भागलपुर: तीन जनवरी 2016 की भागलपुर की शाम थी और जिसे शायरी के गुलदस्ते से सजाया था मशहूर शायर व हिंदी फिल्मों के गीतकार डॉ राहत इंदौरी ने. प्रभात खबर के आमंत्रण पर भागलपुर आने पर जब उनसे पूछा गया गया कि भागलपुर तो पहले भी आये थे और कई वर्षों के बाद अब आये हैं, तो कैसा महसूस कर रहे हैं. उन्होंने कहा था कि हां…भागलपुर तो पहले भी आया हूं. मैंने जब सबसे पहले भागलपुर का नाम सुना था, तो बहुत ही खतरनाक फसाद के बाद. लेकिन अब भागलपुर को यहां के बौद्धिक व जहीन लोगों के लिए जानता हूं, जो कविता और शेरो-शायरी के प्रेमी हैं. अब तो इस शहर को मैं शायरी के जरिये ही जानता हूं, जो दिल को छू लेता है.
प्रभात खबर के शाम-ए-महफिल कार्यक्रम में डॉ इंदौरी ने अना, इश्क, और खुलूस को जोड़ते हुए एक से एक बेहतरीन शेर-गजल सुनाया, तो मां, बेटी, बूढ़े, युवा, बेटे के रिश्तों पर आधारित प्रस्तुति देकर आंखों के कोरों को नम कर दिया था. टाउन हॉल में इस शहर के कविता-शायरी प्रेमियों ने तालियों से उनका खूब उत्साह बढ़ाया था.
भारत और पाकिस्तान के बीच खटास पर जो उन्होंने शायरी पढ़ी, उसे भागलपुर ने आज भी याद रखा है. राहत साहब ने कुछ यूं शेर सुनाया था ‘जो तौर है दुनिया का उसी तौर से बोलो, बहरों का इलाका है जरा जोर से बोलो, दिल्ली में हमीं क्यों बोलें अमन की बोली, यारों कभी तुम भी तो लाहौर से बोलो.’ लगभग साढ़े तीन घंटे तक चले इस कार्यक्रम में उनके साथ मुन्नवर राणा भी थे. इस दौरान श्रोताओं की कुर्सियों पर जमावट ऐसी कि कोई अंतिम दौर तक बाहर नहीं जाना चाह रहे थे.
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एक बेहतरीन चित्रकार, शायरी की धारा में कैसे बह गये के सवाल पर उनका कहना था कि कैनवास पर ब्रश चलानेवाला कलाकार और कागज पर शायरी लिखनेवाला शायर दोनों उनके अंदर एक साथ चलता है. इनमें शायरी लिखनेवाला शायर आगे बढ़ जाता है.
उनका मानना था कि बिहार में उर्दू शायरी व साहित्य पर जिस तरह काम हो रहा है, वह मिसाल है. कहीं भाषा पर सवाल उठता है, तो समझिये कि यह सियासी मामला है.प्रोफेसर होने के नाते डॉ इंदौरी का मानना था कि हमारे बच्चे इसलिए भाषा से दूर जा रहे हैं कि वह सोचते हैं कि इसे पढ़ने से क्या होगा. पॉलिसी बनानेवालों को भाषा से जीवन-यापन के साथ रिश्ता बनाना चाहिए.
डॉ इंदौरी को आज के फिल्मी गीतों पर एतराज था और पुराने गीतों की गहराई के खो जाने का गम भी. उनका कहना था कि पहले गीत कहानी का हिस्सा हुआ करता था. अब गीतों का कहानी से ताल्लुक नहीं रहा. जो काम साहिर लुधियानवी, शैलेंद्र, मजरूह सुलतानपुरी और आनंद बख्शी सरीखे लोग कर गये, वह अब नहीं होंगे.
( भागलपुर से संजीव की रिपोर्ट )
Posted by : Thakur Shaktilochan Shandilya