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लाउड म्यूजिक का शौक बना रहा बहरा भागलपुर : आइपॉड या मोबाइल से घंटों गाना सुनते रहते हैं. या फिर डीजे की तेज आवाज के साथ आये दिन थिरकते रहते हैं. तो आप जरा संभल जायें. आपका ये शौक आपको हमेशा के लिए बहरा बना सकता है. ज्यादा देर तक बहुत तेज आवाज के संपर्क […]
लाउड म्यूजिक का शौक बना रहा बहरा
भागलपुर : आइपॉड या मोबाइल से घंटों गाना सुनते रहते हैं. या फिर डीजे की तेज आवाज के साथ आये दिन थिरकते रहते हैं. तो आप जरा संभल जायें. आपका ये शौक आपको हमेशा के लिए बहरा बना सकता है. ज्यादा देर तक बहुत तेज आवाज के संपर्क में रहना भी कान के लिए खतरनाक है. जब तक हमें पता चलता है कि हमें वाकई सुनने में कोई दिक्कत हो रही है, तब तक हमारे 30 फीसदी सेल्स नष्ट हो चुके होते हैं, जिन्हें दोबारा हासिल नहीं किया जा सकता है. कान, नाक व गला (इएनटी) रोग विशेषज्ञ डॉ एसपी सिंह बताते हैं कि उनकी ओपीडी में हर रोज करीब तीन से चार मरीज आते हैं, जिन्हें तेज आवाज में ही सुनायी देता है. ये कहते हैं कि शहर में बढ़ रहा ध्वनि प्रदूषण भी लोगों की सुनने की क्षमता पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है.
म्यूजिक सुनते वक्त वॉल्यूम हमेशा मीडियम या लो लेवल पर रखना चाहिए. 120 डेसिबल से ऊपर की आवाज कान के लिए बेहद घातक है. अगर आप अपने मोबाइल या आइपॉड से गाना सुनते हैं तो इसके लिए 60/60 का नियम अपना सकते हैं. इसमें आइपॉड या मोबाइल को 60 मिनट के लिए उसके मैक्सिमम वॉल्यूम के 60 फीसदी पर सुनें और फिर कम से कम 60 मिनट यानी एक घंटे का ब्रेक लें. म्यूजिक या मोबाइल पर गाना सुनने के लिए इयरबड और हेडफोन, दोनों आते हैं. इयर बड्स की तुलना में हेडफोन का इस्तेताल बेहतर है.
सुनने की क्षमता कम होने के ये भी हैं कारण. वैसे कान के सुनने की क्षमता कमजोर होने के पीछे अन्य वजहें भी हैं. जैसे, उम्र का बढ़ना, कुछ दवाएं जैसे जेंटामाइसिन का इंजेक्शन का अत्यधिक इस्तेमाल, बीमारी जैसे डायबिटीज और हॉर्मोंस का असंतुलन. मेंजाइटिस, खसरा, कंठमाला आदि बीमारियों से भी सुनने की क्षमता प्रभावित हो सकती है.