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सुल्तानगंज में 9 दिवसीय रामकथा का समापन, कुंदन जी महाराज ने कहा-संयम, नैतिकता और मर्यादा से सुधरता है जीवन

रामेश्वर महादेव मंदिर में आयोजित नौ दिवसीय राम कथा के अंतिम दिन चंडीगढ़ से आये राम कथा वाचक कुन्दन जी महाराज ने श्रद्धालुओं से कहा कि भगवान श्री राम हर लीला में धर्म की मर्यादा का पालन करते हैं.

By Anand Shekhar | March 17, 2024 12:18 AM

सुलतानगंज. बाबा रामेश्वर सेवा समिति की ओर से प्रखंड के रघुचक अन्नहार के रामेश्वर महादेव मंदिर में आयोजित नौ दिवसीय राम कथा के अंतिम दिन चंडीगढ़ से पधारे राम कथा वाचक कुंदन जी महाराज ने श्रद्धालुओं को बताया कि प्रभु श्री राम प्रत्येक लीला में धर्म की मर्यादा का पालन करते हैं. जीवन में संयम हो, सदाचार हो और मर्यादा का पालन हो, तो जीवन संवरता है. मानव का जीवन शास्त्र मर्यादा के अनुसार होना चाहिए.

भगवान श्रीराम का अवतरण भारत भूमि पर अधर्म का नाश और धर्म का स्थापना करने के लिए हुआ था. प्रभु श्रीराम सभी सद्गुणों के भंडार हैं, श्रीराम की मातृभक्ति, पितृ भक्ति, भातृ प्रेम, प्रजा से स्नेह, रामजी की मधुर वाणी, रामजी का सदाचार, यह सभी दिव्य गुण प्रभु श्रीराम में समावेश हैं. हर मनुष्य को भगवान श्रीराम की लीला और मर्यादा का पालन करना चाहिए, जो भवसागर से तारने वाला है.

इस दौरान मंदिर परिसर को आकर्षक ढंग से दीपों से सजाया गया. श्रद्धालु भक्ति गीतों पर जम कर झूमते नजर आये. कार्यक्रम के दौरान बनायी गयी झांकी लोगों में आकर्षण का केंद्र बना रहा. मौके पर सुरेश प्रसाद सिंह, नंदन सिंह पाटो, अरुण सिंह, अभय सिंह बुटो, राम बहादुर सिंह, गौतम सिंह, पंकज सिंह, चंदन सिंह, शमशेर सिंह, दिवेश कुमार, हर्ष कुमार, सत्यम कुमार, मिथिलेश सिंह, अभय सिंह, विनय सिंह, अंकुश कुमार, प्रकाश सिंह, धनंजय सिंह, ओपी पासवान, दिलीप यादव सहित रघुचक अन्हार, पनसलला, कुमारपुर, मोथाबारी, कटहरा, उधाडीह, कुमैठा के सैकड़ों ग्रामीण मौजूद थे.

भगवान श्री राम में हैं उत्तम पुरुष होने के 16 गुण

महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण में प्रभु श्रीराम में 16 गुण बताए गए हैं जो नेतृत्व करने के सबसे अहम सूत्र हैं और इस लोक में उन्हें आदर्श पुरुष बनाते हैं. जब महर्षि वाल्मीकि नारद जी से प्रश्न करते हैं कि इस संसार में ऐसा कौन धर्मात्मा और कौशल पराक्रमी है, धर्म का ज्ञाता, कृतज्ञ, सत्यवादी और व्रत का पक्का है और कौन चरित्र से संपन्न है और कौन सभी प्राणियों के लिए हितकारी है, वह कौन है जो विद्वान है और विलक्षण रूप से सुखदायक व संयमी है. वह कौन है जिसने क्रोध पर विजय प्राप्त कर ली है और तेजस्वी है व जिसमें ईर्ष्या नहीं है. युद्ध में क्रोधित होने पर देवता किससे डरते हैं. तब उनके इस प्रश्न का उत्तर देते हुए नारद जी कहते हैं कि हे महर्षि इक्ष्वाकु वंश में उत्पन्न हुए श्रीराम में ये सभी गुण विद्यमान हैं.

