बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर के कुलपति सभागार में गुरुवार को तेलहन फसल को केंद्र में रख कर गहन विचार मंथन किया गया. बैठक में भारतीय तेलहन शोध संस्थान, हैदराबाद के निदेशक डाॅ आरके माथुर बतौर मुख्य अतिथ शामिल हुए. उन्होंने विश्वविद्यालय व भारतीय तेलहन शोध संस्थान, हैदराबाद को संयुक्त रूप से अनुसंधान कार्यक्रम चलाने की सलाह दी. साथ ही सभी तेलहन फसलों के उत्पादन क्षेत्रों को बढ़ाने पर जोर दिया. उन्होंने तिल अनुसंधान के लिए बीएयू को मुख्य केंद्र और सूर्यमुखी के अनुसंधान के लिए बीएयू को सहायक केंद्र के रूप में अंगीकार करने का आश्वासन दिया. कुलपति डाॅ डीआर सिंह ने बिहार सरकार के चतुर्थ कृषि रोड मैप को ध्यान में रखते हुए तेलहन फसल के उत्पादन के महत्व को बताया. उन्होंने निर्देश दिया कि जिलावार तेलहन फसल की खेती की योजना बनायी जाये. डाॅ रामबालक प्रसाद निराला ने तेलहन फसल के कृषि के लिए उनकी शक्ति, कमजोरी, उपयोगिता व समस्या पर प्रकाश डाला. डाॅ चंदन किशोर, डाॅ अमरेंद्र ने भी राई-सरसों से जुड़े अपने अनुसंधान कार्यक्रमों की प्रस्तुति की. विश्वविद्यालय के तेलहन से जुड़े सभी केंद्रों के अनुसंधान वैज्ञानिकों भी आभासी रूप से जुड़े हुए थे. भारतीय तेलहन शोध संस्थान, हैदराबाद के प्रमुख वैज्ञानिक डाॅ एएल रत्नाकुमार, डाॅ जी सुरेश, डॉ मणिमुर्गन, डाॅ लावण्या, डाॅ दिनेश कुमार, डाॅ विश्वकर्मा, डाॅ पुष्पा, डाॅ जीडी सतीश व डाॅ रमन्ना भी आभाषी रूप से इस बैठक में जुड़ कर विशिष्ट सलाह दी. किसानों की मांग को देखते हुये बीएयू के निदेशक (बीज) डाॅ फिजा अहमद ने तिल के सफेद बीज वाले प्रभेद को विकसित करने पर जोर दिया. पादप प्रजनन विभाग के अध्यक्ष डाॅ पीके सिंह, ने धन्यवाद ज्ञापन किया.
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