भागलपुर : अंग की लोकगाथा के मुताबिक बाला-बिहुला-विषहरी पूजा के लिए अंग प्रदेश की राजधानी चंपा नगरी में उद्भव स्थल है. यहीं पर माता विषहरी को सती बिहुला के कारण ख्याति प्राप्त हुई. शंकर भगवान की दत्तक पुत्री विषहरी माता शंकर भगवान की तरह ही ख्याति प्राप्त करना चाहती थी. इसे लेकर भगवान शंकर से अपनी मंशा जाहिर की. भगवान शंकर ने उन्हें बताया कि, मेरा एक भक्त अंग प्रदेश में चांदो सौदागर है. अगर वो तुम्हारी पूजा श्रद्धा भाव से कर लेता है, तो तुम्हें ख्याति मिल जायेगी.
विषहरी माता चांदो सौदागर से अपनी मंशा जाहिर की तो, चांदो सौदागर ने प्रस्ताव को ठुकरा दिया. उन्होंने कहा कि मैं शिव का भक्त हूं. इससे माता विषहरी क्रोधित हो गयी और उन्होंने चांदो को सताना शुरू कर दिया. इसी क्रम में चांदो सौदागर के छह पुत्र की हत्या कर दी गयी. संपत्ति को तितर-बितर कर दिया. सातवां व आखिरी पुत्र बाला की शादी सती बिहुला से संपन्न हुआ. इसे अर्थात अपने वंश को बचाने के लिए चांदो सौदागर ने भगवान विश्वकर्मा का आह्वान किया.
विश्वकर्मा द्वारा बाला को जीवित रखने के लिए एक लोहे का बासर-घर बनाने की तैयारी शुरू कर दी, ताकि कहीं से भी सर्प का प्रवेश नहीं हो सके. इसी बीच विषहरी ने विश्वकर्मा के पास पहुंच कर चेतावनी दी, कि एक बाल भर छेद बासर में छोड़ना होगा, नहीं तो परिणाम ठीक नहीं होगा. भगवान विश्वकर्मा ने माता विषहरी की बात मान ली.
सिंह नक्षत्र में प्रवेश करते ही नाग ने डसा : सुहागरात के दिन ही विषहरी के भेजे दूत नाग ने रात्रि 12 बजे सिंह नक्षत्र के प्रवेश करते ही नाग ने बाला लखेंद्र को डस लिया, जिससे उनकी मौत हो गयी. बिहुला सती थी, इसलिए उसने हार नहीं मानी.
मंजूषा पर चढ़ कर देवलोक गयी थी सती बिहुला : अंग की लोकगाथा के अनुसार बाला लखेंद्र विवाह के बाद अपने घर लौट कर आया और वहां उसकी सुरक्षा के लिए लोहा बांस घर बनाया गया था. माता विषहरी द्वारा भेजे गये मनियार नाग ने डस लिया. इस पर बाला लखेंद्र की मौत हो गयी. सती बिहुला चंपा नदी के जल मार्ग से मंजूषा नाव पर चढ़ कर देवलोक जाती है और अपने पति लखेंद्र को जिंदा लौटा कर लाती हैं.
पति बाला को जिंदा लेकर लौटी बिहुला : लोक कथा के अनुसार बताया गया है कि मंजूषा एक नाव है, जिसका निर्माण शिल्पराज विश्वकर्मा ने स्वयं तैयार किया था. इसकी भित्ती पर लहसन मालाकर ने चित्रकारी की थी. इस चित्रकारी के माध्यम से उनके मरने की घटना का वर्णन किया था. इसी नाव से पुन: सती बिहुला लौट कर भी आयी थी. इसलिए तभी मंजूषा का भी महत्व बढ़ गया.
देवराज ने माता विषहरी को मनाया और शुरू हुई पूजा : देवलोक से देवराज इंद्र माता विषहरी से अनुरोध करते हैं और सती बिहुला के महत्व पर चर्चा करते हैं. सती बिहुला से माता विषहरी फिर वही बात दोहराती है, जो चांदो सौदागर को कहा था. सती बिहुला के प्रस्ताव पर चांदो सौदागर ने ना-नुकूर करते हुए हामी भर दी और कहा कि दायें हाथ से भगवान शिव को और बांये हाथ से माता विषहरी की पूजा करूंगा, तभी से माता विषहरी की पूजा शुरू हो गयी.
Posted By : Kaushal Kishor