खानकाह-ए-पीर दमड़िया शाह के 15वें सज्जादानशीन सैयद शाह फखरे आलम हसन ने कहा कि बुधवार को मुहर्रम की दसवीं तारीख (यौम-ए-आसूरा) को नवासा-ए-रसूल जन्नतियों के सरदार हजरत इमाम-ए-हुसैन अलैह सलाम की गमनाक शहादत का दिन है. अहले बैय्यत से मोहब्बत रखने वाले और इमाम-ए-हुसैन की मोहब्बत का दम भरने वाले दुनिया भर में सैयदना इमाम हुसैन की शहादत का गम मना रहे हैं. दूसरी तरफ तमाम अहले इमान इमाम हुसैन के जरिए हक के खातिर अपने खानदान वालों के साथ कर्बला के मैदान में जालिम हुकुमत के ऊपर इमानी जोश के साथ डट कर मुकाबला किया. अपनी जान खुदा की बारगाह में कुर्बान करके रहती दुनिया तक आने वाले तमाम इंसानों को यह सबक पढ़ा दिया कि ईमान और सच्चाई का रास्ता कुर्बानियों के साथ हमेशा जुड़ा रहेगा. सज्जादानशीन ने कहा कि अहले हक कभी किसी बातिल व शैतानी ताकतों के आगे झुकने वाले नहीं. बल्कि हजरत इमाम हुसैन की जीवनी व उनकी शहादत से प्रेरणा लेते हुए इंसानियत और खुदा से वफादारी व राहे हक के लिए हर त्याग व बलिदान के लिए तैयार रहते हैं. फखरे आलम ने कहा कि दरअसल मुहर्रम का त्योहार बुराइयों पर अच्छाई की जीत है. लिहाजा उम्मतें मोहम्मदिया को सैयदना इमाम हुसैन अलैह सलाह के जीवन से शिक्षा लेनी चाहिए. सज्जादानशीन ने अपने संदेश में कहा कि मुहर्रम में लोगों को कोई भी ऐसा काम नहीं करना चाहिए, जिससे दूसरे मजहब को मानने वाले लोगों को परेशानी हो. आपस में प्रेम मोहब्बत के साथ रहें, जैसा कि मुहर्रम का त्योहार लोगों को संदेश देता है.
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