भागलपुर : गंगा मैया अभी गुस्से में हैं. लाखों लोग बेघर हो गये हैं, तो उनके कोप से बचने के लिए लोग दुर्गा मैया की शरण में आ गये हैं. दुर्गा मां के दरबार में जैसे दशहरा के मेला की तैयारी हो रही हो. मंदिर के इर्द-गिर्द छोटे-छोटे बच्चे गोटी का खेल चल रहा है. […]
भागलपुर : गंगा मैया अभी गुस्से में हैं. लाखों लोग बेघर हो गये हैं, तो उनके कोप से बचने के लिए लोग दुर्गा मैया की शरण में आ गये हैं. दुर्गा मां के दरबार में जैसे दशहरा के मेला की तैयारी हो रही हो. मंदिर के इर्द-गिर्द छोटे-छोटे बच्चे गोटी का खेल चल रहा है. ऐसा ही नजारा महाशय ड्योढ़ी स्थित दुर्गा मंदिर के परिसर का दिख रहा है.
लेकिन यहां आये सैकड़ों लोगों को जब आप दो चापाकल से पानी ढोकर लाते देखेंगे, तपते प्लास्टिक की छत के नीचे महिलाओं को पल्लू से पसीने पोंछते देखेंगे और उनकी परेशानी पूछेंगे, तो भ्रम से बाहर आ जायेंगे. तब लगेगा कि यह दशहरे का मेला नहीं था, बल्कि बाढ़ पीड़ितों का संघर्ष है. हालात कमोबेश हर जगह ऐसा ही है. शहर के हर खाली ठिकाना पर बाढ़पीड़ित हैं. हर मंदिर और विद्यालय का मैदान बाढ़ पीड़ितों की शरणस्थली बनी है.
माल-मवेशी के साथ ही रह रहे. शहर के कई शिक्षा के मंदिर भी आज पनाहगाह बने हुए हैं. चाहे वह तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय का टिल्हा कोठी हो या इवनिंग कॉलेज, टीएनबी कॉलेजिएट का मैदान हो या महाशय ड्योढ़ी स्थित मध्य विद्यालय हो. शहर के हर खाली स्थल बाढ़ पीड़ितों से भर गये हैं. लोग अपने माल-मवेशी के साथ ही रह रहे हैं. पूरा परिसर भैंस, गाय और पीड़ित लोगों से भर गया है.
खुद ही खरीदी है प्लास्टिक. महाशय ड्योढ़ी परिसर में पूर्वी चहारदीवारी से सट कर प्लास्टिक का तंबू बना कर रह रही रसलपुर की गीता देवी ने बताया कि उन्हें यह प्लास्टिक किसी ने दिया नहीं है, उसने खुद ही बाजार से खरीदी हैं. उन्हीं के बगल में रह रहे अजमेरीपुर के मंटू मंडल का कहना था कि प्रशासन कुछ नहीं दे रहा. घर से जो बचा-खुचा अनाज लेकर आये थे, अब समाप्त होने को है.