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सुंदरवन में स्कूली बच्चों ने जाना गरुड़ संरक्षण का महत्व

स्कूली बच्चों ने जाना गरुड़ संरक्षण का महत्व

नवगछिया. पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग, वन प्रमंडल, भागलपुर की ओर से शहर के सुंदरवन में गरुड़ जागरूकता अभियान के तहत नवगछिया के ढोलबज्जा के रेसिडेंशियल मॉडर्न इंग्लिश स्कूल के छात्र-छात्राओं को गरुड़ सेवा व पुनर्वास केंद्र का अवलोकन कराया गया. स्कूली बच्चों में गरुड़ के संरक्षण के बारे में मंदार नेचर क्लब के संस्थापक अरविंद मिश्रा ने प्रोजेक्टर से कई महत्वपूर्ण जानकारी साझा की. बच्चों को बिहार-झारखंड का एकमात्र कछुआ रेस्क्यू सेंटर दिखाया गया. 2006 से गरुड़ संरक्षण के लिए कार्य करने वाले मंदार नेचर क्लब के संस्थापक ने विस्तार पूर्वक बताया कि हमने इस प्रजाति को बचाने के लिए लोगों को गरुड़-पुराण से खेती तक में इनके महत्व को समझाया है. हर टोले के लोगों को जोड़ा, हमने हर टोले से गरुड़ सेविअर, गरुड़ गार्जियन और गरुड़ सेविका जैसे सक्रिय सदस्य बनाये, जो हमारे नेटवर्क की तरह काम करते हैं. गरुड़ प्रजनन क्षेत्र कदवा में स्थानीय लोगों की मदद से यहां गरुड़ों की संख्या 600 से अधिक हो चुकी है. अगस्त-सितंबर में यह पक्षी इस इलाके में प्रजनन के लिए आते हैं. गांव वाले सिर्फ पक्षी की सेवा ही नहीं, बल्कि घुमंतू शिकारियों से उनकी रक्षा करते हैं. अरविंद मिश्रा ने बच्चों को बताया कि भागलपुर जिले के दियारा क्षेत्र के गांवों में शुरू से ऐसा नहीं था. गरुड़ पक्षी को लेकर कई भ्रांतियां थीं. वर्ष 2006 से पहले लोग दियारा क्षेत्र में जाने से डरते थे. 2006 में इन्हें इस जगह पर गरुड़ों के होने की खबर लगी. साल के नौ महीने यहां गरुड़ का ठिकाना रहता है. इस कार्य में जय नंदन मंडल की बड़ी भूमिका रही है. बिहार के वन्य जीव चिकित्सा पदाधिकारी डॉ संजीत कुमार ने स्कूली बच्चों को बताया कि भागलपुर जिले के कदवा दियारा में भोजन की पर्याप्त उपलब्धता व मौसम अनुकूल होने से यहां गरुड़ों की संख्या बढ़ रही है. कंबोडिया व भारत के असम राज्य में गरुड़ों की संख्या घट रही है. विश्व का तीसरा सबसे बड़ा प्रजनन केंद्र कदवा दियारा ही है. दुनिया का एकमात्र गरुड़ का पुनर्वास केंद्र यहीं सुंदरवन में है. गरुड़ के संरक्षण के लिए भागलपुर के सुंदरवन में गरुड़ पुनर्वास केंद्र की स्थापना 2014 में की गयी थी. यहां पेड़ से गिर कर घायल व अकारण बीमार गरुड़ों का इलाज किया जाता है. ठीक होने के बाद उन्हें पुनः कदवा के प्राकृतिक आवास में छोड़ दिया जाता है. गरुड़ को लोग तंग न करें इसके लिए हम लोग लगातार क्षेत्र में जागरूकता फैला रहे हैं. अब आसपास के क्षेत्र में गरुड़ ऊंचे-ऊंचे कदंब, पीपल, सेमल, पाकड़ के पेड़ों पर घोंसला बना कर रहते हैं. यहां अनुकूल आबोहवा, भोजन और पानी की उपलब्धता से गरूड़ यहां रहना पसंद करते हैं. बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (बीएनएचएस) के शोधार्थी वर्तिका, अभय राय और सुष्मित ने पक्षियों के प्रवासी मार्गों और प्रवास से संबंधित वैज्ञानिक कार्यों के बारे में विस्तृत जानकारी दी. मौके पर पशु-पक्षी प्रेमी शिक्षक मुकेश चौधरी, गौरव सिन्हा, वतन कुमार, पक्षी पालक मो अख्तर, मो मुमताज और मो अरसद सहित वनरक्षी अनुराधा सिन्हा, वनरक्षी प्रियंका कुमारी, गरुड़ सेवियर्स प्रशांत कुमार कन्हैया, स्कूल के निदेशक कुमार रामानंद सागर, प्राचार्य शंभु कुमार सुमन, गरुड़ सेवियर्स दीपक कुमार, विनय कुमार, वरुण कुमार, सुकुमल कुमार सोनी सहित कई पर्यावरण प्रेमी उपस्थित थे.

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