जानिए गौरवशाली विक्रमशिला विश्वविद्यालय के बारे में

सत्ता और शिक्षा के केंद्र बदलते रहते हैं. आधुनिक युग में जेएनयू, बीएचयू, आइआइटी और आइआइएम सहित दर्जनों शिक्षण संस्थानहैं,जिनकी देश में खास प्रतिष्ठा है.इसीतरह प्राचीनमें बिहार शिक्षा का वैश्विक केंद्र था. उस वक्त नालंदा विश्वविद्यालय और विक्रमशिला विश्वविद्यालय दुनिया के प्रतिष्ठित शिक्षाके केंद्र थे. अब ये विश्वविद्यालय इतिहास हैं और सिर्फ इनके गौरवगान की […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 3, 2017 1:20 PM

सत्ता और शिक्षा के केंद्र बदलते रहते हैं. आधुनिक युग में जेएनयू, बीएचयू, आइआइटी और आइआइएम सहित दर्जनों शिक्षण संस्थानहैं,जिनकी देश में खास प्रतिष्ठा है.इसीतरह प्राचीनमें बिहार शिक्षा का वैश्विक केंद्र था. उस वक्त नालंदा विश्वविद्यालय और विक्रमशिला विश्वविद्यालय दुनिया के प्रतिष्ठित शिक्षाके केंद्र थे. अब ये विश्वविद्यालय इतिहास हैं और सिर्फ इनके गौरवगान की कथाएं लाेगों के जेहन में हैं कि नालंदा व विक्रमविश्वविद्यालय ऐसा था, तो वैसा था. भागलपुर रेलवे स्टेशन से 50 किमी दूरी पर कहलगांव के निकट स्थित इस विश्वविद्यालय के अवशेष आज भी हैं. राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी आज विक्रमशिला खुदाई स्थल पहुंचे हैं, ऐसे में इसके बारे में जानने की उत्सुकता एक बार फिर लोगों के मन में है.

किसी जमाने में यह विश्वविद्यालय नालंदा विश्वविद्यालय से बड़ा विश्वविद्यालय था. सौ एकड़ में फैले यह विश्वविद्यालय चार दशकों तक शिक्षा का प्रसिद्ध केंद्र बना रहा. यहां 7000 छात्र पढ़ा करते थे.

दाखिले के लिए होती थी प्रवेश परीक्षा

विक्रमशिला में दाखिला पाने के लिए प्रवेश परीक्षा होती थी. सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के अन्य देशों से भी छात्र दाखिला पाने के लिए लालायित रहते थे. बौद्ध धर्म के उदय के साथ ही विक्रमशिला विश्वविद्यालय की प्रतिष्ठा बढ़ती गयी. विश्वविद्यालय का प्रबंधन छह भिक्षुओं के हाथ में थे और कुलपति इनसे सलाह कर विश्वविद्यालय का संचालन करते थे. विश्वविद्यालय में प्रवेश के छह प्रवेश द्वार थे.

इस विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षाविभिन्न विषयों के प्रकांड विद्वान लेते थे. प्रवेश परीक्षा में सफल और असफल छात्रों का अनुपात 30 : 70 रहता था. रत्नाकार शांति, पश्चिमी द्वार पर वागीश्वर कीर्ति, उत्तरी द्वार पर नरोपा, दक्षिणी द्वार पर प्रज्ञाकरमती, प्रथम केंद्रीय द्वार पर रत्नवद, द्वितीय द्वार पर औरकेंद्रीय द्वार पर ज्ञानश्री मित्र थे. विश्वविद्यालय की प्रबंधन व्यवस्था को देखें तोवह आज के आधुनिक विश्वविद्याय से मेल खाता था. विश्वविद्यालय का खर्च वहन हालांकि राजा और जागीर करते थे. इस विश्वविद्यालय की स्थापना पाल वंश के राजा धर्मपाल ने 775 से 800 ईश्वी के बीच की थी.

विक्रमशिला विश्वविद्यालय में आवासीय सुविधा था. बौद्ध धर्म और दर्शन के अतिरिक्त न्याय, तत्त्वज्ञान, व्याकरण आदि की भी शिक्षा वहां दी जाती थी. विक्रमशिला विश्वविद्यालय में दीपकंर नामक विद्वान ने लगभग 200 ग्रंथों की रचना की. उत्खनन के दौरान एक पुस्ताकालय का अवशेष मिला है. पुस्तकालय के अवशेष देखने से इसकी समृद्धि का अंदाजा लगाया जा सकता है. इसमें बौद्ध पांडुलिपियों का अच्छा संग्रह था. 12 वीं शताब्दी के आसपास इख्तियारुद्दीन मुहम्मद बिन बख्तियार खिलजी के नेतृत्व में मुसलमानों ने आक्रमण कर इस महाविहार को पूरी तरह नष्ट कर दिया. उसने 1203 में इस विश्वविद्यालय को नष्ट किया. इसके साथ ही नालंदा विश्वविद्यालय को भी उसने नष्ट कर दिया. उस दौरान यहां बौद्ध भिक्षुओं की भी हत्या की गयी थी.

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