जानकारी के अभाव में विलुप्त हो रही पौधों की कई प्रजातियां
जानकारी के अभाव में विलुप्त हो रही पौधों की कई प्रजातियां
– टीएमबीयू के पीजी बॉटनी विभाग में कैपिसिटी बिल्डिंग कार्यशाला की शुरुआत – तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के पीजी बॉटनी विभाग के बिलग्रामी प्रशाल में गुरुवार से शिक्षकों, छात्रों व शोधार्थियों के कैपिसिटी बिल्डिंग कार्यशाला की शुरुआत हुई. तीन दिवसीय कार्यशाला का उद्घाटन दीप जलाकर कुलपति प्रो जवाहरलाल सहित अन्य ने किया. कुलपति ने कहा कि आज विश्व पर्यावरण स्वास्थ्य दिवस है. हर पाैधे की उपयाेगिता का अध्ययन हाेना चाहिये. पर्यावरण काे स्वस्थ रखना पाैधाें पर निर्भर है. अगर पर्यावरण स्वस्थ है तभी मानव का स्वस्थ रहना संभव है. कहा कि संजीवनी बुटी समेत कई पाैधे विभिन्न राेगाें के इलाज में लाभदायक हैं. कार्यशाला में विभिन्न पाैधाें की पहचान, नामकरण, हरबेरियम व इलस्ट्रेशन के साथ होना चाहिये. इससे पूर्व उद्घाटन मौके पर बॉटनिकल सर्वे ऑफ इंडिया के वैज्ञानिक डॉ जे जयंती व डॉ जेएस जलाल, मारवाड़ी कॉलेज के प्राचार्य डॉ. एसपी यादव, टीएनबी काॅलेज के पूर्व प्राचार्य डॉ. आरपीसी वर्मा, बीएन कॉलेज के प्राचार्य डॉ. अशोक ठाकुर, पीजी भौतिकी के हेड डॉ. कमल प्रसाद व जूलॉजी विभाग के हेड डॉ इकबाल अहमद आदि मौजूद थे. कार्यक्रम से लोकल पौधों की होगी पहचान डॉ जेएस जलाल ने कहा कि इस प्रकार के कार्यक्रम से ही लोकल पौधों की पहचान होगी. साथ ही बायोडायवर्सिटी की सुरक्षा होगी. डाॅ जे जयंती ने कहा कि युवा पीढ़ी को पौधों के नाम और उसकी उपयोगिता की जानकारी हो. जानकारी के अभाव में पौधों की कई प्रजातियां विलुप्त हो रही हैं. इससे पारितंत्र पर खतरा मंडरा रहा है. युवाओं में दक्षता की कमी है. मानव जीवन को बचाना है तो हम सभी काे मिलकर पौधों की पहचान और उनकी रक्षा करनी हाेगी. हर व्यक्ति आसपास के पेड़-पाैधाें काे पहचाने पीजी बाॅटनी विभाग के हेड व वर्कशाॅप के संयाेजक प्राे एचके चाैरसिया ने कार्यशाला की उपयोगिता बतायी. उन्होंने कहा कि जैवमंडल में 1.5 से 1.7 मिलियन प्रकार के जीव हैं. सभी जीवों की पहचान और नामकरण करना बहुत बड़ी चुनौती है. जैव विविधता का स्थाई विकास तभी संभव है जब हर व्यक्ति आसपास के पेड़-पाैधाें काे पहचाने. उनके नाम और हरबेरियम बनाना सीखें. वर्कशॉप में अन्य विशेषज्ञों ने विचार रखे. अतिथियों का स्वागत डॉ एके चौधरी, डॉ विवेक कुमार, डाॅ मनीषा मिश्रा, डाॅ मनोज कुमार ने किया.
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