संजीव झा/ Bhagalpur News. प्रचलित श्लोक त्वमेव माता च पिता त्वमेव की जगह अगर शिक्षक यह पढ़ायें कि त्वमेव जननी च जनक: त्वमेव, तो क्या यह सही होगा ? इसी तरह का सवाल लाखों पाठकों का श्रीमदभागवतम और श्रीमदभागवत महापुराण के पहले स्कंध के प्रथम अध्याय के दो श्लोकों पर खड़ा हो गया है. यह बता दें कि श्रीमदभागवतम दी भक्तिवेदांत बुक ट्रस्ट की है, जबकि श्रीमदभागवत महापुराण गीताप्रेस, गोरखपुर की. 11वें श्लोक में जहां श्रीमद्भावतम में ‘भद्रायभूतानां’ लिखा गया है, वहीं श्रीमदभागवत महापुराण के इसी श्लोक में ‘श्रद्दधानानां’ शब्द लिखा है. पाठक यह सवाल कर रहे हैं कि हम इसे भद्रायभूतानां पढ़ें या श्रद्दधानानां. वहीं 20वें श्लोक में जहां श्रीमद्भावतम में ‘कर्माणि’ लिखा गया है, वहीं श्रीमदभागवत महापुराण के इसी श्लोक में ‘वीर्याणि’ शब्द लिखा है. इस पर पाठक का सवाल है कि इसे कर्माणि पढ़ें या वीर्याणि.
श्रीमद्भागवतम के 11वें श्लोक का अर्थ
श्रीमद्भागवतम का 11वां श्लोक के अनुसार, शास्त्र अनेक प्रकार के हैं और उन सभी में अनेक निर्धारित कर्तव्य हैं, जिन्हें अनेक वर्षों के अध्ययन के पश्चात ही सीखा जा सकता है. अतः हे ऋषिवर, कृपया इन सभी शास्त्रों की मूल शिक्षाओं को चुनकर सभी जीवों के कल्याण के लिए उनका वर्णन करें, जिससे उनके हृदय संतुष्ट हो सकें.
श्रीमद्भागवत महापुराण के 11वें श्लोक का अर्थ
श्रीमद्भागवत महापुराण का 11वां श्लोक के अनुसार, शास्त्र भी बहुत-से हैं, परंतु उनमें एक निश्चित साधन का नहीं, अनेक प्रकार के कर्मों का वर्णन है. साथ ही वे इतने बड़े हैं कि उनका एक अंश सुनना भी कठिन है. आप परोपकारी हैं. अपनी बुद्धि से उनका सार निकालकर प्राणियों के परम कल्याण के लिये हम श्रद्धालुओं को सुनाइये, जिससे हमारे अन्तःकरण की शुद्धि प्राप्त हो.
श्रीमद्भागवतम के 20वें श्लोक का अर्थ
श्रीमद्भागवतम का 20वां श्लोक के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण और बलरामजी ने मनुष्यों की तरह क्रीड़ा की और वेश बदलकर अनेक अलौकिक कृत्य किये.
श्रीमद्भागवत महापुराण के 20वें श्लोक का अर्थ
श्रीमद्भागवत महापुराण का 20वां श्लोक के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण अपने को छिपाये हुए थे, लोगों के सामने ऐसी चेष्टा करते थे मानो कोई मनुष्य हों. परंतु उन्होंने बलरामजी के साथ ऐसी लीलाएं भी की हैं, ऐसा पराक्रम भी प्रकट किया है, जो मनुष्य नहीं कर सकते.
दोनों प्रकाशकों को भेजा गया पत्र, मांगी जानकारी
भारत, कनाडा, अमेरिका, सिंगापुर, फिलिपिंस के बच्चों को ऑनलाइन संस्कृत की शिक्षा देनेवाले शिक्षक पुण्डरीकाक्ष पाठक ने दोनों महापुराणों के प्रकाशकों को पत्र प्रेषित किया है. श्लोकों के सही शब्द की जानकारी मांगी है, ताकि पाठक ऐऐ शब्दों का पाठ न कर ले जो उन्हें अज्ञानता में गलत जानकारी देते हों. पुण्डरीकाक्ष पाठक सवाल करते हैं कि दोनों महापुराणों में लिखित श्लोक से हमें कोई एतराज नहीं, लेकिन दोनों के मूल रचयिता महर्षि वेदव्यास हैं. ऐसे में इन महापुराणों में शब्दों के उलटफेर से यह स्पष्ट होता है कि 11वें और 20वें श्लोकों में भेद कर दिया गया है. क्या व्यासजी के लिखे शब्दों को चुनौती देनेवाले कोई विद्वान इस संसार में हैं ?