ये हैं सोलह गुण

गुणवान, वीर्यवान, धर्मज्ञ, कृतज्ञ, सत्य वाक्य, दृढ़व्रत, चरित्रवान, सर्वभूतहितः, विद्वान, समर्थ, सदैक प्रियदर्शन, आत्मवान, जितक्रोध, द्युतिमान्, अनसूयक, बिभ्यति देवाश्च जातरोषस्य संयुगे. प्रभु श्रीराम ने अपने जीवन काल में इन सभी गुणों से ही समरसता का संचार किया था.

समरसता का पाठ पढ़ाते हैं श्री राम

माता शबरी की पौराणिक कथा मिलती है, जिसमें भक्त का भगवान के प्रति और भगवान का भक्त के प्रति प्रेम और भक्ति भाव दर्शाया गया है. जिसमें बताया गया है कि माता शबरी अपने प्रभु राम के लिए प्रेम से बेर तोड़कर लाती हैं और उन्हें चखकर रामजी को खिलाती हैं ताकि उनके मुख में गलती से खट्टा बेर न चला जाए. राम जी भी अपनी भक्त के प्रेम में खुशी से बेर ग्रहण करते हैं. इस कहानी की मूल उद्देश्य देखा जाए तो जात-पात के भेदभाव को मिटाना है. इसी तरह रामायण के अयोध्या कांड में केवट की कथा भी मिलती है जब निषादराज केवट अपनी नाव में भगवान राम और माता सीता को गंगा पार करवाते हैं.

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रिश्तों के समन्वयक हैं प्रभु श्रीराम, सिखाते हैं वचन निभाना

भगवान राम सिखाते हैं कि स्थिति चाहे जो भी हो रिश्तों को निभाने में कभी पीछे नहीं हटना चाहिए. जब कैकयी राम जी के लिए 14 वर्षों का वनवास मांगती हैं तो राजा दशरथ अपने ज्येष्ठ पुत्र राम को वन जाने की आज्ञा देते हैं. अपनी पिता की आज्ञा का पालन करते हुए राम सहर्ष वन जाना भी स्वीकार कर लेते हैं. इस दौरान छोटे भाई लक्ष्मण और माता सीता भी साथ जाते हैं. जब शत्रुघ्न अपने बड़े भाई को वापस अयोध्या ले जाने के लिए जाते हैं तो भगवान राम उनके साथ जाने से इंकार कर देते हैं और पिता को दिया हुआ वचन पूर्ण करने के लिए वन ही निवास करते हैं. इस तरह राम जी रिश्तों का मान रखते हुए वचन व्रत को पूर्ण करने की भी सीख देते हैं.

प्रभु राम खराब स्थिति में भी हिम्मत न हारने की देते हैं प्रेरणा

अरण्यक वन में जब छल से रावण माता सीता का हरण कर लेता है तो प्रभु राम अपनी अर्धांगिनी सीते की विरह में वह व्याकुल हो जाते हैं, लेकिन उस स्थिति में भी वह हिम्मत नहीं हारते हैं और नल-नील, बजरंगबली, सुग्रीव की वानर सेना के साथ मिलकर युद्ध का शंखनाद करते हैं और रावण का वध कर राम राज्य की स्थापना करते हैं. इस तरह से भगवान राम हर स्थिति में हिम्मत न हारने और एकता में शक्ति की भावना को समझाते हैं.

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शत्रु का भी रखा मान

आज के वक्त में रिश्तों की न तो कोई मर्यादा रही है और न ही उनमें मान रखने की भावना रही है और अपना ही अपनों का शत्रु बन बैठा है, लेकिन श्रीराम जी ने अपने जीवन में सिखाया कि कैसे न सिर्फ रिश्तों बल्कि शत्रु तक का मान रखना चाहिए. पौराणिक कथाओं में एक प्रसंग मिलता है कि जब रावण मृत्यु शैय्या पर था तब राम जी अपने अनुज लक्ष्मण से कहते हैं कि वह जाएं और रावण से कुछ ज्ञान लें. तब रावण ने तीन सीख दी थीं कि शुभ कार्यों में विलंब नहीं करना चाहिए, अशुभ कार्यों को टालने के प्रयास करने चाहिए और अहम में इतने अंधे नहीं होना चाहिए कि शत्रु को आप कम आंकने लगे. इस तरह से प्रभु राम ने शत्रु का मान रखना भी सिखाया

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