बिभांशु, बांका: 18 नवंबर 2020 की एक घटना है. अमरपुर के भदरिया गांव के निकट चांदन नदी में ग्रामीण छठ घाट तैयार कर रहे थे. दौरान नदी के अंदर एक दीवार, कई घड़े व अन्य वस्तुएं मिली. इसकी जानकारी जिला प्रशासन को दी गयी. एकाएक यह नदी तट सुर्खियों में आ गया. पुरातत्व की टीम पहुंची. बाद में मुख्यमंत्री ने भी 12 दिसंबर 2020 को यहां आये. पुरानी सभ्यता के निशान देख दंग रहे गये.
उस दौरान सीएम ने इसे पर्यटन क्षेत्र के रूप में विकसित करने की बात कही. साथ ही गौतम बुद्ध के भदरिया आगमन के दावे को देखते हुए इसके बौद्ध सर्किट से भी जोड़ने की चर्चा की गयी. लेकिन, आज दो साल का समय पूरा हो चुका है. जिस स्थल पर 2600 वर्ष पुरानी सभ्यता के अवशेष मिले थे, वह फिर से नदी के अंदर समा गया है. जो दीवारें व ईंट मिली थीं, कुछ लोग सभी उठाकर ले गये. अब उसमें घास-फूस व बालू भर गया है. देखने से बंजर जमीन लग रही है. निश्चित रूप से पर्यटन विभाग व भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की उदासीनता ने पर्यटन के रूप में अपार संभावनाओं वाले इस नदी स्थल व क्षेत्रवासियों को घोर निराशा में धकेल दिया है.
जानकारी के मुताबिक, जब मुख्यमंत्री यहां आये थे तो पुरातत्व व इतिहासकारों की कई टीमें यहां पहुंची थीं. इसकी खुदाई की पूरी रूपरेखा तय की गयी थी. लेकिन, लंबे समय से न तो पुरातत्व विभाग ने इसमें दिलचस्पी ली है और न ही कोई टीम पहुंच रही है. पहले इसके सुरक्षा का भी इंतजाम था. लेकिन, अब कुछ नजर नहीं आ रहा. ज्ञात हो कि इसकी विस्तृत खुदाई को लेकर चांदन नदी की जलधारा जो 1995 से जिस दिशा में बह रही थी, उसे दूसरी ओर मोड़ने के लिए बांध भी बनाया गया. प्रतिदिन यहां से बालू की अंधाधुन खुदाई व उठाव जारी है.
विगत वर्षों में यहां किये गये शोध में चांदन नदी की धार से मिले भवन के अवशेष 2600 वर्ष पुराने बताये गये थे, जो नव पाषाण युग है. बौद्धकाल में यहां भगवान गौतम के भी पांव पड़े थे. यानी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग जमीन के अंदर जब अपना दखल शुरु करता, तो भदरिया के आंगन में बौद्धकाल (583 ईसा पूर्व) व नवपाषाण युग (2600 वर्ष) का अद्भुत संगम देखने को मिलता. खुदाई में युग की गणना अौर पीछे जा सकती थी. साथ ही नयी जानकारी मिलती. भदरिया की पृष्ठभूमि अन्य प्रसिद्ध पौराणिक काल से जुड़ सकती थी.
स्थानीय फंटूश पासवान ने बताया कि जब यहां नदी के अंदर पुरानी सभ्यता की दीवार मिली थी तो टीम आयी. बाद में मुख्यमंत्री भी आये, तो संभावना थी कि इसे पर्यटन के रूप में विकसित किया जायेगा. लेकिन, अब पहल नहीं हो रही है. लेकिन, आज भी खुदाई हो तो बहुत कुछ मिल सकता है. वहीं, दिनेश यादव ने कहा कि यहां खुदाई में 2600 वर्ष पुराना बसा गांव, घर की दीवार, कलश व काफी चौड़ी ईंट मिली थी. लेकिन, एक वर्ष से यहां कोई टीम नहीं आ रही है. इससे क्षेत्रवासियों में घोर निराशा है.
वहीं, अखिल भारतीय कोयला मजदूर संघ के अध्यक्ष लखन लाल पाठक ने बताया कि पहले दौर में पुरातत्व विभाग की टीम आयी थी. नदी की धार मोड़ने के लिए बांध भी बनाया गया. लेकिन, बाद में न तो कोई सर्वे टीम आयी, न ही कोई रिपोर्ट ही भेजी गयी है. सरकारी स्तर पर राशि भी खर्च की गयी है. अगर इसपर ध्यान व संज्ञान नहीं लिया जायेगा, तो इसका संरक्षण व पर्यटन की संभावनाओं को पंख नहीं मिलेंगे. इसीलिए विभाग व सरकार को गंभीर होने की आवश्यकता है.
मामला संज्ञान में है. पुरातत्व विभाग को पुन: अवगत कराया जायेगा. ऐसे ऐतिहासिक धरोहरों को संजोने का प्रयास किया जायेगा- अंशुल कुमार, डीएम, बांका