अब साइलेंट मोड में चल रहा बैठकों का दौर

भागलपुर : नोटबंदी और मौसम ने नक्सलियों के मनोबल को तोड़ दिया था. पुलिस यह मान रही है कि गिरफ्तारियों व मुठभेड़ के कारण ऐसा हुआ है, लेकिन माओवादी रणनीति के नजदीक रहने वाले इसके अन्य कारण भी गिना रहे हैं. लगभग दो दशकों से यह एक परंपरा की तरह रही है कि नवंबर-दिसंबर में […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 26, 2017 4:53 AM

भागलपुर : नोटबंदी और मौसम ने नक्सलियों के मनोबल को तोड़ दिया था. पुलिस यह मान रही है कि गिरफ्तारियों व मुठभेड़ के कारण ऐसा हुआ है, लेकिन माओवादी रणनीति के नजदीक रहने वाले इसके अन्य कारण भी गिना रहे हैं. लगभग दो दशकों से यह एक परंपरा की तरह रही है कि नवंबर-दिसंबर में अपने मजबूत आधार क्षेत्र में नक्सलियों का मारक दस्ता कोई न कोई कार्रवाई जरूर करता है. जमुई-मुंगेर-बांका-दुमका-गोड्डा व जसीडीह-मोहनपुर क्षेत्र में ट्रेनों को रोकना, आग लगाना, विस्फोट कर भवन उड़ाना एक शगल की तरह नक्सली करते रहे हैं. इस बार नोटबंदी व मौसम साफ रहने के कारण ऐसा नहीं हुआ.

गया व मुजफ्फरपुर परिक्षेत्र में कुछ वारदातों को अंजाम दिया भी गया है, तो वह लेबी जैसे तात्कालिक कारणों से और वह भी सेंट्रल कमेटी से निर्णय के बिना. खबर तो यह भी है कि छोटे समूहों में बंटे माओवादियों की टुकड़ी कुछ कार्रवाई लोकल स्तर पर सेंट्रल केमटी को बिना बताये भी अंजाम दे देती है. यदि वह कार्रवाई गलत संदेश देता है, तो उस टुकड़ी को दंड देने का भी प्रावधान रहा है. इसी के कारण कई हार्डकोर नक्सली अलग गुट बना कर धमक कायम रखने की कोशिश करते हैं और पकड़े जाने पर उन्हें अंजाम भुगतना पड़ता है. सूत्रों के मुताबिक नोटबंदी व मौसम के अलावा अपने सिद्धांत को समय सापेक्ष करने के चक्कर में भी नक्सली कार्रवाई को अंजाम नहीं दे रहे हैं. बड़े नक्सलियों के मारे जाने के बाद से ही नेतृत्वकर्ता इस पर एकराय बनाने में लगे हैं कि केवल भवन उड़ाने से काम नहीं चलेगा.
अपनी विचारधारा को आम जनता के बीच फिर से फैलाना होगा. दूसरा कारण बड़े नक्सलियों के मारे जाने व उम्र ज्यादा हो जाने के कारण विचार संपन्न कैडरों की कमी हो गयी है. जो नक्सली पकड़े जा रहे या किसी कार्रवाई को अंजाम देते हैं, वे एक टुकड़ा भर हैं. जनमिलिसिया के ऊपर कम से कम तीन चक्रों में कैडरों का टीम काम करता है.
हाइकमान या चीफ स्तर के नेताओं की कमी व टुकड़ों में छितराये माओवादी एकजुट का रास्ता खोज रहे हैं. इसकी शुरुआत दिसंबर के पहले सप्ताह में मुंगेर के जंगल में हुई थी, लेकिन मुठभेड़ के कारण वह उतना सफल नहीं हो सका. इस बैठक से पहले लोगों में अपनी पैठ बनाने के लिए छह जोड़ी नक्सल समर्थकों की शादी भी करवायी गयी थी. चर्चा तो यहां तक है कि पुराने बड़े नोट भी ग्रामीणों के बीच यह कह कर बांटे गये कि तुम्हीं लोगों के लिए रखा था, लेकिन सरकार को पता चल गया, इसलिए नोटबंदी कर दी.

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