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रोज एक लाख से अधिक कांवर की होती है बिक्री

सुलतानगंज : श्रावणी मेला में इस बार कांवरिया नेपाल व बंगाल के बांस से बने कांवर में भी गंगा जल उठायेंगे. बिहार के कई जिले के कारीगर भी कांवर बनाने में जुट गये हैं. मेला में प्रतिदिन एक लाख से अधिक कांवर की बिक्री सामान्य तौर पर होती है. शाहाबाद के कांवर व्यवसायी धनेश्वर साह […]

सुलतानगंज : श्रावणी मेला में इस बार कांवरिया नेपाल व बंगाल के बांस से बने कांवर में भी गंगा जल उठायेंगे. बिहार के कई जिले के कारीगर भी कांवर बनाने में जुट गये हैं. मेला में प्रतिदिन एक लाख से अधिक कांवर की बिक्री सामान्य तौर पर होती है. शाहाबाद के कांवर व्यवसायी धनेश्वर साह बताते है कि अब तक मेला में दो लाख से अधिक कांवर आपूर्ति के लिए दुकानदारों का ऑर्डर मिला है.

कांवर के मूल्य में इस बार प्रशासनिक स्तर पर बढ़ोतरी नहीं किये जाने के कारण दुकानदारों को थोड़ी परेशानी उठानी पड़ेगी. दुकानदार बताते हैं कि पिछले वर्ष सामान्य कांवर 25 से 30 रुपये में थोक भाव में आपूर्ति होती थी. इस बार 30 से 35 रुपये में आपूर्ति हो रही है. पिछले वर्ष की दर पर कांवर बेचना मुश्किल होगी. मेला के दौरान सुलतानगंज में करोड़ों के आसपास कमाई होती है.

आठ प्रकार के बांस से बनते है कांवर : मेला में उत्तर बिहार सहित नेपाल व बंगाल से आने वाले कांवरियों के लिए हरौती बांस से बने कांवर आकर्षण का केंद्र होता है. झारखंड, ओडिशा, यूपी के कांवरिया पहाड़ी बांस से बने कांवर ज्यादा पसंद करते हैं. आठ किस्म के बांस से कांवर बनाने का कारोबार सुलतानगंज में फिलहाल हो रहा है. दुकानदार बताते है कि पहाड़ी, हरौती, चाब के अलावा कई अन्य किस्म के बांस से कांवर की मजबूती अधिक होती है.
बांस की कमी से कारोबार हो रहे हैं प्रभावित
कांवर बनाने के लिए बांस की आपूर्ति पर्याप्त मात्रा में नहीं होने से व्यवसायी चिंतित है. बांस की आपूर्ति में बढ़ोतरी जल्द नहीं हो पायी तो मेला में कांवर का संकट भी उत्पन्न होने की संभावना व्यक्त किया जा रहा है. व्यवसायियों का कहना है कि 30 हजार से अधिक बांस की आपूर्ति प्रतिदिन होगी तो मेला के पूर्व बाजार में पर्याप्त मात्रा में कांवर उपलब्ध हो पायेगा. फिलहाल बांस की आपूर्ति आठ दिन में एक दिन ही हो पा रही है. व्यवसायी बताते है कि बंगाल व नेपाल से बांस लाने में आठ दिन से अधिक समय गुजर जाते हैं. अधिक खर्च पर बांस की आपूर्ति हो रही है. कांवर बनाने में जुटे कारीगर बताते है कि पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष कांवर बनाने के लिए अधिक रोजगार नहीं मिल पा रहा है. कारीगर अधिक होते है. बांस की कमी के कारण सभी को रोजगार नहीं मिल पा रहा है.

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