Easter Sunday: पास्का पर्व अर्थात प्रभु यीशु की मृत्यु पर पायी जीत को दर्शाता है. यह वास्तव में उनका जीवन और वचनों को सत्य साबित करता है. मृत्यु के बाद यीशु के पुनर्जीवित होने का पर्व ईस्टर रविवार को सुबह भागलपुर जिले के सभी चर्च व कब्रिस्तान में मनाया जायेगा.
इससे पहले शनिवार को देर रात कचहरी चौक स्थित संत बेनेडिक्ट चर्च, घंटाघर समीप क्राइस्ट चर्च, साहेबगंज चर्च आदि में प्रभु यीशु के पुनर्जीवित होने की खुशी मनायी गयी. सीटीएस, नरगा चर्च में अहले सुबह लोगों का जुटान होगा. इसके बाद कब्रिस्तान में अपने-अपने पूर्वजों की कब्र पर फूल चढ़ायेंगे और मोमबत्ती व अगरबत्ती जलाकर सम्मान दिया जायेगा. फिर प्रार्थना सभा होगी.
क्या है ईस्टर
फादर प्रदीप हांसदा ने बताया कि ईस्टर विश्व स्तर पर ईसाई समुदाय के लिए सबसे शुभ दिन माना जाता है. यह दिन ईसाई धर्म के ईसा मसीह के पुनरुत्थान का प्रतीक है, जिन्हें रोमन कैवलरी द्वारा क्रूस पर चढ़ाया गया था और गुड फ्राइडे के दिन उनकी मृत्यु हो गयी थी.
बाइबल की कहानी के अनुसार यीशु के सूली पर चढ़ने के बाद उनके शरीर को लिनन में लपेटा गया था और उन्हें अरीमथिया के जोसेफ के स्वामित्व वाली कब्र में दफनाया गया था. कब्र को तब एक बड़े पत्थर से ढक दिया गया था. यह भी माना जाता है कि रविवार की सुबह स्वर्गदूतों ने पत्थर को लुढ़का दिया और यीशु कब्र से बाहर निकल गये. प्रत्येक ईसाई विश्वासी के लिए यीशु का पुनरुत्थान पाप और मृत्यु पर उसकी जीत का प्रतीक है.
अधिकांश ईसाई ईस्टर तक जाने वाले सप्ताह को पवित्र सप्ताह के रूप में संदर्भित करते हैं, जिसमें ईस्टर ट्रिडुम के दिन शामिल होते हैं, जिन्हें पाश्चर ट्रिडुम या पश्चिमी ईसाई धर्म में तीन दिन भी कहा जाता है. दुनिया भर में ईस्टर पर सेवाएं आयोजित की जाती हैं.
ईस्टर में गैर-पारंपरिक उत्सव भी होते हैं, जैसे ईस्टर अंडे और ईस्टर बनी. ये परंपराएं पूर्व-ईसाई मूर्ति पूजा संस्कृति की हो सकती हैं. कुछ का मानना है कि अंडे जन्म और उर्वरता का प्रतिनिधित्व करते हैं और विश्वास यीशु के पुनर्जन्म का प्रतिनिधित्व करते हैं.
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