भागलपुर : भागलपुर की सड़कें खाली होने का मतलब यह माना जाता है कि या तो हड़ताल है या फिर रविवार. लेकिन अभी यहां की सड़कों पर वह भीड़ नहीं, जबकि न तो हड़ताल है और रविवार. रविवार बीते चार दिन हो चुके हैं, लेकिन शहर में कई जगहों पर दूसरी स्थिति भी दिख रही है. सराय चौक के समीप, तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के अतिथि गृह के सामने चौराहे पर, नरगा चौक पर और महाशय ड्योढ़ी के सामने लोगों का जमावड़ा दिखा. पूछने पर पता चला कि जमा लोगों में अधिकतर बाढ़ पीड़ित हैं और कुछ स्थानीय लोग.
इन स्थानों पर अंदर की स्थिति भयावहता लिये हुए थी. कोलाहल-सा माहौल. यहां आमजन और पशुओं में अंतर कर पाना मुश्किल है. यहां ठहरे लोगों के साथ भैंस-बकरियां सोयी-लेटी हैं या भैंस-बकरियों के साथ लोग लेटे हैं…नहीं बताया जा सकता. महाशय ड्योढ़ी परिसर में बुधवार को करीब 12.30 बजे कुछ साहब टाइप लोग अंगरक्षक के साथ महाशय ड्योढ़ी परिसर में घुसे थे. इसी परिसर में है मध्य विद्यालय
. इस विद्यालय में उक्त साहब गेट के अंदर घुसते ही बाहर निकल गये. बावजूद इसके देर शाम तक इस परिसर को दुर्गंध मुक्त करने और साफ-सफाई के पुख्ता इंतजाम नहीं किये गये थे. जिले भर के अधिकतर लोग अभी अपनी, परिवार की और मवेशियों की सुरक्षा व भोजन-चारे के इंतजाम में लगे हैं. वह परेशान हैं. उनके रोजगार ठप हो चुके हैं. लिहाजा शहर की सड़कों का सूनापन लाजिमी है. चंपानगर से गुजरने पर ऐसा पहली बार एहसास हुआ कि यह इलाका शांत था. कहीं से हैंडलूम, पावरलूम, करघा की खट-खट सुनाई नहीं दे रही थी.
मेहरबान हुआ कलबलिया पुल घाट
चंपानाला पुल के दोनों छोर पर मेला-सा माहौल था. पूर्वी छोर पर शिवालय परिसर में भगत का आयोजन किया गया था. कभी शिव कभी हनुमानजी, तो कभी देवी भजी जा रही थीं. वहीं पश्चिमी छोर पर गोसाईंदासपुर सड़क पर कलबलिया पुल घाट लोगों पर मेहरबान की तरह नजर आ रहा था. इस घाट पर मछली पकड़नेवालों के लिए काफी लाभप्रद साबित हो रहा है. फतेहपुर तक जाने के लिए यहां से नाव की भी सुविधा है. पांच रुपये में नाव से फतेहपुर पहुंचने के बाद आगे जाने के लिए दूसरी नाव लेनी होगी.