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18वीं सदी से भुड़िया में हो रही मां दुर्गा मां की पूजा

भुड़िया दुर्गा मंदिर में 18वीं सदी से ही मां दुर्गा की पूजा प्रारंभ हुई, जो आज भी बरकरार है

भुड़िया दुर्गा मंदिर में 18वीं सदी से ही मां दुर्गा की पूजा प्रारंभ हुई, जो आज भी बरकरार है. दोनों संप्रदाय के लोग श्रद्धा व भक्ति से यहां माता की पूजा करते हैं. यहां जो आता है मां उसे निराश नहीं करतीं हैं. जिउतिया के दूसरे दिन बौद्ध नवमी से यहां पूजा प्रारंभ होती है. पूजा का प्रथम कलश उसी दिन भरा जाता है. दुर्गा मां और शालिग्राम की पूजा बांग्ला पद्धति से होती है. बौद्ध नवमी से विजयादशमी तक दुर्गा सप्तशती का पाठ चलता है. सेवायत शेखरानी मजूमदार बताती हैं कि अंग्रेजों के जमाने से यहां पूजा हो रही है. बांग्ला पंचांग व बांग्ला विधि से माता की पूजा होती है. माता की बेदी 108 नरमुंड पर स्थापित है. नवरात्र के सप्तमी को प्राण प्रतिष्ठा के साथ चक्षुदान, महास्नान, नवमी को कुमारी पूजन, दसवीं को अपराजिता पूजा प्राचीन समय से चली आ रही है. काफी संख्या में बकरा की बलि दी जाती है. स्थानीय राहुल मजूमदार, प्रभात मजूमदार, भीम मजूमदार, संगीता सिंह, अरविंद सिंह, बॉबी घोष ने बताया कि भुड़ीया महाशय ड्योढ़ी की दुर्गा माता को लेकर कई किवदंती है. यह शक्तिपीठ व सिद्ध स्थल है. यह तंत्र साधना का भी केंद्र है. इस कारण इस पूजा पद्धति से मंगलकामना जल्द पूरी होती है. दूर-दूर से भक्त मनोकामना को लेकर शक्तिपीठ और सिद्ध स्थल पर आकर मां का आशीर्वाद लेते हैं.

200 वर्ष पुराना है ढोलबज्जा का मां भगवती मंदिर

ढोलबज्जा बाजार स्थित मां भगवती का मंदिर लगभग 200 वर्ष पुराना है. यहां मां भगवती की शरण में जो भी आते हैं उनकी मुराद पूरी होती है. यहां पूजा पुरानी रीति रिवाज से होती है. मुखिया सच्चिदानंद यादव ने बताया कि यहां की भीड़ को देख पूजा समिति के साथ-साथ प्रशासन अलर्ट रहता है. हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी मां भगवती की पूजा धूमधाम से की जा रही है. मंदिर का साज सज्जा बेहतरीन कलाकारों से करवाया जा रहा है. यहां कलश की पूजा होती है. मंदिर में बाहरी पूजा करने वालों को प्रवेश निषेध है. जो मन्नत लेकर आते हैं, उनकी मुराद पूरी होती है. संध्या आरती में ग्रामीण एकत्रित होकर माता की आरती करते हैं.

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