भागलपुर: सीबीएसइ ने छात्रों का बोझ बढ़ाने वाला एक नया प्रस्ताव दिया है. सीबीएसइ का नया फैसला अगर लागू हो गया तो 10वीं कक्षा तक के छात्र-छात्राओं के लिए तीन भाषाओं का अध्ययन करना अनिवार्य हो जायेगा.
अभी तक ये नियम आठवीं तक ही लागू है. छात्रों को हिंदी, अंग्रेजी के साथ अपनी क्षेत्रीय भाषा या विदेशी भाषा को चुनना होगा. 50 साल पहले बनाये गये कोठारी आयोग की सिफारिशों को लागू करना क्यों जरूरी है, इसका जवाब सरकार के पास नहीं है. देश में सीबीएसइ के 18,000 स्कूल हैं, जिसमें 13,000 स्कूलों को सीबीएसइ से मान्यता प्राप्त है. अभी सीबीएसइ 10 वीं बोर्ड परीक्षा को ऑप्शनल रखा है और आठवीं कक्षा तक कोई छात्र फेल नहीं हो सकता है.
सरकार मान सकती है प्रस्ताव : उधर, केंद्र सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने संकेत दिया है कि वह सीबीएसइ बोर्ड के प्रस्ताव को मान लेगा.
तमिलनाडु व पुडुचेरी के अलावा देश के सभी राज्य पहले ही इस प्रस्ताव पर सकारात्मक रुख दिखा चुके हैं. नये प्रस्ताव के तहत हिंदी, अंग्रेजी के अलावा आठवीं अनुसूची में शामिल 22 में से किसी एक भाषा को छात्र चुन सकते हैं. जिसमें संस्कृत भी शामिल है. गैर हिंदी राज्य तो अपने राज्य की भाषा चुन लेते हैं, लेकिन हिंदी भाषी राज्यों में संस्कृत के अलावा कोई और विकल्प नहीं नहीं दिखता.
क्वॉलिटी के प्राचार्य को भी देना होगा टेस्ट
सीबीएसइ की संचालन समिति ने अगले वर्ष से बोर्ड परीक्षाओं को अनिवार्य करने के प्रस्ताव पर मुहर लगा दी है. अब बच्चों को 10वीं तक तीन भाषाएं पढ़नी होगी, स्कूलों में पढ़ाई की गुणवत्ता सुधारने के लिए अब प्राचार्य का भी टेस्ट लिया जायेगा.