आरफीन, भागलपुर: मौसम के बदले मिजाज व गंगा में बढ़ते जलस्तर की वजह से सैकड़ों क्विंटल मकई बर्बाद हो गये हैं. ऐसे में न खरीदार मिल रहे हैं, न सुखाने व रखने के लिए जगह मिल रही है. हालात ये है कि कोई फ्री में भी मकई लेने को तैयार नहीं है. अन्नदाता को आर्थिक संकट से जूझना पड़ रहा है. यहां तक कि वे मकई के बीज का बकाया पैसा भी दुकानदार को नहीं चुका पा रहे हैं. किसानों ने सैकड़ों क्विंटल मकई खिरनीघाट में यहां-वहां फेंक दिया है. पानी लगने से मकई खराब हो चुका है. यहां तक कि पशु का चारा तक नहीं बन पा रहा है. किसानों की माने, तो 10 लाख से ज्यादा का नुकसान हुआ है. अब उनके पास भोजन तक का पैसा नहीं है. उसी मकई को धूप दिखा कर सुखा रहे हैं. किसानों को सरकार से मुआवजा मिलने का इंतजार है.
गंगा का जलस्तर बढ़ने से शंकरपुर दियारा में पानी घुस गया है. दियारा स्थित मकान में किसानों ने सैकड़ों क्विंटल मकई तैयार कर रखा था. अचानक से जलस्तर बढ़ने से उन किसानों के घर में पानी घुस गया. किसानों को समय तक नहीं मिल पाया कि मकई को पानी से बचाया जा सके. ऐसे में दर्जनों किसानों के घर में रखा तैयार मकई पानी लगने से बर्बाद हो गया.
किसान अशोक कुमार मंडल ने बताया कि खेत या गांव से खरीद की व्यवस्था होती, तो शायद इस मुश्किल दौर से नहीं गुजरना पड़ता. 30 बीघा में मकई की खेती की थी. 400 क्विंटल मकई की उपज हुई थी. सरकार की ओर से खरीद की व्यवस्था गांव में ही कर दी जाती, तो शायद आज ये दिन नहीं देखना पड़ता. इसी आस पर बीज उधार लिया था कि फसल की बिक्री के बाद उधार का पैसा लौटा देंगे. वहीं किसान कन्हैया मंडल ने बताया कि पानी लगने से उनका 80 क्विंटल से ज्यादा तैयार मकई खराब हो गया है. बाजार में बिक नहीं रहा, न ही फ्री में कोई ले जा रहा है. कई क्विंटल खराब मकई को फेंकना पड़ा. सरकार गांव से ही तैयार फसल की खरीदारी करती, तो किसानों को राहत मिल जाती. किसान जगदीश ठाकुर, बिंदेश्वरी मंडल व हर किशोर मंडल ने बताया कि उनका क्रमश : 80 क्विंटल, 30 क्विंटल व 40 क्विंटल तैयार मकई बर्बाद हो गया. मकई के साथ लागत भी डूब गया. पास में इतना पैसा नहीं है कि मजदूर को मजदूरी दे सकें. किसानों ने बताया कि अब सरकार का ही सहारा है. मुआवजा मिल जाये, तो कुछ परेशानी दूर हो पायेगी.
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जनप्रतिनिधियों द्वारा बार-बार प्रोसेसिंग यूनिट लगाने की बात उठायी जाती रही है. लेकिन धरातल पर इस दिशा में कुछ नहीं किया गया. जानकार बताते हैं कि प्रोसेसिंग यूनिट होती, तो शायद किसानों का यह हाल नहीं होता. प्रोसेसिंग यूनिट से मकई की दूसरी चीजों के उत्पादन किये जा सकते थे. साथ ही किसानों को उनकी मजदूरी मिल जाती.
बाढ़ से दियारा क्षेत्र को बचाने के लिए ठोस व्यवस्था नहीं की गयी है. हर साल बाढ़ आने पर दियारा क्षेत्र के लोगों की मुश्किलें बढ़ जाती हैं. बाढ़ में घर ढह जाता है. फसल बर्बाद हो जाते हैं. हालांकि जनप्रतिनिधियों द्वारा बाढ़ आने पर आश्वासन जरूर दिया जाता है. लेकिन इस दिशा में कुछ नहीं किया जाता है.
किसानों ने बताया कि दियारा क्षेत्र से फसल लाने के लिए कोई व्यवस्था नहीं है. किसान किसी तरह फसल को सुरक्षित स्थान पर खुद ले जाते हैं. दियारा क्षेत्र में फसल खरीदने के लिए व्यापारी भी नहीं के बराबर पहुंचते हैं. व्यापारी को पहुंचा कर देना होता है. इसी बीच बाढ़ आ गयी.
Posted By: Thakur Shaktilochan