निलेश प्रताप, घोघा: भागलपुर के घोघा बाजार का मुहर्रम का आयोजन सांप्रदायिक सद्भाव की मिसाल है. घोघा बाजार में मुर्हरम के ताजिये के खलीफा हिंदू समुदाय के लोग होते हैं. इतना ही नहीं, ताजिया जुलूस की परंपरा जानकर आप भी इस भाइचारे की तारीफ करेंगे. हिंदु समुदाय की महिलाएं पहले पूजा अर्चना करती हैं और उसके बाद ही तजिया जुलूस निकलता है. ये परंपरा चार सौ वर्ष पुरानी है जिसे पीढ़ी-दर-पीढ़ी निभाया जा रहा है.
खलीफा भी हिंदू ही बनते हैं…
भागलपुर के घोघा बाजार में जो ताजिया निकलती है वो हिंदु-मुसलमान भाइचारे को और मजबूती प्रदान करती है. महिलाएं पूजा अर्चना करती हैं और फिर ताजिया जुलूस निकाला जाता है. यह परंपरा करीब चार सौ साल पुरानी बतायी जाती है. जब घोघा बाजार के इमामबाड़ा से निकलने वाली तजिया का खलीफा कोई हिंदू बनता है. इस बार के खलीफा पंकज दूबे हैं.
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भाईचारे की मिशाल
घोघा बाजार मस्जिद व ताजिया कमेटी के अध्यक्ष आखिफ खान सह खलिफा हरि प्रकाश उपाध्याय और बबलू यादव हैं. कमेटी के सदस्य शाहरूख खान, राशिद, जैकी, सुभाष यादव व मंटू पाठक ने बताया कि दोनों समुदाय एक दूसरे के पूरक हैं. दोनों समुदाय के लोग मिलकर इसे मनाते हैं. यहां हिंदु समुदाय के खलीफा बनते हैं जो अपने आप में अनूठा मिशाल है.
तिल-चौरी प्रथा को निभाया जाता है
लोगों ने बताया कि ताजिया निकलने से पहले हिंदू रीति रिवाज से यहां तिल-चौरी प्रथा निभाई जाती है. जिसमें हिंदू रीति रिवाज से तिल चौरी प्रथा निभाई जाती है. इसमें महिलाएं तिल-चावल बूंदी का लड्डू और माला इमामबाड़ा में चढ़ाती हैं और विधिवत पूजा अर्चना करती हैं. इसके बाद तजिया भ्रमण के लिए निकलती है. जब तजिया लौट कर आती है तो फिर से हिंदू समाज की महिलाएं तजिया के निशान में जलाभिषेक करती हैं. घोघा बाजार में मुहर्रम हिंदू और मुसलमान मिलकर मनाते आए हैं.