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समकालीन विचारकों ने भारत का सांस्कृतिक मूल्य बढ़ाया

भागलपुर : भारतीय राष्ट्र की अवधारणा महज भौगोलिक व राजनैतिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक है. समकालीन विचारकों ने भारत के सांस्कृतिक मूल्यों को आगे बढ़ाया है. यह बात कुलपति प्रो रमा शंकर दुबे ने कही. वे शुक्रवार को दिनकर परिसर स्थित परीक्षा भवन में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार के उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि के […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 28, 2017 9:06 AM
भागलपुर : भारतीय राष्ट्र की अवधारणा महज भौगोलिक व राजनैतिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक है. समकालीन विचारकों ने भारत के सांस्कृतिक मूल्यों को आगे बढ़ाया है. यह बात कुलपति प्रो रमा शंकर दुबे ने कही. वे शुक्रवार को दिनकर परिसर स्थित परीक्षा भवन में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार के उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे. दर्शन परिषद, बिहार द्वारा प्रायोजित इस कार्यक्रम का आयोजन विश्वविद्यालय दर्शनशास्त्र विभाग की ओर से किया गया था. संगोष्ठी का विषय समकालीन विचारकों का राष्ट्र के प्रति अवदान था.
प्रतिकुलपति प्रो एके राय ने कहा कि शिक्षा ही वह माध्यम है, जो हमें भौतिक समृद्धि व आध्यात्मिक प्रगति की ओर ले जा सकती है. शिक्षा के बिना मानव जीवन का सर्वांगीण विकास संभव नहीं है.
यही कारण है कि समकालीन भारतीय विचारकों ने शिक्षा के महत्व को समझा. पूर्व सांसद व पूर्व कुलपति प्रो रामजी सिंह ने कहा कि समकालीन भारतीय विचारकों ने भारत के नवजागरण में महती भूमिका निभायी. इसी नवजागरण के फलस्वरूप हमें आजादी मिली और आज हम प्रगति के पथ पर अग्रसर हैं. उन्होंने कहा कि समकालीन विचारकों ने भारतीय संस्कृति की सामासिकता पर जोर दिया है. आइसीपीआर, नयी दिल्ली के सदस्य प्रो नरेश कुमार अंबष्ट ने कहा कि भारतीय संस्कृति यह मानती है कि संपूर्ण चराचर जगत में एक ही ईश्वर का वास है. लिहाजा हम सभी एक हैं. किसी का किसी से कोई विरोध नहीं है. हमारे इस मूल सिद्धांत को प्राय: सभी समकालीन विचारकों ने आगे बढ़ाया. उन्होंने इस क्रम में दयानंद सरस्वती, रामकृष्ण परमहंस, विवेकानंद, जगदीश चंद्र बसु, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, एनी बेसेंट, महात्मा गांधी, श्रीअरविंद, लोकनायक जयप्रकाश नारायण, विनोबा भावे आदि के योगदानों की चर्चा की. बिहार दर्शन परिषद के पूर्व अध्यक्ष प्रो प्रभु नारायण मंडल ने कहा कि भारतीय दर्शन व संस्कृति पर एक आक्षेप लगाया जाता है कि यह जगत का निषेध करता है और पलायनवादी है. राष्ट्रीय सेमिनार के पहले दिन तकनीकी सत्र में कई शोध–पत्र प्रस्तुत किये गये.
कार्यक्रम का संचालन डॉ सुधांशु शेखर व धन्यवाद ज्ञापन डॉ विजय कुमार ने किया. इस मौके पर डीएसडब्ल्यू डॉ उपेंद्र साह, दर्शनशास्त्र विभाग के अध्यक्ष प्रो शंभु प्रसाद सिंह, टीएनबी कॉलेज के प्रधानाचार्य प्रो आरपीसी वर्मा, मैथिली विभाग के अध्यक्ष प्रो केष्ठर ठाकुर, प्रो एसडीके सिन्हा, प्रो पूर्णेंदू शेखर, प्रो लक्ष्मेश्वर झा, डॉ इफ्तेखार, प्रो अजीत कुमार, प्रो अरविंद कुमार तिवारी, प्रो शंभु दत्त झा, डॉ मिहिर मोहन मिश्र सुमन आदि
उपस्थित थे.

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