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बिहार का एक दियारा, जिसने पक्षियों को शिकारियों से आजादी दिलाने की ठानी और अब मिलने वाला है विश्व की इस सूचि में तीसरा स्थान…

भागलपुर: जहां पक्षियों का शिकार कर बेचना पेशा बन चुका था, वहीं के लोग एक दिन पक्षियों का प्रजनन स्थल तैयार करने में दुनिया में तीसरा और भारत के दूसरे आश्रयदाता बन जायेंगे, यह सहज विश्वसनीय नहीं लगता. यही नहीं, स्थानीय लोगों व संस्थाओं ने न सिर्फ पक्षियों की आजादी के लिए सफल प्रयास किया, बल्कि राज्य सरकार पर लगातार दबाव बना कर बर्ड रेस्क्यू सेंटर की स्थापना भी सुंदरवन में कराने पर मजबूर कर दिया. अब इस इलाके में पक्षी आजाद हैं और उसके किसी कारणवश घायल होने या चोटिल होने पर इलाज की भी अलग व्यवस्था है.

भागलपुर: जहां पक्षियों का शिकार कर बेचना पेशा बन चुका था, वहीं कदवा दियारा के लोग एक दिन पक्षियों का प्रजनन स्थल तैयार करने में दुनिया में तीसरा और भारत के दूसरे आश्रयदाता बन जायेंगे, यह सहज विश्वसनीय नहीं लगता. यही नहीं, स्थानीय लोगों व संस्थाओं ने न सिर्फ पक्षियों की आजादी के लिए सफल प्रयास किया, बल्कि राज्य सरकार पर लगातार दबाव बना कर बर्ड रेस्क्यू सेंटर की स्थापना भी सुंदरवन में कराने पर मजबूर कर दिया. अब इस इलाके में पक्षी आजाद हैं और उसके किसी कारणवश घायल होने या चोटिल होने पर इलाज की भी अलग व्यवस्था है.

दुनिया के तीसरे सबसे बड़े गरुड़ों की प्रजनन स्थल के रूप में कदवा दियारा

खासकर नवगछिया के कदवा गांव के लोगों, संस्थाओं और वन विभाग की मदद से कंबोडिया व असम के बाद दुनिया के तीसरे सबसे बड़े गरुड़ों की प्रजनन स्थल के रूप में कदवा दियारा विकसित हो चुका है.

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ये हैं गरुड़ों के आंकड़े

तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के पीजी जंतु विज्ञान के शिक्षक डॉ डीएन चौधरी बताते हैं कि कदवा दियारा में वर्ष 2006 में गरुड़ों के 16 से 18 घोंसले पेड़ों पर देखे गये थे और इनमें रहनेवाले गरुड़ों व उनके बच्चों की संख्या 75 से 80 थी. आज इनकी संख्या 700 से 800 के बीच है. इसकी तुलना में कंबोडिया में 150 से 200 के बीच और असम में लगभग 600 बतायी जा रही है. इस कार्य में वे खुद गांवों में जाकर लोगों को इसकी महत्ता बताते रहे.

इस तरह कम होता गया पक्षियों का शिकार

भागलपुर में गंगा के किनारे नमी वाले इलाके में दुनिया के कई देशों से रंग-बिरंगी पक्षियां हर साल आती रही हैं. ठंड के मौसम में यहां रहने के बाद गर्मी आने से पहले विदा होती रही हैं. इस बीच लोग इन पक्षियों का शिकार किया करते थे. इस पर रोक लगाने के लिए वन विभाग और मंदार नेचर क्लब (गैरसरकारी संस्था) के पदाधिकारी गांवों में जाकर लगातार जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करते रहे.

पक्षियों का शिकार करने पर समय-समय पर गिरफ्तारियां जारी

पक्षियों का शिकार करने पर समय-समय पर गिरफ्तारियां जारी रहीं. हर गांव में जैव-विविधता संरक्षण को लेकर युवाओं की टीम का गठन किया गया. इन प्रयासों के बाद धीरे-धीरे स्थिति बदली. शिकार में कमी आती गयी

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