कांग्रेस के दिग्गज नेता सदानंद सिंह का आज पटना के एक प्राइवेट अस्पताल में इलाज के दौरान निधन हो गया. सदानंद सिंह बिहार की राजनीतिक आकाश के चमकते सितारे थे. इनकी चमक कभी भी धूमिल नहीं पड़ी. सदानंद सिंह ने कहलगांव विधानसभा से ही हमेसा चुनाव लड़ा. उनसे अपराधी भी खौफ खाते थे.
सदानंद सिंह कहलगांव में शांति–व्यवस्था स्थापित करने के लिए जाने जाते थे. अपराधियों के सामने उनका अच्छा-खासा खौफ था. जैसे–जैसे कहलगांव विधान सभा क्षेत्र का जातीय चुनावी समीकरण बिगड़ा तो नये–नये विरोधी पनपे, लेकिन सदानंद सिंह के कद के सामने वे तुच्छ साबित हुए.
कुख्यात सुदामा मंडल , सुमन सिंह, नंदकिशोर सिंह सरीखे कुख्यात भी नरम पड़ गये. सभी अपराधियों को अपने क्षेत्र से तड़ीपार करके रखा. क्षेत्र के लोग भी इस बात को स्वीकार करते हैं कि सदानंद राज में क्षेत्र में अपराध और अपराधी पनप नहीं पाये.
सत्ता में रहे या सत्ता से बाहर, सदानंद सिंह की धाक कभी कम नहीं हुई. अपने दल के अलावा सभी दलों के आला राजनीतिज्ञों के साथ उनका मधुर संबंध रहा. सभी दलों के राजनेता व सुप्रीमो उनका समान भाव से आदर करते थे. 1967 ई. में कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कर महज 25 साल की उम्र में 1969 ई. में पहली बार बिहार विधान सभा के सदस्य बने. इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.
अपनी लोकप्रियता, और राजनीतिक सूझबूझ के बूते सदानंद सिंह ने 1972 ई., 1977 ई. और 1980 ई. में लगातार जीत हासिल की. बावजूद इसके 1985 में इन्हें कांग्रेस से टिकट काट दिया गया. तब ये निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनावी अखाड़े में उतर आये और चुनाव जीते तो कांग्रेस आलाकमान की नजर में उनका कद और ऊंचा हो गया.
कहलगांव में सदानंद बाबू को कांग्रेस का पर्याय माना जाने लगा. कहा जाने लगा कि यहां सदानंदी वोटर काम करता है. आज कहलगांव की जनता और सदानंद सिंह के समर्थकों में शोक की लहर है.
POSTED BY: Thakur Shaktilochan