महिलाओं पर शोध, पर किताबों की कमी

भागलपुर: तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के पीजी विभागों में विभिन्न विषयों पर आधारित शोध होते रहते हैं. इनमें महिलाओं पर आधारित शोध भी चलता रहता है. शोधार्थियों को मेटेरियल के लिए विभिन्न पुस्तकों की आवश्यकता भी पड़ती है. लेकिन विश्वविद्यालय के सबसे बड़े पुस्तकालय में महिलाओं पर आधारित पुस्तकें गिनी-चुनी हैं. विश्वविद्यालय में उनकी किताबों की […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 8, 2017 8:25 AM
भागलपुर: तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के पीजी विभागों में विभिन्न विषयों पर आधारित शोध होते रहते हैं. इनमें महिलाओं पर आधारित शोध भी चलता रहता है. शोधार्थियों को मेटेरियल के लिए विभिन्न पुस्तकों की आवश्यकता भी पड़ती है. लेकिन विश्वविद्यालय के सबसे बड़े पुस्तकालय में महिलाओं पर आधारित पुस्तकें गिनी-चुनी हैं.
विश्वविद्यालय में उनकी किताबों की मांग पूरी नहीं हो पाती. वजह, अधिकतर शोधार्थी हिंदी माध्यम की पुस्तकें पढ़ना पसंद करते हैं और पुस्तकालयों में अधिकतर पुस्तकें अंगरेजी माध्यम की हैं. महिला उत्पीड़न, महिला सशक्तीकरण, गर्भवती महिलाओं के आहार, महिलाओं की राजनीति में भागीदारी, स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं की भागीदारी, महिलाओं का पंचायती राज में प्रतिनिधित्व आदि विषयों से संबंधित किताबों की मांग शोधार्थी करते हैं. केंद्रीय पुस्तकालय में एक छोटी अलमारी में महिलाओं से संबंधित पुस्तकें रखी गयी हैं ताकि शोधार्थी को आसानी से मिल सके.
ये पुस्तकें उपलब्ध और ऐसे-ऐसे शोध : शोधार्थियों के लिए केंद्रीय पुस्तकालय में हिंदी माध्यम में महिला विकास कार्यक्रम, स्वाधीनता संग्राम में बिहार की महिलाएं, महिला एवं विकास, कार्यशील महिलाएं एवं भारतीय समाज आदि पुस्तकें उपलब्ध हैं. लेकिन केवल इनसे छात्रों के मेटेरियल पूरे नहीं हो पाते. दूसरी ओर देखें, तो इकोनॉमिक्स विभाग में इकोनॉमिक इमपावरमेंट ऑफ रूरल वुमेन, हिंदी विभाग में विज्ञापन में नारी पर आलोचनात्मक अध्ययन, होम साइंस विभाग में नवजात शिशुओं व गर्भवती माताओं के जीवन की गुणवत्ता में स्वास्थ्य व चिकित्सा की वास्तविकताएं, मैथिली विभाग में मैथिली लोक साहित्य में नारी चित्रण, फिलॉसफी विभाग में विवेकानंद, गांधी व विनोबा के अनुसार स्त्री की प्रकृति व उसका आदर्श जैसे विषयों पर शोध होते रहे हैं.
विश्वविद्यालय में हमारा ध्यान शोध व पुस्तकालय पर भी है. इसके लिए हमने बैठक में निर्णय लिया है कि पीजी विभागों के अध्यक्ष जरूरत की पुस्तकों की सूची उपलब्ध करायेंगे. उसी के अनुसार खरीदारी होगी. विदेशी संस्करणों की पुस्तकें तभी खरीदी जायेंगी, जब भारतीय संस्करण की पुस्तकें बाजार में उपलब्ध नहीं होंगी. इसकी वजह यह है कि भारतीय संस्करण के मुकाबले विदेशी संस्करणों की पुस्तकें काफी महंगी होती हैं.
प्रो नलिनी कांत झा, कुलपति, टीएमबीयू

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