इतने वर्षों की शिक्षा ने हमें नौकर बनाया, अब शिक्षित हो दूसरों को नौकरी दें : कुलाधिपति

इतने वर्षों की शिक्षा ने हमें नौकर बनाया, अब शिक्षित हो दूसरों को नौकरी दें : कुलाधिपति

By Prabhat Khabar News Desk | June 13, 2024 9:31 PM

बीएयू सबौर में आयोजित इंटरनेशनल सेमिनार इएआर 2024 के उद्घाटन समारोह में बिहार के राज्यपाल सह कुलाधिपति राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर शामिल हुए

वरीय संवाददाता, भागलपुर

बिहार कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू) सबौर परिसर में गुरुवार से दो दिवसीय इंटरनेशनल सेमिनार इएआर 2024 की शुरुआत हुई. उद्घाटन समारोह में बिहार के राज्यपाल सह कुलाधिपति राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर व ऑनलाइन विधि से बिहार के कृषि सह स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने भागीदारी की. सेमिनार का विषय था – कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाना : स्वतंत्रता से अमृत काल तक ग्रामीण विकास की यात्रा. राज्यपाल ने उद्घाटन समारोह में कहा कि संगोष्ठी के विषय को लेकर मैं कुछ जानता ही नहीं. लेकिन आप सब इस पर विमर्श कर देश के लिए निचोड़ दें. मेरा मानना है कि विश्वविद्यालय को महाविद्यालय नहीं बनना चाहिए. हम एग्रीकल्चर से बीएससी व एमएससी की डिग्री महाविद्यालय से पा सकते हैं. लेकिन विश्वविद्यालयों में अनुसंधान होते हैं. अनुसंधान के आधार पर जो निष्कर्ष आता है, वह निष्कर्ष हमारे किसानों के लिए सिद्ध होने चाहिए. कृषि विश्वविद्यालय का संचालन क्लास रूम में नहीं होना चाहिए. इसका अनुसंधान जमीन पर होना चाहिए.

हजारों वर्षों से देश के किसान हमारा भरण-पोषण कर रहे हैं. किसानों ने अनुसंधान व कृषि की शिक्षा क्लास रूम में नहीं पायी थी. उन्होंने बीएयू के छात्रों को कहा कि बीएससी व एमएससी की डिग्री लेकर किसी के नौकर नहीं बनें. खुद के पैर के खड़े होकर दूसरे को नौकरी दें. इतने वर्षों की शिक्षा ने हमें नौकर बनाया है. 2047 में भारत का विकसित रूप नौकर बना कर नहीं होगा. देश विकसित तब होगा, जब युवा यह सोचकर आगे बढ़े कि मैं कुछ कर के दिखाऊंगा. कुलाधिपति ने कहा कि कृषि के छात्र डिग्री लेने के बाद करेंगे क्या. डिग्री को लेकर ऑफिस में जाकर नौकरी मांगेंगे. कुलाधिपति ने कहा कि गांव में ही रहने वाले लोगों की समृद्धि के लिए हमें सोचना होगा. विकसित भारत का मतलब गांव के लोगों का विकास है.

प्राकृतिक खेती से किसान की आय दोगुनी होगी

आयुर्वेद ने वृक्षों के स्वास्थ्य पर विचार किया है. बावजूद दुनिया हमें केमिकल फर्टिलाइजर, नाइट्रोजन, फास्फोरस, यूरिया समेत कई विषैले तत्व दे रहे हैं. इस समय आवश्यकता है प्राकृतिक खेती की. प्रकृति ने हमें सब कुछ दिया है. पुराने जमाने में देसी गाय के गोबर व मूत्र से खाद बनता था. हिमाचल प्रदेश में दो लाख किसान प्राकृतिक खेती कर रहे हैं. इससे खेती में लागत 27.5 प्रतिशत कम होती है, वहीं उत्पादन 52 प्रतिशत बढ़ता है. यह मैंने अपनी आंखों से देखा है. प्रधानमंत्री ने कहा है कि किसानों की आय दोगुनी होनी चाहिए. यह फर्टिलाइजर व केमिकल के उपयोग से नहीं होगा. जमीन की उत्पादन क्षमता बढ़ाने से ही किसानों की आय दोगुनी होगी. हिमाचल प्रदेश में प्राकृतिक खेती कर रही महिलाओं ने अपना अनुभव सुनाया था. उनमें से एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर थी. उन्होंने बताया कि खेती में उसकी आय नौकरी के पेमेंट से अधिक है. हिमाचल प्रदेश में चार कृषि विश्वविद्यालय हैं, जबकि बिहार में महज दो हैं. ऐसे में हम क्या अनुसंधान करेंगे. लेकिन बीएयू इस दिशा में कार्य कर रहा है.

