जंग-ए-आजादी में उबल पड़ा था कटिहार,आज के दिन ही अंग्रेजों से लोहा लेते युवा हुए थे शहीद
12 अगस्त 1942 को जिले के कई हिस्सों में स्वाधीनता संग्राम में शामिल वीर सपूतों ने अंग्रेजों की गोली से शहीद हो गये थे. जबकि उसके अगले ही दिन 13 अगस्त को कटिहार शहर सहित कई इलाके में अंग्रेजों से लोहा लेते हुए यहां के नौजवानों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी.
कटिहार : स्वाधीनता संग्राम में कटिहार जिला का काफी महत्वपूर्ण योगदान रहा है. खासकर 12 व 13 अगस्त को कटिहार के क्रांतिवीरों के नामों के लिए जाना जाता है. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने ब्रिटिश हुकूमत से मुक्ति के लिए अगस्त 1942 में जब भारत छोड़ो आंदोलन का आह्वान करते हुए करो या मरो का नारा दिया था. तब न केवल कटिहार जिला के सपूतों पर उसका प्रभाव पड़ा. बल्कि आम लोग भी भारत छोड़ो आंदोलन के नारे से प्रभावित थे. गांधी के इस नारों का छात्रों पर भी व्यापक प्रभाव था. यही वजह है कि 12 अगस्त 1942 को जिले के कई हिस्सों में स्वाधीनता संग्राम में शामिल वीर सपूतों ने अंग्रेजों की गोली से शहीद हो गये थे. जबकि उसके अगले ही दिन 13 अगस्त को कटिहार शहर सहित कई इलाके में अंग्रेजों से लोहा लेते हुए यहां के नौजवानों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी.
शहादत को याद करते हैं लोग
जानकारों की मानें तो स्वाधीनता संग्राम के इतिहास में यह दो तारीख काफी महत्वपूर्ण स्थान रखती है. स्वाधीनता संग्राम में जिस तरह छात्र ध्रुव कुंडू ने गोली खाकर अंग्रेजों से लड़ते लड़ते शहीद हो गये. वह आज भी छात्रों और युवाओं के लिए प्रेरणादायी बना हुआ है. स्वाधीनता संग्राम के आखरी दशक में कटिहार के लोगों ने अपने अपने तरीके से योगदान दिया. दर्जनों ज्ञात-अज्ञात लोगों ने वतन के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिया. जबकि बड़ी तादाद में लोगों ने इस संग्राम को मुकाम तक पहुंचाने में सहयोग दिया. देश के रणबांकुरों की वजह से 15 अगस्त 1947 को भारत अंग्रेजो के गुलामी से मुक्त हुआ. इस बार भारत के स्वाधीनता के 73 वर्ष पूरे हो रहे है. साथ ही आजादी के इस आंदोलन में कटिहार के वीर सपूतों ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया था. खास कर 13 अगस्त 1942 को तो यहां के कई वीर सपूत ने जंग-ए-आजादी में अपनी शहादत दे दी.
देखते देखते शहीद हो गये थे आधा दर्जन से अधिक युवा
आज के दिन इन रणबांकुरों ने दी थी शहादत : जब महात्मा गांधी ने भारत छोड़ो आंदोलन का आह्वान करते हुए करो या मरो का नारा दिया. तब यहां के रणबांकुरों में उबाल आ गया. स्वाधीनता संग्राम के इस अंतिम दौर कटिहार जिले की वीर सपूतों ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया. खासकर 13 अगस्त का दिन कटिहार जिले के लिए ऐतिहासिक है. इस दिन अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा था. इसी दिन ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ लड़ते हुए यहां के 13 लोगों ने अपनी जान गंवा दी थी. इसमें छात्र ध्रुव कुंडू के अलावा रामाशीष सिंह, रामाधार सिंह, कलानंद मंडल, दामोदर साह, बिहारी साह, भूसी साह, फूलो मोदी, नाट्य यादव, नाट्य तियर, लालजी मंडल, झबरू मंडल, झबरू मंडल (झौआ) आदि शामिल है. इन लोगों की शहादत ने जंग-ए- आजादी को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी. देश के आजाद होने तक कई प्रमुख लोगों ने अलग-अलग भूमिका में स्वाधीनता संग्राम के अलख को जगाए रखा. गुरुवार को कटिहार जिले में अगस्त क्रांति दिवस पर कई जगहों पर मनाया जायेगा.
स्वाधीनता संग्राम में अगस्त महीने का महत्व
देश की जंग-ए-आजादी में यूं तो हर दिन वा महिना का महत्व रहा है. पर अगस्त महीना का एक अलग ही महत्व है. वर्ष 1857 में सिपाही विद्रोह के जरिए देश में स्वाधीनता संग्राम की शुरुआत हुयी. उसके 90 वर्ष बाद यानी वर्ष 1947 में भारत गुलामी की जंजीरों से मुक्त हुआ. इस दौरान देश के विभिन्न क्षेत्रों में आजादी के दीवानों ने अपने अपने हिसाब से जंग-ए-आजादी में भागीदारी थी. कटिहार जिला भी इसमें पीछे नहीं रहा. जानकार बताते हैं कि कटिहार के लोग भी अपने-अपने हिसाब से देश की आजादी के लिए काम कर रहे थे. जब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी कटिहार पहुंचे. तब यहां के युवाओं एवं छात्रों में देश को आजादी दिलाने के लिए एक दीवानगी छा गयी. यहां के लोगों ने अलग-अलग दस्ता तैयार कर आजादी के लिए काम किया. अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ कटिहार जिले के शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में भी जबरदस्त आंदोलन हुआ.
posted by ashish jha