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बिहार के भागलपुर में 100-200 साल पुराने कृष्ण मंदिरों का जानिए इतिहास, जन्माष्टमी पर उमड़ती है भीड़

बिहार के भागलपुर में जन्माष्टमी बेहद धूम-धाम से मनायी जाती है. शहर में कई ऐसे प्रसिद्ध मंदिर हैं जिनका इतिहास वर्षों पुराना है.

दीपक राव: भागलपुर में जन्माष्टमी का आयोजन बेहद धूम-धाम से मनाया जाता है. यहां शहर में कई ऐसे प्रसिद्ध मंदिर हैं जहां कृष्ण भक्तों की भीड़ जन्माष्टमी के दिन उमड़ती है. लोग इन मंदिरों में आकर कृष्ण की पूजा करते हैं. खाटू श्याम मंदिर, रघु बाबू ठाकुरबाड़ी, राधा-कृष्ण मंदिर, चंपानगर तांती बाजार स्थित प्राचीन रोमपाद नारायण मंदिर समेत ऐसे कई मंदिर हैं जिनका इतिहास काफी पुराना है.

खाटू श्याम मंदिर में जुटती है हजारों की भीड़

चुनिहारी टोला में प्राचीन खाटू मंदिर की स्थापना 1952 में हुई थी. बिहार, झारखंड व ओडिशा स्तर पर सबसे प्राचीन खाटू श्याम मंदिर है. इस मंदिर का निर्माण दिवंगत महावीर शर्मा ने कराया था. प्रवक्ता विनोद शर्मा ने बताया कि प्राचीन खाटू श्याम मंदिर में गोड्डा, गिरिडीह, सुलतानगंज, जमालपुर, नवगछिया, बांका, बौंसी आदि क्षेत्र से श्रद्धालु पूजा करने आते हैं. मंदिर का जीर्णोद्धार 2012 में कराया गया. यहां पर जन्माष्टमी पर भजन-कीर्तन होता है. होली से पहले हरेक वर्ष श्याम उत्सव का भव्य आयोजन होता है. देवोत्थान एकादशी के दिन बाबा जन्मोत्सव होता है. रथ यात्रा के दिन प्राण-प्रतिष्ठा समारोह होता है. यहां पिछले 25 वर्षों से खाटू में शीश पूजा हो रही थी, जिसे यहां पर स्थापित किया गया. वहीं, 2006 में मंदरोजा में नये दूसरे खाटू श्याम मंदिर की स्थापना हुई. यहां पर खासकर मारवाड़ी समाज के श्रद्धालुओं की खास भीड़ जुटती है. जन्माष्टमी व जन्मोत्सव पर भजन संध्या की धूम होती है.

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200 वर्ष पुरानी ठाकुरबाड़ी की नक्काशी को देखते रह जाते हैं श्रद्धालु

गोलाघाट स्थित रघु बाबू की ठाकुरबाड़ी 200 वर्ष पुरानी है. मंदिर कमेटी के अध्यक्ष पूर्व जज विजय मंडल ने बताया कि 1840 के आसपास इस ठाकुरबाड़ी की स्थापना जमींदार बाबू रघुनंदन लाल ने करायी थी. यहां पर डेढ़ सौ पहले इटालियन मार्बल, सभी परिवार के सदस्यों की फोटो लगी हुई. पूरे ठाकुरबाड़ी के भीतरी हिस्से में नक्काशी ऐसा है, जिसे अब भी लोग एकटक देखने को मजबूर हो जाते हैं. गंगा के किनारे अवस्थित ठाकुरबाड़ी का दृश्य मनोरम है. यह ठाकुरबाड़ी पहले निजी तौर पर पूजा-पाठ के लिए कराया था. उनके देहांत के बाद नियमित रूप से पूजा-पाठ के लिए कमेटी बनायी गयी. छह वर्ष पहले बिहार राज्य धार्मिक न्यास परिषद की ओर से कमेटी को बदल दिया गया. अब यहां पर स्थानीय लोग भी पूजा करते हैं. झूलनोत्सव के साथ-साथ श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर आयोजन होता है.

जगन्नाथ मंदिर में होती है श्रद्धापूर्वक जन्माष्टमी

जगन्नाथ मंदिर की स्थापना 1872 में बाबू जगन्नाथ सहाय ने की थी. पंडित सौरभ मिश्रा ने बताया कि इस मंदिर का संपर्क ओडिशा के जगन्नाथ पूरी से है. यहां पर बनारस, पूरी, अयोध्या, श्रीनाथ के संत आते रहते हैं. जन्माष्टमी में शाम को भजन कीर्तन होता है. रात 12 बजे जन्माष्टमी मनाया जाता है. हरेक वर्ष आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष द्वितीया में रथ यात्रा निकाली जाती है. हरेक शनिवार को भजन-कीर्तन होता है. यह मंदिर एक बीघा जमीन में फैला हुआ है.

बरारी स्टेट ने 1905 में करायी थी राधा-कृष्ण मंदिर की स्थापना

बरारी स्टेट के राय हरिमोहन ठाकुर ने बरारी सीढ़ी घाट पर राधा-कृष्ण मंदिर का निर्माण कराया थ. 112 वर्ष बाद भी बाहरी नक्काशी को देखने से ऐसा लगता है, ऐसा मानों को वास्तु का बेजोड़ नमूना पेश कर रहा हो. यहां पर अष्टधातु की राधा-कृष्ण की प्रतिमा स्थापित की गयी थी. देखरेख के अभाव में आजादी के बाद से मंदिर जीर्ण-शीर्ण होने लगा था. बाबू केशवमोहन ठाकुर के देहांत के बाद इसका मरम्मत होना भी बंद हो गया. उनकी छोटी बहू आनंदकिशोरी ठाकुर 10 वर्ष पहले तक रंग-रोगन कराती थी. अब तो रंग-रोगन भी नहीं होता है, जबकि यह मंदिर आम लोगों की पूजा के लिए है. विभिन्न प्रदेश से गंगा स्नान के लिए आने वाले श्रद्धालु अब भी पूजा-अर्चना करते हैं. स्थानीय लोग जन्माष्टमी पर पूजा करते हैं. इसके अलावा पुरानी ड्योढ़ी में व्यवस्थापक गोपालदत्त ठाकुर के संचालन में तीन दिवसीय उत्सव होता है. इस बार भी उत्सव मनाया जायेगा.

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