पति की मौत के बाद बेटा-बहू ने प्रताड़ित कर ठुकराया, रेल पुलिस ने दिया मां का दर्जा, करते हैं सेवा
बड़े लाड़-प्यार से बेटे को पाला था. जीवन भर उसके लिए कष्ट झेलती रही. 12 साल पहले पति की मौत हो गयी तो उम्मीद थी कि इकलौता बेटा ख्याल रखेगा. लेकिन बेटे से वृद्ध मां का बोझ नहीं झेला गया. बेटे-बहू ने उसे दर-दर की ठोकर खाने के लिए घर से निकाल दिया. लेकिन जब जिगर का टुकड़ा पराया हो गया तो सुलातानगंज के आरपीएफ व जीआरपीएफ कर्मियों ने उसे 'मां' बना लिया.
बड़े लाड़-प्यार से बेटे को पाला था. जीवन भर उसके लिए कष्ट झेलती रही. 12 साल पहले पति की मौत हो गयी तो उम्मीद थी कि इकलौता बेटा ख्याल रखेगा. लेकिन बेटे से वृद्ध मां का बोझ नहीं झेला गया. बेटे-बहू ने उसे दर-दर की ठोकर खाने के लिए घर से निकाल दिया. लेकिन जब जिगर का टुकड़ा पराया हो गया तो सुलातानगंज के आरपीएफ व जीआरपीएफ कर्मियों ने उसे ‘मां’ बना लिया.
यह कहानी है सुलतानगंज प्रखंड के गनगनिया की पार्वती देवी की. पार्वती देवी पिछले छह साल से वर्दी वाले बेटों के सहारे जिंदगी काट रही है. वह आरपीएफ व जीआरपी कर्मियों को बेटा कह कर पुकारती है और वह यहां पुलिस की मां के नाम से जानी जाती है. वह कहती है अब घर जाने की इच्छा भी नहीं होती है. पुलिस वाला बेटा मुझे खाना देता है. बीमार होने पर पुलिस बेटा ही दवा लाकर देता है. हर पुलिस कर्मी मेरा बेटा है.
पार्वती देवी कहती है 12 वर्ष पहले पति सरयुग यादव की मौत हो गयी थी. पति की मौत के बाद इकलौता बेटा और पतोहू प्रताड़ित करने लगे. तीन बेटी भी है. कभी-कभी वे स्टेशन पर ही आकर मिलकर चली जाती हैं. बेटी के यहां रहना नहीं चाहती हूं. पार्वती देवी के गांव के लोग बताते हैं बेटा-पतोहू की प्रताड़ना से तंग आकर यह इसने घर छोड़ दिया. इसका बेटा बाहर कमाता है. गांव वालों ने कई बार इसे घर ले जाने का प्रयास किया, लेकिन मारपीट के डर से यह जाना नहीं चाहती है.
गांव वाले बताते हैं कि स्टेशन पर गांव के किसी को देख वह अपने घर के बारे में पूछ लेती है. बेटे-बहू की खैरियत भी पूछती है. वह कहती है बेटा-पतोहू को परेशानी नहीं हो, इसलिए घर छोड़ दिया. इसे चार पोते भी थे. एक की दुर्घटना में मौत हो गयी थी. जिसके बारे में सुनकर वह कई दिनों तक विलाप करती रही थी.
POSTED BY: Thakur Shaktilochan