गाय-भैंसों के बीच कट रही बाढ़ पीड़ितों की जिंदगी

बीएन कॉलेज की जमीन पर शरणार्थियों के लिए बने राहत शिविर की हालात बद से बदतर भागलपुर : जर्जर-गंदे हो चुके भवन के गंदे बरामदे के सामने जानवरों का झुंड व गोबर-कूड़ा का ढेर है. खाने के इंतजाम का कहीं पता नहीं चल रहा है तो जानवर चारे के अभाव में बिलबिला रहे हैं. एक […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 25, 2016 5:53 AM

बीएन कॉलेज की जमीन पर शरणार्थियों के लिए बने राहत शिविर की हालात बद से बदतर

भागलपुर : जर्जर-गंदे हो चुके भवन के गंदे बरामदे के सामने जानवरों का झुंड व गोबर-कूड़ा का ढेर है. खाने के इंतजाम का कहीं पता नहीं चल रहा है तो जानवर चारे के अभाव में बिलबिला रहे हैं. एक ही टोटी के जरिये इनसान-जानवर दोनों के लिए पानी का इंतजाम किया गया है. प्रशासन द्वारा इवनिंग कॉलेज के खंडहर के बीच बनाये गये छोटे से परिसर व गैलरी में करीब एक हजार बूढ़े, बच्चे, जवान व महिलाएं करीब 600 गाय-भैंसों के साथ जानवरों सी जिंदगी जीने को मजबूर हैं.
इवनिंग कॉलेज में रहने वाले ज्यादातर शरणार्थी शंकरपुर गांव के बिंद टोला के रहने वाले हैं. इस गांव में करीब 200 परिवार रहता है. यहां के हरेक घर में दो-तीन गाय-भैंस हैं. यहां के लोगों की मूल कमाई का साधन दूध का कारोबार व खेती है. गंगा ने रौद्र रूप धारण किया तो इनका सब कुछ डूब गया. यहां के लोगों का कहना है कि वे लोग बीते 14-15 दिन से इवनिंग कॉलेज की जमीन पर रह रहे हैं.
लेकिन सोमवार को राहत के नाम हरेक परिवार को पांच-पांच किलो चूड़ा व एक-एक किलो गुड़ मिला. जबकि मंगलवार की शाम को सबको खिचड़ी मिली. इसके बाद कभी भी राहत सामग्री नहीं बंटी.
शरणार्थी रामनाथ का कहना है कि अभी तक उनके लिए प्रशासन ने न तो भोजन का इंतजाम किया और न ही चूड़ा-गुड़ व बरसाती आदि का. यहां तक उनके पशुओं के लिए चारे का भी इंतजाम नहीं किया. शिविर के पास एक टोटी लगा हुआ है. इस टोटी पर बिजली रहने की दशा में सुबह-शाम पानी की सप्लाई होती है. इसी टोटी के जरिये छह सौ लोगों की प्यास बुझाने से लेकर पशुओं के लिए पानी का इंतजाम करना पड़ता है. यहां न तो सफाई होती है, न छिड़काव.
शरणार्थियों ने बयां किया दर्द
चार भैंस के साथ पास ढाई बीघा जमीन थी. बाढ़ आयी और घर में रखा भूसा, खाद्यान्न व खेतों में लगी फसल डूब गयी. अब तो गुजारा करना मुश्किल हो गया है. परिवार की भूख मिटायें कि पशुओं की. समझ में कुछ नहीं आ रहा है.
पप्पू महतो
दस बीघा खेत में फसल लहलहा रही थी, गंगा की बाढ़ में डूब गया. 14 दिन से राहत शिविर में परिवार संग रह रहा हूं. घर में खाने का इंतजाम नहीं तो महंगा भूसा खरीदने की मजबूरी है. आलम यह है कि घर में चार भैंस है और बच्चों को पीने का दूध तक नहीं है.
सुनील कुमार
खेती एक इंच नहीं थी. मजदूरी करके घर-परिवार का खर्च चलता था. तीन भैंस के जरिये थोड़ा-बहुत दूध बेंच कर कमाई कर लेता था. अब तो भैंस का पेट ठीक से नहीं भर रहा है. परिवार गंदगी के बीच रह रहा है. डर लगता है कि कहीं परिवार के लोग बीमार न पड़ जायें.
बिंदेश्वरी महतो

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