बांग्लादेश के ताजा घटनाक्रम पर सिल्क सिटी के बुनकर सशंकित हैं. लोकतांत्रिक व्यवस्था से सेना के हाथों में सत्ता आने और तख्तापलट का असर सिल्क सिटी पर भी पड़ने की आशंका है. बुनकरों ने चिंता जतायी है कि कहीं यहां से प्रतिमाह चार से पांच करोड़ तक होने वाले कारोबार पर असर नहीं पड़े. दुर्गा पूजा से लेकर ठंड सीजन तक लिनेन साड़ी की डिमांड वहां से जरूर होती है. नाथनगर के रहने वाले बिहार राज्य बुनकर कल्याण समिति सदस्य अलीम अंसारी ने बताया कि बांग्लादेश से सिल्क सिटी का सीधा कारोबार होता है. दरअसल बांग्लादेश में कपड़े पर डिजाइन की टेक्नोलॉजी अधिक विकसित है. ऐसे में यहां के तसर व तसर कटिया कपड़े की डिजाइन बांग्लादेश में होती है. इसके बाद अन्य देशों में भी निर्यात होता है. इसके अलावा भागलपुरी सिल्क के लेडीज व जेंट्स के कुर्ता के कपड़े की भी डिमांड है. पूरे माह में चार से पांच करोड़ तक का कारोबार होता है.
नरगा के युवा सिल्क कारोबारी तहसीन सवाब ने बताया कि भागलपुर में बने स्कार्फ की मांग बांग्लादेश से अधिक होता था. इस बार कारोबार बढ़ने की उम्मीद थी. बेहतर सैंपलिंग की जा रही थी. सितंबर से स्कार्फ का निर्यात शुरू हो जाता, लेकिन जैसी स्थिति बनी है, उसमें यहां के बुनकरों की उम्मीद पर पानी फिरता दिख रहा है. पूरे ठंड के सीजन में 50 करोड़ तक का कारोबार होता है.
———— भागलपुरी डल का गमछा से लेकर मटका की डिमांड अधिकबुनकर संघर्ष समिति के पदाधिकारी सिकंदर आजम ने बताया कि भागलपुर से बांग्लादेश का कारोबार सीधा जुड़ा हुआ है. चाहे यहां का दुपट्टा हो या मटका, बांग्लादेश में काफी डिमांड रहती है. बांग्लादेशी लुंगी की भी भागलपुर के लोगों में काफी डिमांड होती है. 6000 रुपये तक की लुंगी आती है.
————लिनेन व सिल्क की साड़ियाें की कर चुके हैं आपूर्ति
लोदीपुर के बुनकर भोला प्रसाद ने बताया कि वे खुद बांग्लादेश में 5000 पीस साड़ी व डल का गमछा निर्यात कर चुके हैं. इससे लाखों का कारोबार हुआ. बांग्लादेश में बंगाली संस्कृति है. यहां कारोबार में मजहबी भेदभाव नहीं है. लिनेन की साड़ी तांत साड़ी की तरह इस्तेमाल करते हैं. इस बार वहां अस्थिरता का माहौल है, जो चिंता की बात है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है