पूरे बिहार में किसानों की आय बढ़नी चाहिए : कुलाधिपति ने कहा कि मैं गोवा से हूं. वहां मंत्री व विधानसभा अध्यक्ष रहा. मैंने मुख्यमंत्री मनोहर पारिकर से कृषि स्कूल खोलने को कहा. जहां शॉर्ट टर्म कोर्स करने के बाद छात्र खेतों में जाकर धान का उत्पादन करेंगे. पूरे बिहार में किसानों की आय बढ़नी चाहिए. इसके लिए अनुसंधान लैब की बजाय खेतों में होना चाहिए. किसानों को लगना चाहिए कि कृषि विश्वविद्यालय मेरे लिए है. ग्रामीण अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने के लिए शहरीकरण को रोकना होगा. गांव का शहरीकरण न हो. वहां पर सब मूलभूत सुविधाएं हो. गांव में रहनेवाले को खुश होना चाहिए.

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कृषि रोड मैप से बिहार में आया बदलाव : कृषि मंत्री

पटना मुख्यालय से ऑनलाइन विधि से कृषि सह स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने कहा कि संगोष्ठी के निष्कर्ष के आधार पर बिहार की कृषि व ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सुधार होगा. 1905 में पहली बार बिहार से कृषि अनुसंधान की शुरुआत हुई. 1908 में बिहार कृषि महाविद्यालय सबौर से ही कृषि शिक्षा की नींव रखी गयी. इसकी महत्ता को देखते हुए 2010 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर की नींव रखी. प्रथम हरित क्रांति के बाद बिहार में कृषि का विकास नहीं हो पाया. लेकिन अन्य राज्यों में हुआ. बिहार कृषि आधारित राज्य है. आज 69-70 प्रतिशत इकोनॉमी कृषि आधारित है. 2005 में एनडीए की सरकार बनी. इसके बाद 2008-12 में पहले कृषि रोड मैप की शुरुआत हुई. दूसरा कृषि रोड मैप 2012 से 17, तीसरा कृषि रोड मैप 2018-22 तक हुआ. इससे धान, गेहूं व मक्का उत्पादन दोगुना बढ़ा. बिहार को केंद्र सरकार से चार बार कृषि कर्मण पुरस्कार मिला. बिहार का आर्थिक विकास दर 10 प्रतिशत है. इसमें कृषि का महत्वपूर्ण योगदान है. फिर 2023 में चौथा कृषि रोड मैप लागू हुआ. बिहार कृषि विवि सबौर ने शिक्षा, शोध में बेहतर काम किया. कोरोना काल से 80 करोड़ आबादी को मुफ्त राशन योजना में बिहार के अनाज का योगदान रहा है. बिहार में कृषि की समृद्धि के बिना देश विकसित नहीं हो सकता है. कृषि मंत्री ने कहा कि दो दिन बाद आम की प्रदर्शनी लगेगी. आम के निर्यात को बढ़ाने के लिए यह पहल होगी.

कार्यक्रम में मंच पर बीएयू के कुलपति डॉ डीआर सिंह, यूएसए से कंसास स्टेट यूनिवर्सिटी के निदेशक डॉ पीवी वाराप्रसाद, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद नई दिल्ली के पूर्व निदेशक डॉ एचपी सिंह, त्रिभुवन विश्वविद्यालय काठमांडू से प्रो राजनारायण यादव, सामाजिक कार्यकर्ता रामाशीष सिंह, बीएयू के डीन एके साहा समेत कई गणमान्य उपस्थित थे.

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