पेयजल के लिए दर-दर भटक रहे बाढ़ पीड़ित, हजारों विस्थापित व मवेशियों के सूख रहे कंठ

पेयजल के लिए दर-दर भटक रहे बाढ़ पीड़ित, हजारों विस्थापित व मवेशियों के सूख रहे कंठ

By Prabhat Khabar News Desk | August 20, 2024 9:54 PM

– प्रभात खबर पड़ताल – बाढ़ के बाद तेज धूप व भीषण गर्मी में झुलस रहे विस्थापित, झांकने तक नहीं पहुंचे नेता व अधिकारी – गंगा दियारा के दर्जनों गांव इन दिनों बाढ़ का सामना कर रहा है. नदी की तेज धारा में ग्रामीणों के घर-आंगन, खेत-खलिहान व सड़क आदि डूब गये हैं. गांव के लोग किसी तरह अपने परिवार व मवेशियों को लेकर सुरक्षित जगहों पर शरण ले रहे हैं. मंगलवार को प्रभात खबर ने हवाई अड्डा परिसर और टीएनबी कॉलेजिएट मैदान में रह रहे बाढ़ पीड़ितों से मिलकर उनकी समस्याओं को जाना. हवाई अड्डा में टेंट बनाकर रह रहे अमरी बिशनपुर के शंकर मंडल व अन्य लोगों ने बताया कि उनके मवेशियों व परिवार के लिए पीने का पानी उपलब्ध नहीं हो रहा है. हवाई अड्डा में इस समय एक हजार की आबादी व 500 से अधिक मवेशी रह रहे हैं. मैदान से चारा काटकर व बाजार से राशन खरीदकर परिवार व मवेशी का पेट भर रहे हैं. लेकिन इतने मवेशियों और आमलोगों के लिए पीने व दिनचर्या के लिए पानी उपलब्ध नहीं हो रहा है. एक टैंकर लगाया गया है, जो कुछ घंटों पर खत्म हो जाता है. चापाकल के अलावा लोग जेलरोड व आसपास के मुहल्लों में पानी के लिए भटकते रहते हैं. इधर, टीएनबी कॉलेजिएट मैदान में रह रहे चवनियां गांव के लक्ष्मण मंडल ने बताया कि बाढ़ पीड़ितों को सरकारी मदद के नाम पर सिर्फ प्लास्टिक शीट दिया गया है. बीते वर्षों की तरह भोजन, पशुचारा, दवा और शुद्ध पेयजल की व्यवस्था नहीं की गयी है. यहां रह रहे लोग जनप्रतिनिधियों और प्रशासन के इस उपेक्षा से काफी नाराज हैं. ग्रामीणों का कहना है कि चुनाव आते ही नेता हमारे गांव में आकर पैर पकड़ते हैं. लेकिन जब जरूरत पड़ती है तो झांकने तक नहीं आते. कहां-कहां बाढ़ पीड़ितों ने ली शरण : शहर के हवाई अड्डा परिसर, टीएनबी कॉलेज मैदान, टीएमबीयू का टिल्हा कोठी, किलाघाट, नरगा कोठी, सीटीएस से सटे चर्च मैदान व महाशय ड्योढ़ी मैदान व मायागंज स्थित विसर्जन घाट के किनारे बाढ़ पीड़ितों का हुजूम दिख रहा है. दियारा स्थित शंकरपुर, रत्तीपुर बैरिया व गोसाईंदास व शहजादपुर पंचायत के करीब एक दर्जन गांवों के लोग विस्थापित हो चुके हैं. खुले आसमान के नीचे मैदानों में प्लास्टिक शीट का टेंट बनाकर यहां रह रहे हैं. टेंट में अपने बच्चों, घर के वृद्धजनों, महिलाओं व सामान को रखकर कष्टप्रद जीवन बिताने को मजबूर हैं. डूबे घरों में कई सामानों को छोड़कर लोग अभी भी नाव के सहारे निकल रहे हैं. वहीं कई लोग अभी भी घरों के छज्जे व छप्पर पर रहकर अपने घरों के सामान की रखवाली कर रहे हैं. घरों में रखा अनाज व पशुचारा भींगकर सड़ने गया है.

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