जीवेश रंजन सिंह: 29 अगस्त मेजर ध्यानचंद का जन्मदिन. आज राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में इसे पूरा देश मना रहा है. इस साल का खेल दिवस हाल में ही संपन्न ओलिंपिक को लेकर खास है. ओलिंपिक के दौरान तोक्यो में लहराये तिरंगे का जोश अभी मद्धम भी नहीं हुआ है कि इसी धरती (तोक्यो) पर पैरालिंपिक में भी हमारे खिलाड़ियों ने जांबाजी का जलवा कायम रखा है. खास कर बेटियों ने सबका दिल जीत लिया है.
इन पंक्तियों को लिखे जाने के वक्त तक आयी सूचना के अनुसार गुजरात की भाविना बेन गोल्ड मेडल से चंद कदम की दूरी पर हैं. पहली बार टेबल टेनिस के इतिहास में इस स्थान तक पहुंचने का भी रिकॉर्ड बनाया है भाविना बेन ने. इन सबको लेकर 29 अगस्त का दिन मेजर ध्यानचंद को याद करने के साथ-साथ खेल के मैदान में पसीना बहा रहे अपने खिलाड़ियों पर गर्व करने का भी है.
याद रखें, हाल ही में संपन्न ओलिंपिक में जहां अपने देश के लाड़लों (बेटे-बेटियों) ने एकबार फिर हॉकी का जादू दिखाया, तो एथलेटिक्स में पहली बार शिखर तक का सफर भी तय किया. यह सब गौरव के पल और स्वर्णिम इतिहास का हिस्सा हैं. सदैव याद किये जायेंगे, पर इसे और आगे ले जाना है तो इस समय को मंथन का भी काल बनाना होगा. मंथन इस बात पर कि क्या आनेवाले समय के लिए पूरी तरह तैयार हैं हम. दरअसल जिन खिलाड़ियों का भी जलवा रहा उनमें से अधिकतर गांव के थे. सुविधाएं और सहयोग मिलने पर उन लोगों ने मुकाम हासिल किया.
इसी बहाने अपने आसपास देखने की जरूरत है कि क्या पूरी सुविधाएं हैं खिलाड़ियों के लिए. अगर बात करें कोसी-पूर्व बिहार की, तो बेहतर मैदान नहीं हैं. कभी मलखम के लिए प्रसिद्ध भागलपुर में अब यह इतिहास बन गया है. भागलपुर का ममलखा फुटबॉल और नवगछिया वॉलीबॉल के लिए जाना जाता है. गंगा के किनारे स्थित बेगूसराय से लेकर भागलपुर तक का यह इलाका वॉलीबॉल के लिए उर्वर है. यहां की लड़कियों ने अपना परचम लहराया है, पर सुविधाओं की कमी है.
एथलेटिक्स की बात करें तो भागलपुर के सेंटर पर प्रशिक्षण ले रही मीनू सोरेन एथलेटिक्स में नेशनल पदक विजेता हैं, तो सपना कुमारी ने राष्ट्रीय स्तर की दौड़ प्रतियोगिता में स्थान बनाया है. इसी प्रकार नाथनगर के एथलीट रमण राज, बुशू की खिलाड़ी अर्पिता व जिया कुमारी और खो-खो के सोनू कुमार ने अपनी पहचान बनायी है, तो मुंगेर की फुटबॉल खिलाड़ी श्यामा रानी व खुशबू रानी ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपना लोहा मनवाया.
यह कुछ नाम हैं. ऐसे कई होंगे जो कभी चमके और फिर खो गये. ऐसी प्रतिभाओं को पहचानने और संवारने की जरूरत है. दरअसल निचले स्तर पर खेल अब उस तरह से प्राथमिकता में नहीं रही. खेल शिक्षकों की कमी है, तो संसाधन भी नहीं हैं. मैदानों की बात करें तो अब वो मैदान कम जंगल ज्यादा दिखते हैं. इस पर गंभीरता की जरूरत है.
यह बात अब मान लेनी होगी कि पढ़ोगे-लिखोगे बनोगे नवाब, खेलोगे-कूदोगे होगे खराब वाली धारणा बदल गयी है. अब खेल के बल किस्मत बदलते देखना आम बात है. याद करें अभी ओलिंपिक में हॉकी टीम में शामिल झारखंड की सलीमा की माता जी को जब झारखंड सरकार ने घर बना कर देने और पैसे देने की घोषणा की तो उनके चेहरे पर गर्व व खुशी थी वह शायद ही किसी और चीज से आ सके. पूछने पर बस इतना ही कहा कि कुछ नहीं पैसे से बच्चों को पढ़ायेंगी-खेलायेंगी और दो तल्ला घर बनवायेंगी.
सलीमा को जाननेवाले जानते हैं कि उस गरीब परिवार में शायद ही यह सुविधाएं कभी मिलतीं. यह खेल का कमाल है. हमारे आसपास ऐसे कई खिलाड़ी हैं, जिन्हें संवारने और संभालने की जरूरत है, फिर इनका जलवा देश-विदेश में देखें. पर इसके लिए जरूरत है व्यवस्था को सुधारने की. और अंत में पंचायत चुनाव की घोषणा हो चुकी है. गांव की सरकार आपको खुद चुननी है. इसमें ध्यान रखें कहीं कोई खेल न हो जाये.