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Ramadan: बरकतों और अल्लाह की रहमतों का मुकद्दस महीना है रमजान

Ramadan 2024 सैयद शाह इंतेखाब आलम शहबाजी हुजूर मियां ने कहा-रमजान माह में रोजे मोमिनों पर फर्ज हैं और तरावीह पढ़ना सुन्नत है

By RajeshKumar Ojha | March 12, 2024 3:37 PM
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Ramadan 2024 खानकाह-ए-पीर शाह के 15वें सज्जादानशीन सैयद शाह फखरे आलम हसन ने कहा-बरकतों और अल्लाह की रहमतों का मुकद्दस महीना रमजान शुरू हो गया है. अल्लाह से नजदीकी बनाने, गुनाहों को माफ कराने के लिए इस महीने लोग ज्यादा से ज्यादा इबादतों में मशगूल रहते हैं. माह-ए-रमजान के मुबारक मौके पर उलेमा मुस्लिमों से बुराइयों से बचने, नेकी और इंसानियत पर चलने, अल्लाह से लौ लगाने की हिदायत करते हैं.

ईमान वालों पर रोजे फर्ज किए गए हैं. रमजान के महीने में लोग खास इबादत करते हैं. गुनाहों से तौबा मांगते हैं. यह वो पाक महीना है, जिसमें कुरान नाजिल हुआ. माह-ए-रमजान में तीन अशरे होते हैं. पहले 10 दिन रहमत, दूसरे 10 मगफिरत और आखिरी 10 दिन जहन्नुम से आजादी के लिए खास इबादतें की जाती हैं. रोजा हमें भूखे-प्यासे और आर्थिक रूप से कमजोरों के प्रति हमदर्दी का जज्बा जगाता है. इस महीने की जाने वाली इबादतों से बंदा अल्लाह के नजदीक पहुंचता है.

रोजा मोमिनों पर फर्ज और तरावीह पढ़ना सुन्नत है

खानकाह-ए-शहबाजिया के सज्जादानशीन सैयद शाह इंतेखाब आलम शहबाजी हुजूर मियां ने कहा-रमजान माह में रोजे मोमिनों पर फर्ज हैं और तरावीह पढ़ना सुन्नत है. रमजान के महीने में की जाने वाली इबादतों से खुश होकर अल्लाह अपने बंदों पर बरकतों और रहमतों की बौछार करता है. तरावीह पूरे महीने पढ़ने से ही मुकम्मल सवाब मिलता है. रमजान वह मुकद्दस महीना है, जिसमें इंसान ग्यारह महीनों में किए गए गुनाहों को इबादत के जरिए माफ करा सकता है. रमजान के तीनों अशरों और तरावीह की खास अहमियत है.

 रमज़ान के महीने में ज्यादातर लोग अपने माल की जकात अदा करते हैं, जिससे गरीब, कमजोर और बीमार की मदद होती है. इसी तरह रमजान में सदका-ए-फित्र (रमजान के महीने में दिया जाने वाला दान ) भी अदा करना जरूरी होता है. पैगंबर हजरत मुहम्मद सअव ने फरमाया है कि सदका-ए-फित्र रोजेदार को बुरी बातों से पाक करता है. ईद की नमाज़ से पहले-पहले सदक़ा-ए-फ़ित्र अदा करना जरूरी है.

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