फिर एक बार चौबे गुट का दबदबा कायम
भागलपुर : रविवार को भाजपा नगर अध्यक्ष चुनाव में एक बार फिर अश्विनी कुमार चौबे गुट का दबदबा कायम हो गया और यह तय हो गया कि अभी भी भागलपुर के संगठन में अश्विनी कुमार चौबे को सभी मानते हैं. इस विधान सभा चुनाव में चौबे के बेटे अर्जित शाश्वत के प्रत्याशी बनाये जाने का […]
By Prabhat Khabar Digital Desk |
August 15, 2016 7:41 AM
भागलपुर : रविवार को भाजपा नगर अध्यक्ष चुनाव में एक बार फिर अश्विनी कुमार चौबे गुट का दबदबा कायम हो गया और यह तय हो गया कि अभी भी भागलपुर के संगठन में अश्विनी कुमार चौबे को सभी मानते हैं. इस विधान सभा चुनाव में चौबे के बेटे अर्जित शाश्वत के प्रत्याशी बनाये जाने का पार्टी में जमकर विरोध हुआ था और पार्टी के इसी विरोध के कारण पार्टी प्रत्याशी की हार हुई थी.
लेकिन इस चुनाव में पार्टी का वोट बड़ा था. इस चुनाव में अभय कुमार घोष ने पार्टी प्रत्याशी के पक्ष में जितनी मेहनत की थी, उसी समय से यह माना जाने लगा था कि नगर अध्यक्ष पद पर चौबे गुट के अभय घोष का ही मनोनयन होना है. इसके पहले भी इस नगर अध्यक्ष रहे विजय प्रसाद साह जो अभी पार्टी प्रत्याशी अर्जित चौबे के विरोध में निर्दलीय चुनाव लड़े थे, वह भी अश्विनी कुमार चौबे के ही खास माने जाते थे.
यही वजह था कि उन्हें ही नगर अध्यक्ष बनाया गया था. इसके पहले भी जिला और नगर अध्यक्ष के पद पर अश्विनी कुमार चौबे गुट का ही दबदबा कायम रहा है. और इस नगर अध्यक्ष के चुनाव में यह साबित हो गया कि अभी भी जिला और नगर में चौबे गुट कमजोर नहीं हुआ है. वैसे इस पद पर लालू शर्मा, प्राणेश राय और मोंटी जोशी भी दावेदार थे, लेकिन उनकी दावेदारी धरी रह गयी.
किसकी है जनवरी किसका अगस्त है
निशि रंजन
पिछले 70 साल में गांव में क्या बदला. 75 साल के रज्जो काका ने हथैली पर खैनी मसलते हुए इस सवाल का जवाब दिया- सड़क बन गयी है. कच्चे और फूस के मकान अब नहीं दिखते हैं. छतों पर टीवी वाली छतरी लग गयी है. छौड़ा-बच्चा जवान नहीं होता है कि मोबाइल टिपटिपाने लगता है. फटफटिया तो ऐेसे फुर्र से उड़ाता है कि जैसे आकाश नाप लेगा. पहले दूध चुकिया में निकाला जाता था. अब कंटेनर में निकला जाता है. कंटेनर शहर चला जाता है.
बिजली है, पंखा है. रज्जो काका दम मारने के लिए रुके. फिर खैनी ठोर में दबाते हुए कहने लगे-और भी कई चीजें हैं. नाम नहीं जानते लेकिन लोगों के पास है. यहां बैठे- दिल्ली-लंदन वालों से आमने सामने बैठ कर बात कर लो. एक बक्सा की तरह का खुलता है, उसमें कई चीजें जादू की तरह होती हैं. सामने बैठे लहटोरन ने कहा- बाबा, तब तो सुविधा खूब्बे बढ़ गया. तब के और अब के जमाना में. रज्जो काका ने मुंह में आया थूक पिच्च से फेंकते हुए कहा- सुविधा तो बढ़िये गया है. लेकिन कितने को मिल रहा है इ सुविधा. मियां टोली से कनुवा टोली तक देख लो कितने बच्चे स्कूल जाते हैं.
सरकारी स्कूल में पढ़ाई कैसी होती है, पता है न. थोड़ा सा भी पेट भरुवा आदमी अपने बच्चे को प्राइवेट स्कूल में पढ़ाता है. पहले बड़ा ठोस सामाजिक तानाबाना था समाज का. लोग एक दूसरे के सुख-दुख में खड़े रहते थे. अब मोबाइल और डिब्बा में व्यस्त रहते हैं. झुनका का बाप भी खेत में मजूरी (मजदूरी)करता था,
झुनका का बेटा भी मजूरी ही कर रहा है. बाबू अभयानंद के पिता जमींदार थे. बाबू अभयानंद का बेटा एक मल्टीनेशनल कंपनी में विदेश में इंजीनियर है. सभी इसी गांव के हैं. साहित्यकार व कवि रसिक जी 15 अगस्त की पूर्व संध्या पर पूरे लय-ताल के साथ बाबा नागार्जुन की कविता गा रहे हैं-किसकी है जनवरी, किसका अगस्त है… .