शाहकुंड प्रखंड के खेरही कस्बा के मिश्रा टोला में एक नाले की खुदाई के दौरान साढ़े छह फीट ऊंची प्राचीन मूर्ति मिलने के बाद जिले के पुरातत्वविदों ने कई तरह की जानकारियां मूर्ति के संबंध में दी.
इस संबंध में जाने-माने इतिहासविद् शिव शंकर सिंह पारिजात ने कहा कि मूर्तकला की विशिष्टताओं से युक्त इस मूर्ति के गले में कंठहार, सिर योद्धाओं के द्वारा धारण किये जानेवाले शिरस्त्राण तथा कमर में मेखला है, जो इस सर्वतोभद्रिका मूर्ति के सौंदर्य को द्विगुणित कर रहा है.
मूर्तिकला के विश्लेषण के उपरांत प्राप्त मूर्ति के बारे में टीएमबीयू के प्राचीन इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के अध्यक्ष डॉ. बिहारीलाल चौधरी ने बताया कि यह पालकालीन विशेषताओं से युक्त है. इस हृष्ट-पुष्ट कायावाली मूर्ति में लिंग प्रदर्शित है, जो तंत्रयान का प्रभाव लिये हुए प्रथम दृष्टया यक्ष की परिलक्षित होती है. डा. चौधरी ने बताया कि मूर्ति के साथ पकी मिट्टी का बना एक बर्तन का अग्रभाग भी मिला है, जो चीलम प्रतीत होता है जिसे तांत्रिक क्रियाओं में प्रयुक्त किया जाता है.
विदित हो कि भागलपुर जिले के कहलगांव में प्राचीन विक्रमशिला बौद्ध महाविहार अवस्थित है जो तंत्रयान का एक प्रमुख केंद्र था. कुछ दिन पूर्व भी यहां दो प्राचीन मूर्तियां मिली थीं, जिन्हें ग्रामीण संरक्षित किये हुए हैं. इस संबंध में इतिहास के जानकार पूर्व उप जनसम्पर्क निदेशक शिव शंकर सिंह पारिजात ने बताया कि ऐतिहासिक खेरही पहाड़ी पर पूर्व में प्राचीन शंखलिपि के साथ कई महत्वपूर्ण मूर्तियां मिली हैं. यहां पालकाल के उपरांत राजा शशांक की उप राजधानी भी थी, जहां उनका स्कंधावर था. खेरही में केवल नरसिंह की पूर्व में एक प्राचीन मूर्ति भी मिली है.
एसएम कालेज के प्राचार्य इतिहासविद् प्रो. रमन सिन्हा ने कहा- प्राचीन अंग क्षेत्र के भागलपुर के गुवारीडीह तथा बांका जिला के भदरिया के साथ शाहकुंड में जिस तरह पुरातात्विक अवशेष मिले हैं, जरूरी है कि इनकी शीघ्रातिशीघ्र खुदाई करायी जाये.
Posted by: Thakur Shaktilochan