कैनवास के रास्ते फलक तक विस्तार की राह, बच्चे अपने दम पर तैयार कर लेंगे सपनों का भारत: जीवेश रंजन सिंह
आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर प्रभात खबर ने भागलपुर के विभिन्न स्कूलों में मेरे सपनों का भारत थीम पर पेंटिंग प्रतियोगिता का आयोजन कराया था. जिसमें सर्वश्रेष्ठ 70 विद्यार्थियों को सम्मानित किया गया. उन बच्चों ने कुछ ऐसे सवाल किये जो आज के समाज को सोचने पर विवश करता है.
जीवेश रंजन सिंह, वरीय संपादक (प्रभात खबर): क्या समाज करप्शन फ्री नहीं हो सकता? हम बेटियां ही क्यों डरें, जब सब एक समान तो फिर भेदभाव क्यों ? शनिवार को भागलपुर में जब बच्चों ने ये सवाल किये तो एक पल लिए जहां यह लगा कि बच्चे किस ओर सोच रहे, वहीं मन उत्साह से भर गया कि नयी पौध काफी आगे जायेगी. मौका था पेंटिंग प्रतियोगिता में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करनेवाले बच्चों के सम्मान का.
सम्मानित होने वाले बच्चों का उत्साह सबको प्रभावित कर गया, तो उनके सवालों ने सोचने पर मजबूर भी किया. पर इन सबसे इतर खास बात यह थी कि उन्हीं बच्चों ने अपने सवाल का जवाब भी खुद तलाश लिया. उनका कहना था : वो अपने दम पर तैयार कर लेंगे अपने सपनों का भारत.
दरअसल, आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर प्रभात खबर ने भागलपुर के विभिन्न स्कूलों में मेरे सपनों का भारत थीम पर पेंटिंग प्रतियोगिता का आयोजन कराया था. इसमें विभिन्न स्कूलों के लगभग 1500 बच्चे शामिल हुए. स्कूल की ओर से ही सर्वश्रेष्ठ 70 विद्यार्थियों का चुनाव किया गया. ये बच्चे शनिवार को भागलपुर में प्रभात खबर की ओर से आयोजित समारोह में सम्मानित हुए.
Also Read: मौसम की मार से बेहाल अन्नदाता, राहत के लिए अधिकारियों को सिस्टम चेक करने की जरुरत- जीवेश रंजन सिंह
बच्चों के सवाल पर खुद से क्यों न हो सवाल
ऐसा नहीं कि बच्चों ने केवल कार्यक्रम के दौरान अपनी बात रखी, कमोबेश सबने कैनवास पर भी दिल की बात बड़ी ही साफगोई से खींच दी है. इसे देखने और उनके सवालों पर मंथन करने की जरूरत है. तमाम सरकारी व गैर सरकारी कवायद के बाद भी आज कई ऐसी बातें हो जाती हैं, जो दिल को दुखा जाती हैं. यह जानते हुए भी कि इनके खात्मे के बिना बेहतरी की कल्पना बेमानी है, सोच का दायरा वहां तक नहीं पहुंच पा रहा, यह गंभीर सवाल है.
और अंत में….हाल में भारी संख्या में ऐसे लोग कानून के हत्थे चढ़े, जिन्होंने गलत किया था, बावजूद इसके ऐसे लोगों की आज भी समाज में भरमार है. अगर इनसे मुक्ति चाहिए या फिर बच्चों के सवाल के जवाब देने हैं, तो इनका सामाजिक बहिष्कार ही एकमात्र इलाज है. तभी आनेवाले समय में सूने कैनवास पर सवाल नहीं, खिलखिलाहट का रंग होगा.