एक ओर जहां केंद्र सरकार की नमामि गंगे योजना विफल होता दिख रहा है, वहीं दूसरी ओर प्रदूषित गंगा में मछलियों की संख्या घटती जा रही है व प्रवासी पक्षियों का स्थानांतरण होता जा रहा है. भागलपुर शहर के समीप भी शहरवासियों व बाहर से आये अतिथियों को गंगा में खासकर ठंड के दिनों में प्रवासी पक्षियों का कलरव करते हुए सुखद अनुभूति देता था, जो कि पिछले 10 वर्षों के अंतराल में काफी कुछ अंतर देखने को मिल रहा है. इसके लिए शहरवासी खुद दोषी हैं तो सरकारी तंत्र भी कम नहीं है. ऐसे में जैव विविधता की कमी देखने को मिल रही है.
गंगा में 34 हथिया नाला का जहरीला पानी शहर के सटे गंगा के मृत धार में मिलती है. इतना ही नहीं नमामि गंगे योजना में जहां नाला के पानी को शुद्ध कर गंगा में छोड़ना है या प्रदूषण प्रतिशत कम करना है. बावजूद इसके नये नाले को भी गंगा में मिलाया जा रहा है. बूढ़ानाथ घाट पर नगर निगम का बड़ा नाला हाल के दिनों में गंगा में मिला दिया गया, जो कि किसी न किसी तरह गंगा के मुख्य धार मिलता है.
गंगा तटों पर जगह-जगह मृत मवेशी फेंका जा रहा है. कुछ दिन पहले पीपली धाम के समीप मृत जानवर फेंका गया था. वर्तमान में बूढ़ानाथ व सखीचंद घाट के बीच हिस्से में मृत जानवर फेंका गया है. प्रदूषित पानी अब काला होता जा रहा है.
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खुद मछुआरों का मानना था कि इस पानी में नहाने से चर्म रोग हो रहा है और मछलियां भी दिन व दिन घटती जा रही है. छोटी-बड़ी मछलियाें की प्रजनन क्षमता घटती जा रही है. रिफ्यूजी कॉलोनी के मछुआरा भरत ने बताया कि पहले जितनी मछली एक घंटे में पकड़ लेते थे, उसके लिए घंटों मशक्कत करनी पड़ती है. राजवीर मल्लाह ने बताया कि प्रदूषण का असर है कि इसमें विभिन्न घाट पर आने वाले प्रवासी पक्षी घट गये या दूसरे जगह पलायन कर गये.
पर्यावरणविद् सह पक्षी विशेषज्ञ अरविंद मिश्रा ने बताया कि कि शहर के किनारे गंगा तटों पर मछली की संख्या तो घटी ही है. प्रवासी पक्षियों का झूंड अब ग्रामीण क्षेत्र या सुरक्षित क्षेत्र की ओर पलायन कर गये. गंदे पानी में उनका ठहराव कम गया. शहर से दूर दूसरे गंगा दियारा खासकर ग्रामीण क्षेत्र दियारा में प्रवासी पक्षियों का बसेरा हो गया.
उन्होंने बताया कि प्रदूषित पानी में बगुला व गजपांव जैसे पक्षियों की संख्या बढ़ी है. शहर के आसपास गंगा तटों पर अब पहले जैसा नजारा नहीं देखने को मिल रहा है. शहर के कुछेक घाट पर ही प्रवासी पक्षी कलरव करते देखे जाते हैं. इसके लिए भी उन्हें ढूंढ़ना पड़ता है व कम झूंड में दिखते हैं. सरकार का यदि नमामि गंगे योजना धरातल पर आ जाये तो जैव विविधता एक बार फिर दिखने लगेगी.
(दीपक राव, भागलपुर)
Posted by: Thakur Shaktilochan