरक की भूमिका में दिखते हैं. यह सब शहर के विभिन्न इलाकों में जाकर ही नहीं, बल्कि अधिकतर आयोजन मंदरोजा में एक छोटे से कमरे में करते हैं.

जीवन के चौथे पड़ाव पर नायाब तरीके से जिंदगी जी रहे इस टोली में शामिल बुजुर्गों के कार्यों का उद्देश्य काफी गंभीर अर्थ लिये हुए है. ये दुखी हैं उन युवाओं से, जो अपने बुजुर्ग-लाचार माता-पिता को दुत्कारते, घर से बाहर निकाल देते हैं. ये खफा हैं समाज के उन वर्गों से, जो दिखावे के कार्यक्रम की आड़ में जेबें गरम करते हैं.
बुजुर्गों का कहना है कि भले ही उनके कार्यक्रम में कोई तामझाम नहीं होता, भारी भीड़ नहीं जुटती. लेकिन मकसद एक ही है कि युवाओं के अंदर जगे सामाजिक सरोकार की भावना. हर लोग के दिलों में महापुरुषों के प्रति सम्मान हो. अपने कार्यक्रमों के जरिये महापुरुषों की जयंती व पुण्यतिथि मनाते हैं और बताते हैं कि इनका सम्मान क्यों जरूरी है. आगाह करते हैं युवाओं को कि उन महापुरुषों को मत भूलो, जिन्होंने भागलपुर को भी महत्वपूर्ण योगदान दिया हो. सतर्क करते हैं नयी पीढ़ी को कि सम-सामयिक घटनाओं के दौरान जगे रहो ताकि समाज उसकी आग में झुलस न जाये. इनकी कही बातें दूर तलक पहुंच सके, इसके लिए ये अखबारों का सहारा लेते रहे हैं.
कैसे-कैसे बुजुर्ग जुड़े हैं
चंपानगर में किताबों की एक छोटी सी दुकान चलानेवाले और घरों-घरों में जाकर ऑर्डर पर किताब बेचनेवाले 50 वर्षीय जगतराम साह कर्णपुरी आर्थिक रूप से काफी कमजोर हैं. वे बताते हैं कि एक दौर था जब महापुरुषों की जयंती-पुण्यतिथि खाली-खाली बीत जाती थी. यह बातें टीस देती थीं. फिर स्वाभिमान नाम से संस्था शुरू किया. आज कई संस्थाओं से जुड़ कर कार्यक्रमों के जरिये समाज में चेतना भरने का प्रयास करते हैं. 70 वर्षीय आत्माराम बाजोरिया कवि हैं और उर्दू बाजार में रहते हैं.
वार्ड पार्षद भी रहे हैं. वृद्धाश्रम के कांसेप्ट पर गुस्सा जाते हैं और कहते हैं कि क्यों नहीं युवाओं में वह संस्कार भरने की पहल हो, जिससे कि वृद्धाश्रम खोलने की नौबत ही न आये. मारवाड़ी पाठशाला से सेवानिवृत्त प्रधानाध्यापक मौर्या कॉलोनी निवासी डॉ अशोक कुमार यादव, सिंदरी के एक फर्टिलाइजर कंपनी से रिटायर काजवलीचक निवासी 74 वर्षीय विष्णु मंडल, अलीगंज निवासी व सेवानिवृत्त शिक्षक 74 वर्षीय नरेश ठाकुर निराला, मायागंज निवासी व सरकारी विभाग से सेवानिवृत्त 72 वर्षीय हरि प्रसाद गोप, 50 वर्ष के सत्येन भास्कर साहित्य से जुड़े हुए हैं. श्री कर्णपुरी ने बताया कि कपिल देव कृपाला, डॉ अमरीका सिंह, रंजन कुमार राय, प्रेम कुमार सिंह, कपिलदेव रंग, गौतम अंजाना आदि भी इस टोली से जुड़े हुए हैं. अलीगंज के अजय शंकर प्रसाद, सराय चौक के केशव कुमार श्रीवास्तव व मंदरोजा के मृत्युंजय कुमार साह जैसे युवा भी जुड़े हुए हैं. ये लोग एक से अधिक संस्थाओं से जुड़े हैं. इनमें साहित्य सफर, स्वाभिमान, चंपा सांस्कृतिक मंच, गांधी शांति प्रतिष्ठान, काव्ययात्रा, फ्रेंड्स ऑफ तिलकामांझी, सहकार भारती, कल्याण जगत आदि शामिल हैं.
दर्जन भर बुजुर्गों की नायाब टोली के जीने का अनूठा तरीका
कई संस्थाओं से जुड़ कर एक वर्ष में 250 से अधिक कार्यक्रमों का करते हैं आयोजन
जीवन के चौथे पायदान पर समाज में फूंक रहे युवा जोश
क्या-क्या करते हैं
हर साल तुलसी जयंती व हिंदी दिवस का पखवाड़ा मनाते हैं
200 से अधिक महापुरुषों की जयंती-पुण्यतिथि मनाते व संगोष्ठी आयोजित करते हैं
होली व नववर्ष मिलन समारोह मनाते हैं
उत्तराखंड त्रासदी की बरसी मनाना नहीं भूलते
गीता जयंती पर गीता व हनुमान जयंती पर हनुमान चालीसा वितरित करते हैं
साहित्य सफर संस्था के स्थापना दिवस पर तीन साहित्यकारों को देते हैं सम्मान
नेपालीजी की जयंती पर तीन साहित्यकारों को करते हैं सम्मानित
इनके संबंधों में ऐसी है मिठास
कोई बीमार हो जाये, तो हाल-चाल लेने पहुंचते हैं
हमेशा एक-दूसरे की हिम्मत बने रहते हैं हर कोई
अपने-अपने इलाके के सुख-दुख पर भी करते हैं चर्चा

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