प्रतिमा विसर्जन : पूजा हुई पूरी, पर गंगा हुई मैली

भागलपुर : एक ओर जहां जिले के श्रद्धालुओं के बीच मां सरस्वती की पूजा समारोह में श्रद्धा और उल्लास का वातावरण रहा, वहीं दूसरी ओर श्रद्धालुओं द्वारा विसर्जित हजारों प्रतिमाओं से गंगा मैली हो गयी. शहर के विभिन्न पर्यावरण विद् व पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करने वाले संस्थाओं, गंगा महाआरती करने वाले संस्थाओं की […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 7, 2014 10:49 AM

भागलपुर : एक ओर जहां जिले के श्रद्धालुओं के बीच मां सरस्वती की पूजा समारोह में श्रद्धा और उल्लास का वातावरण रहा, वहीं दूसरी ओर श्रद्धालुओं द्वारा विसर्जित हजारों प्रतिमाओं से गंगा मैली हो गयी. शहर के विभिन्न पर्यावरण विद् व पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करने वाले संस्थाओं, गंगा महाआरती करने वाले संस्थाओं की मेहनत पर पानी फिर गया. इतना अभियान चलाने के बावजूद गंगा में प्रतिमा विसर्जित की गयी और अन्य अवशिष्ट चीजों को प्रवाहित किया गया.

शहर के विभिन्न गंगा तटों पर प्रतिमाओं के अवशेष बिखरे पड़े हैं. पुआल, लकड़ी, हानिकारक रसायन समेत अन्य अवशिष्ट चीजें गंगा में मिल कर गंगा को प्रदूषित कर रही हैं. पर्यावरणविदों का कहना है गंगा के मैली होने के कारण ही दुर्लभ जलीय जीवों की संख्या दिनों-दिनों घटती जा रही है. गंगा के पानी को ही साफ कर लोगों के पीने योग्य बनाया जा रहा है. इस पानी को कितना भी पानी साफ किया जाये, वह पूर्णत: शुद्ध नहीं हो पायेगा. वरिष्ठ रसायन शास्त्री डा विवेकानंद मिश्रा ने बताया कि जितने भी रंग का उपयोग होता है, वह सभी विषैला यौगिकों से बनते हैं. जितने भी डायज होते हैं, सभी विषैले होते हैं.

ऋषिकेश से मालदा तक लाखों प्रतिमाएं गंगा में विसर्जित की जाती हैं. रंगीन सजावटी कागज सड़ कर गंगा जल को प्रदूषित कर देता है. इसके अलावा फूल-माला, केला के थंब, अशोक का पत्ता मूर्ति सजावट के लिए काम में लाया जाता है, वह सभी सड़ कर हानिकारक पदार्थ बनाता है. डा मिश्रा बताते हैं कि एक क्विंटल फूल के सड़ने से साढ़े चार किलो विषैला प्रदूषणकारी पदार्थ तैयार करता है और साढ़े 12 किलो गाद बनाता है. इसके अलावा मूर्ति की मिट्टी से गंगा की पेटी भी भरती है और नदी छिछली होती जाती है.

Next Article

Exit mobile version