जिलाधिकारी कार्यालय के नाक के नीचे स्थित अंग सांस्कृतिक भवन का जीर्णोद्धार करके आधुनिक प्रेक्षागृह बनाने में दो करोड़ से अधिक की राशि खर्च हो गये. कांट्रेक्टर व भवन निर्माण विभाग हैंडओवर की तैयारी में है. इसके विपरीत प्रेक्षागृह की दीवारों का प्लास्टर व रंग उखड़ने लगे हैं.
सजग रंगकर्मियों के अथक प्रयास के कारण गोदाम में तब्दील अंग सांस्कृतिक भवन एक सुसज्जित प्रेक्षागृह का रूप ले सका है, लेकिन, युवा व कला संस्कृति विभाग द्वारा हैंडओवर की औपचारिकता पूरी नहीं किये जाने के कारण दो करोड़ की लागत से तैयार प्रेक्षागृह बंद पड़ा हुआ है और शहर में रंगकर्म के क्षेत्र में सन्नाटा पसरा हुआ हैं, जिम्मेदार बिलकुल उदासीन है.
अव्यवस्था का भूत नहीं छोड़ रहा पीछा
अंग सांस्कृतिक भवन का निर्माण संग्रहालय के साथ 22 फरवरी 2006 को तत्कालीन उपमुख्यमंत्री सुशाील मोदी के सौजन्य से दो करोड़ की लागत से कराया गया था. इसके बाद अब तक इस परिसर में बमुश्किल चार से पांच आयोजन कला-संस्कृति से जुड़े हुए. 2016 से पहले तक इस भवन का इस्तेमाल गोदाम के रूप में होता रहा.
सिविल वर्क में एक करोड़ का खर्च, तो अन्य राशि का पता नहीं
युवा रंगकर्मी रितेश रंजन ने बताया कि प्रेक्षागृह प्रेक्षागृह के आधुनिकीकरण व जीर्णोद्धार का काम 13 जुलाई 2021 में ही पूरा होना था. लेकिन इस काम में लगभग दो साल की देरी हो चुकी है. संबंधित अधिकारियों के अनुसार सिर्फ सिविल वर्क में एक करोड़ से अधिक खर्च, जबकि मूल ढांचा पहले से ही बना हुआ था, तो इतनी बड़ी राशि किस किस काम में खर्च हुई, यह कोई नहीं बता रहा. उन्होंने बताया कि 156 कुर्सी की खरीददारी में प्रति कुर्सी 9880 की दर दर से कुल 15 लाख 41 हजार 280 रूपए खर्च हुए हैं. तीन सीटर सोफा 3 सोफ़ा के लिए प्रति सोफ़ा 47 हजार 280 रु. की दर से 1,41850 रु खर्च हुए हैं. इसी तरह सिंगल सीटर 6 सोफ़ा के लिए प्रति सोफ़ा 35,800 के हिसाब से कुल 2,14,800 खर्च हुए हैं. कुर्सियों व सोफा को देखकर ही अंदाजा लगाया सकता है. जो पुरानी जैसी लगती हैं, अन्यथा क्या कारण है कि बिना इस्तेमाल हुए ही कुर्सी की हैंडल का रंग उतरने लगा और सोफा कवर में जगह जगह छेद दिखायी देता था.आर्ट गैलरी परिसर से है गायब
इप्टा के पूर्व सचिव संजीव कुमार दीपू ने बताया कि आर्ट गैलरी कहां बनाई गयी है किसी अधिकारी को पता नहीं, सिर्फ कागज पर चर्चा है, धरातल पर वह दिखाई नहीं देता. अंग सांस्कृतिक केन्द्र परिसर में बना ओपन एयर थियेटर का निर्माण मजाक बन कर रह गया है. इसके मंच पर टाइल्स लगा दिया गया है, जिस पर मंचन संभव ही नहीं है. उसी तरह मंच पीछे बनी दीवार पर टाइल्स लगा दिया गया है इससे रोशनी रिफ्लेक्ट होगी. उसका प्रतिकूल असर काम करने वाले कलाकार पर के ऊपर पड़ेगा. स्पष्ट है कि काम करने वालों को रंगमंच की कोई जानकारी नहीं है और न ही सही ढंग से काम की मॉनिटरिंग हुई है. हॉल में प्रवेश के लिए बनाया गया रैंप उल्टा बना दिया गया था, रंगकर्मियों के हस्तक्षेप के बाद इसमें सुधार किया गया. तथाकथित आधुनिक प्रेक्षागृह की सबसे बड़ी कमी यह थी कि पूरे हॉल में लाइट, साउंड व पर्दे को नियंत्रित करने के लिए केंद्रीकृत सबसे जरूरी लाइट बूथ के लिए कहीं जगह नहीं. छोड़ी गयी लाइट बूथ के बगैर लाखों की लागत से बना लाइट सिस्टम निष्प्रभावी हो जाता.रंगकर्मियों ने जब तत्कालीन आयुक्त से मिल कर इसकी शिकायत की, तब उनके हस्तक्षेप के बाद बिहार राज्य भवन निर्माण विभाग की ओर से राशि आवंटित होने के बाद लाइट और साउंड बूथ का निर्माण करवाया गया.
अब भी है कमियां-अब भी डिमर मंच पर छोड़ दिया गया है, जबकि उसका नियंत्रण लाइट बूथ से किया जाता है.
-पूरे हॉल में बिजली के लोड के हिसाब से इसमें तीन फेज का कनेक्क्शन होना चाहिए, जबकि इसे सिर्फ एक फेज से जोड़ा गया.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है