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भूख की आग में जलकर पका रहे दीया, फुटपाथ पर भी बेचने का संकट

शहर व आसपास क्षेत्र के कुम्हारों की सबसे बड़ी चिंता इन दिनाें इसे लेकर है कि धूप में भूखे पेट दीया तो बना रहे हैं, लेकिन इसे बेचेंगे कहां? फुटपाथ पर भी बेचते हैं तो पुलिस पहुंच जाती है. वे अपना दीया व दिवाली से संबंधित सामान को कहां सजाकर बेचेंगे.

शहर व आसपास क्षेत्र के कुम्हारों की सबसे बड़ी चिंता इन दिनाें इसे लेकर है कि धूप में भूखे पेट दीया तो बना रहे हैं, लेकिन इसे बेचेंगे कहां? फुटपाथ पर भी बेचते हैं तो पुलिस पहुंच जाती है. वे अपना दीया व दिवाली से संबंधित सामान को कहां सजाकर बेचेंगे. कुम्हारों को बाजार की कमी खल रही है. स्थायी बाजार मिलेगा, तो उनके तैयार दीयों, मूर्ति आदि की भी कीमत मुंहमांगी मिलेगी. सबसे बड़ी पीड़ा है कि फुटपाथ पर पुलिस प्रशासन से लेकर स्थानीय दुकानदारों के दुत्कार-फटकार का शिकार होते हैं. अपना तैयार सामान बेचेंगे या अपने सामान की सुरक्षा करेंगे. शहर के गंगटी, मोहद्दीनगर, रामसर, महमदाबाद, अलीगंज समेत जिले के कुम्हार बहुल क्षेत्र में दीपावली का माहौल दिखने लगा है. यहां के लोग दीया, कुप्पी, गणेश-लक्ष्मी की मूर्ति, परी, खिलौने आदि तैयार कर रहे हैं. इतना ही नहीं कई लोगों ने सावन से ही दीया व संबंधित सामान बनाना शुरू कर दिया और अब तैयार सामान को सजाने का काम चल रहा है.

मां-पिता की मदद के लिए मायका पहुंची बिजली, बाजार की कमी खली

बिजली कुमारी ने बताया उनकी शादी जमालपुर के मझगांय में हुई है. मां-पिता की मदद के लिए ससुराल से मायका आयी है. दीया, खिलौना तैयार करना ही उनके लिए उत्सव है. सबसे बड़ी पीड़ा तैयार चीजों को बाजार में बेचना है. दरअसल स्थायी बाजार नहीं है. कभी पुलिस दुत्कारती है, तो कभी स्थानीय दुकानदार.

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मैदानी हिस्सों में पानी होने पर ऊंचे दर पर खरीदनी पड़ रही है मिट्टी

गंगटी के सुनील पंडित ने बताया कि मैदानी हिस्सों में असमय बारिश होने के कारण पानी भरा रहता है. इस कारण पिछले दो साल से 700 रुपये प्रति ट्रेलर मिट्टी अब 2000 से 2500 प्रति ट्रेलर मिल रहा है. इसके अलावा गोयठा की कीमत भी तीन गुनी हो गयी है. जो 60 से 70 पैसे प्रति पीस मिल रहे थे, वह अब दो रुपये पीस मिल रहे हैं.

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तीन दिन की दुकानदारी के लिए सालोभर मशक्कत

अंबे रोड के ब्रह्मदेव पंडित ने बताया कि तीन दिन की दुकानदारी के लिए सालोभर मशक्कत करनी पड़ती है. दरअसल मिट्टी के अभाव को पूरा करने के लिए जनवरी-फरवरी से जमा करते हैं. फिर बाजार के लिए फुटपाथ सहारा होता है. यदि बारिश हो जाये, तो तैयार सामान बर्बाद हो जाता है. पूंजी के साथ मेहनत पर पानी फिर जाती है.

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पिता के साथ दीया बनाने में बंटाते हैं हाथ और करते हैं पढ़ाई

गंगटी के प्रिंस कुमार 10वीं में पढ़ाई कर रहे हैं. प्रिंस पढ़ाई करने के लिए पिता के काम में हाथ बंटाता है. नहीं तो उसका फीस पूरा नहीं होगा. यदि पिता मजदूर के भरोसे काम करेंगे, तो घर का खर्च चलाना मुश्किल होगी. गणेश-लक्ष्मी की मूर्ति, परी की प्रतिमा, खिलौने में रंग भरने में प्रिंस पारंगत हो गया है.

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पूरा परिवार मिलकर करते हैं काम, तो चलती है खर्ची

निरंजन पंडित ने बताया कि सरकार की ओर से कई बार कुम्हारों के लिए योजना देने का आश्वासन मिला, लेकिन अबतक कोई सरकारी लाभ नहीं मिल पाया. ऐसे में अपनी पुश्तैनी धंधे में हैं और इस कला को बचा रहे हैं. एक-एक परिवार आठ सदस्यों का है. जो मिलकर काम करते हैं, तो सालभर में दो से तीन लाख तक कमा पाते हैं. जबकि मजदूरी करेंगे, तो पूंजी के बिना अधिक कमाई करेंगे.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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