3.86 लाख जीरा हो रहे तैयार, गंगा में पलेगी रेहू, कतला और मिरका

मछली की कई प्रजातियां गंगा नदी में पलती थीं. जरूरत से ज्यादा मछली मारने (ओवर फिशिंग) के चलते मछली की कई प्रजातियां या तो समाप्त हो गयीं या समाप्ति के कगार पर है. इसका प्रभाव उन जलीय जीवों पर पड़ रहा है, जिनका मछली ही आहार है. लिहाजा बायो-डायवर्सिटी (जैव-विविधता) को दुरुस्त रखने के लिए गंगा में सात निश्चय योजना-दो के अंतर्गत गंगा नदी तंत्र में नदी पुनर्स्थापन कार्यक्रम के तहत गंगा में दूसरे वर्ष 2024 में भी रेहू, कतला व मिरका मछली को पालने की योजना है.

By Prabhat Khabar News Desk | June 22, 2024 10:44 PM

मछली की कई प्रजातियां गंगा नदी में पलती थीं. जरूरत से ज्यादा मछली मारने (ओवर फिशिंग) के चलते मछली की कई प्रजातियां या तो समाप्त हो गयीं या समाप्ति के कगार पर है. इसका प्रभाव उन जलीय जीवों पर पड़ रहा है, जिनका मछली ही आहार है. लिहाजा बायो-डायवर्सिटी (जैव-विविधता) को दुरुस्त रखने के लिए गंगा में सात निश्चय योजना-दो के अंतर्गत गंगा नदी तंत्र में नदी पुनर्स्थापन कार्यक्रम के तहत गंगा में दूसरे वर्ष 2024 में भी रेहू, कतला व मिरका मछली को पालने की योजना है. इसके लिए हेचरी में इसका जीरा (मछली का बच्चा) तैयार किया जा रहा है. जिला मत्स्य विकास पदाधिकारी कृष्ण कन्हैया ने बताया कि वित्तीय वर्ष 2024-25 में तीन लाख 86 हजार जीरा गंगा में गिराया जायेगा. इसके लिए सुलतानगंज या कहलगांव में से किसी एक जगह चिह्नित की जायेगी. बिहपुर के हेचरी में जीरा तैयार किया जा रहा है. पिछले वर्ष 2023 में चार लाख जीरा गंगा में डाला गया था. उससे पहले वर्ष 2022 में सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ रिसर्च की ओर से दो लाख जीरा डाला गया था. उन्होंने बताया कि 15-20 वर्ष पहले गंगा में मछली की कई प्रजातियां पायी जाती थीं. लेकिन ओवर फिशिंग के चलते कई प्रजाति समाप्त हो गयी. मछली की अनवांटेड प्रजाति भी पायी जाने लगी है. इसी वजह से यह योजना लायी गयी, ताकि मछलियों की संख्या बढ़े और जैव-विविधता की रक्षा हो सके.

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