सबौर : आर्सेनिक एक कासेनो जेनिक तत्व है, जिसका प्रसार बिहार के लगभग 18 जिलों के भूमिगत जल में सीमा से अधिक है, जो हमारे खाद्य शृंखला में प्रवेश कर विभिन्न प्रकार के घातक व असाध्य रोगों का कारण बन रहा है. यह बहुत ही चिंता का विषय है और इसके निदान पर प्रभावी ढंग से कार्य करने की आवश्यकता है.
उक्त बातें बिहार कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ अजय कुमार सिंह ने आर्सेंनिक शमन एक नेक्सस दृष्टिकोण विषय पर शुक्रवार को आयोजित वेबिनार के उद्घाटन पर अपने अध्यक्षीय संबोधन में कहा. उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय के विभिन्न विषयों के शोध कार्य पर देश-विदेश के वैज्ञानिकों एवं शोधकर्ताओं के मध्य वेबिनार के द्वारा विचार विमर्श व उसके निष्कर्ष का प्रसार किसानों, सरकारी गैर सरकारी व शोधकर्ता के माध्यम से पहुंच सके.
इस अवसर पर निदेशक प्रसार शिक्षा डॉ आर के सोहाने ने वेबिनार के प्रमुख विषयगत शोध क्षेत्र जैसे कृषि में आर्सेनिक का प्रभाव इसके विश्लेषण तकनीक आर्सेनिक का निदान एवं इसकी खेती में टिकाऊ प्रबंधन जैव प्रौद्योगिकी खोज व आर्सेनिक प्रदूषण के जोखिम का मूल्यांकन व प्रबंधन के तथ्यों को वेबिनार मे सम्मलित वैज्ञानिकों एवं शोधकर्ताओं के बीच रखा.
विश्वविद्यालय में आर्सेनिक से संबंधित शोध कार्य व उपलब्धि को डॉ सुनील कुमार, डॉ विष्णु देव प्रसाद एवं जजाती मंडल ने प्रस्तुत किया तथा आर्सेनिक से संबंधित तकनीकी जानकारी दी.
इस अवसर पर देश-बिदेश के जाने माने वैज्ञानिकों में पूर्व कुलपति वीसी केवी पश्चिम बंगाल प्रोफेसर एसके सन्याल, प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष महावीर कैंसर संस्थान पटना डॉ अशोक घोष प्रधान, वैज्ञानिक सीएसआइआर लखनऊ डॉ देवाशीष चक्रवर्ती, यूके के ङाॅ देव प्रिया, ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिक डॉ एम रहमान, आइआरआरआइ वाराणसी के डॉ सीता शर्मा के अलावा देश-विदेश के वैज्ञानिक एवं छात्र-छात्राओं ने इस वेबिनार में भाग लिया.