Loading election data...

भागलपुर: एक महीने में बुनकरों द्वारा तैयार कपड़ों का तीन से चार करोड़ अधिक का होता कारोबार

भागलपुर मुख्य बाजार के कारोबारियों की मानें, तो यहां पर कोलकाता व दिल्ली से सावन के ड्रेस बनकर आते हैं. इसमें भागलपुर की बनी डल की चादर व गमछा की मांग 30 से 40 प्रतिशत तक बढ़ गयी है.

By RajeshKumar Ojha | July 26, 2024 5:10 AM

दीपक राव, भागलपुर
भागलपुर. एक ओर जहां सावन में भागलपुर भगवान शिव की भक्ति में डूबा है, वहीं दूसरी ओर यहां के बुनकरों पर सावन खुशहाली बरसा रहा है. इनके कारोबार में खासा वृद्धि हो रहा है. डल चादर की मांग बढ़ गयी है, तो अधिकतर कांवरिया भगवा व उजला गमछा खरीद रहे हैं. इससे एक महीने के सावन में इस बार तीन से चार करोड़ का अतिरिक्त कारोबार होगा.

भागलपुर मुख्य बाजार के कारोबारियों की मानें, तो यहां पर कोलकाता व दिल्ली से सावन के ड्रेस बनकर आते हैं. इसमें भागलपुर की बनी डल की चादर व गमछा की मांग 30 से 40 प्रतिशत तक बढ़ गयी है. उन्होंने बताया कि हरेक रविवार को 50 हजार से एक लाख कांवरिया तक अजगैबीनाथ व भागलपुर गंगा तट से जल भरकर कांवर उठा रहे हैं. एक गमछा 70 से 150 रुपये तक में मिलता है, जबकि डल की चादर 300 से 450 रुपये में.

युवा सिल्क उद्यमी तहसीन सवाब ने बताया कि सुल्तानगंज और भागलपुर गंगा तट से केवल रविवार को सोमवारी के लिए एक लाख तक कांवरिया जल भरते हैं. एक-एक कांवरिया 100 रुपये का ही कपड़ा खरीदता है, तो एक दिन में 50 लाख से एक करोड़ का कारोबार हो रहा है. ऐसे में एक माह के सावन में तीन से चार करोड़ का कारोबार होता है. इसमें कटोरिया, अमरपुर, भागलपुर समेत अन्य क्षेत्रों के बुनकरों के बने कपड़े की बिक्री हो रही है.

गमछा तो जरूर खरीदते हैं कांवरिया

चादर, गमछा व सिल्क कपड़ा के कारोबारी रतीश झुनझुनवाला ने बताया कि यहां पर हजारों की संख्या में दूसरे प्रांत ही नहीं, दूसरे देश के श्रद्धालु जल भरकर कांवर उठाते हैं. भागलपुर की सौगात के रूप में डल चादर खरीदना नहीं भूलते और एक गमछा तो हरेक कांवरिया को जरूर खरीदना पड़ता है. एक दिन में डेढ़ से दो लाख रुपये की डल की चादर भागलपुर बाजार में बिक जाता है, जबकि गमछा एक से डेढ़ लाख रुपये का. इसके अलावा सिल्क के कपड़े-भागलपुरी तसर की बिक्री होती है. इसमें कुर्ता, साड़ी व सलवार-सूट के कपड़े शामिल हैं.

कांवरियों के हर ठहराव पर हैं स्टॉल
बुनकर संघर्ष समिति के मो सिकंदर ने बताया कि फरवरी, मार्च और अप्रैल में डल की चादर की अधिक बिक्री होती है. दरअसल, गर्मी में इस चादर को ओढ़ने पर ठंडक व आरामदायक लगता है. चंपानगर के बुनकर हेमंत कश्यप ने बताया कि सिल्क वस्त्र, डल की चादर व गमछे का स्टॉल कांवरियों के लगभग हरेक स्टॉपेज पर है. फेरीवाले भी बेचते हैं. यह भी बताया अधिक फायदा कमाने के लिए नकली सामान भी बिकता है. गया से मिलती-जुलती चादर आती है. वह भी डल की तरह दिखती है, लेकिन आरामदायक नहीं होती है.

Exit mobile version