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घंटा व अजान की जुगलबंदी पर जागता है सुलतानगंज

भागलपुर : एक नगर, जहां गंगा मैया के आंचल पर पूरा देश उतरना चाहता है. एक नगर, जिसके दायीं ओर खुदा की इबादत होती है, तो बायीं तरफ फूल, जल और बेलपत्र से पूजा-अर्चना की जाती है. पौराणिक समृद्धि और पुरातात्विक संपदा को खुद में समेटे हुए. जो नगरी सौहार्द का अनूठा पैगाम पूरे देश […]

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भागलपुर : एक नगर, जहां गंगा मैया के आंचल पर पूरा देश उतरना चाहता है. एक नगर, जिसके दायीं ओर खुदा की इबादत होती है, तो बायीं तरफ फूल, जल और बेलपत्र से पूजा-अर्चना की जाती है. पौराणिक समृद्धि और पुरातात्विक संपदा को खुद में समेटे हुए. जो नगरी सौहार्द का अनूठा पैगाम पूरे देश को सुनने के लिए बुलाती है, वह सुलतानगंज आज एक बार फिर दोनों बाहें पसारे दुनिया भर के लोगों का स्वागत कर रहा है.

यहां अगले दो माह तक हर गलियों में कांवरों की रुनझुन सुनाई देती रहेगी. सुबह-सुबह बजता है अजगैवीनाथ का घंटा और गूंजती है शाही मसजिद में अजान, तो जागता है सुलतानगंज. यह शहर हिंदू व मुसलिम के लिए जितना महत्वपूर्ण है, बौद्ध पुरावशेषों के लिए भी उतना ही विख्यात है.

किसी ने ऐसे ही माहौल को देख लिखा होगा…
गूंजे कहीं पे शंख कहीं पर अजान है,
बाइबिल है ग्रंथ साहब है गीता कुरान है.
दुनिया में कहीं और ये मंजर नहीं नसीब,
दिखलाओ दुनिया वालों को यह हिंदुस्तान है.
तरह-तरह के बम, विविध प्रकार के संघ
हर साल यहां लगनेवाला श्रावणी मेला शुरू हो चुका है और यहां देश-विदेशों से श्रद्धालुओं-कांवरियों का जत्था पहुंचने लगा है. हर जत्थे का कोई न कोई नाम. यह जरूरी नहीं कि जत्थे में किसी एक परिवार के ही लोग हों. जत्थे में न जाति का भेद, न ऊंच-नीच की दूरी. हर कोई घर से बाबा नगरी के लिए निकलता है और उनका एक ही नाम हो जाता है…बम. कोई नाटू बम, कोई मोटू बम, कोई दादा बम, तो कोई चाचा बम. जत्थे का नाम भी अध्यात्म को इंगित करता हुआ. कोलकाता काशीपुर स्थित रामलीला बागान के डैडी कांवरिया संघ, हावड़ा का नौगांव कांवरिया संघ, असम का असम कांवरिया संघ, दरभंगा का बाबा भूतनाथ कांवरिया संघ, पटना सिटी का आशुतोष कांवरिया संघ, सीतामढ़ी का पार्वती कांवरिया संघ.
मन्नत पूरी हुई, तो और बढ़ गयी आस्था
गुजरात से आये मृणाल ने बताया कि मन्नत पूरी होने के बाद आस्था और भी बढ़ गयी है. काफी अच्छा लगता है यह तीर्थयात्रा करने में. सुलतानगंज से बाबाधाम तक पैदल चलने का अपना ही मजा है. यह तो बाबा की कृपा है कि लोग उनके धाम तक खींचे चले जाते हैं. शुरू में भीड़ कम होती है, इसलिए पहले ही पहुंच गये.

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