17.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

Sangeet: कोसी के जय झा से पहले संजीव लहरा चुके हैं परचम, संगीत के क्षेत्र में मिथिला को मिल चुके हैं तीन पद्म श्री

Sangeet: अभी रियलिटी शो सारेगामापा में सहरसा के जय झा धमाल मचाये हुए हैं. एक गरीब घर में जन्मे जय ने लाखों युवाओं को बेहतर करने की प्रेरणा दी है, लेकिन क्या आपको पता है कि इससे पहले दिग्गज कलाकारों के बीच सुपौल के संजीव झा ने अपनी गायिकी से धूम मचा रखी थी. जी हां हम बात कर रहे हैं सुपौल के संजीव की, जो एकाएक सोशल मीडिया पर चर्चित चेहरे के रूप में सामने आये हैं. आइए जानते हैं कि मिथिला में कैसे संगीत की सरिता अनवरत बहती रही है…

राजीव झा, सुपौल. मिथिला के कण-कण में संगीत (Sangeet) का वास है. पंडित रघु झा, मांगनि खबास, पंडित रामचतुर मल्लिक, विंध्यवासिनी देवी, शारदा सिन्हा, उदित नारायण, मैथिली ठाकुर, जय झा, संजीव झा, कुंज बिहारी सहित अन्य गायकों ने अपनी आवाज से मिथिला को एक नयी पहचान दिलायी है. यही कारण है कि अब आम जन भी कहने लगे हैं कि मिथिला के कण-कण में संगीत है. संगीत के क्षेत्र में अब तक मिथिला के तीन लोगों को ‘पदम श्री मिले हैं. इसमें विंध्यवासिनी देवी, शारदा सिन्हा व उदित नारायण शामिल हैं. मां सीता व कवि कोकिल विद्यापति की उर्वर भूमि न सिर्फ अपनी मधुर वाणी के लिए, बल्कि संगीत की धुन के लिए भी जानी जाती है.

अलग रस, ताल और राग को दिया जन्म

कोसी-कमला-वागमती की धारा ने सप्त स्वर, तीन ताल, 22 श्रुतियों से एक अलग रस, ताल और राग को जन्म दिया. मिथिला में विद्यापति समारोह में आये गांव के युवा को भी लोग तबले की धुन पर ताल देते देख सकते हैं. कटिहार के रविंद्र-महेंद्र की जोड़ी ने अपने समय में तहलका मचा दिया था. उन्होंने ममता गाबय गीत फिल्म में भी बेहतर संगीत दिया था. उनकी पौत्री आज सारेगामापा में जज की कुर्सी पर बैठी है. कभी सहरसा के मायानंद मिश्र की आवाज के हजारों दीवाने थे. दरअसल, देश में ऐसी कोई जगह नहीं, जहां आम आदमी संगीत इतने चाव से सुनता हो. यही कारण है कि यहां के युवा मिथिला को कभी बेसुरा नहीं होने देते.

मिथिला के संगीतकारों की विशेषता

लोक संस्कारों में देवी-देवताओं के स्तुतिगीतों के साथ, पूजा स्थलों, शुभ संस्कारों से संबंधित गीत से निकलते स्वर लहरियां आंचलिकता के रंग में रंगे हैं. संगीत की हर विधा और शैली को अपनाकर उसमें मिथिला का अलग रंग भरना मिथिला के संगीतकारों की विशेषता रही है. महाकवि विद्यापति लोक देश की विभिन्न भाषाओं के आदि रचनाकार हैं. महाकवि विद्यापति की रचना बाल विवाह व समाज में फैले कुरीतियों को दूर करने में सार्थक साबित हुई. विश्व में मिथिला की संस्कृति को गौरव के रूप में देखा जाता है. यही कारण है कि मिथिला में ठुमरी, कजरी, चैती, पूरबी, भैरवी, होली, झूमर, मलार, सोहर, समदाउन आदि ऐसे लोक गीत हैं, जिन्हें अपनी अलग शैली के लिए जाना जाता है. इसमें लोक तत्व के साथ ही शास्त्रीय संगीत की गरिमा भी समाहित है.

राज दरबारों का है बड़ा योगदान

राय बहादुर बाबू लक्ष्मी नारायण सिंह ऐसे घराना के संरक्षक व पोषक माने जाते हैं. इस घराना का मुख्य गायन शैली ख्याल एवं ठुमरी के साथ पखावज वादन था. इस घराना में दो विख्यात कलाकार हुए. जिसमें मांगन खबास व द्वितीय रघु झा थे. इनके कई शिष्य हुए. जो मिथिला संगीत परंपरा का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं. मैथिली लोक गायिका विंध्यवासिनी देवी को 1974 में पद्मश्री सम्मान, शारदा सिन्हा को 1991 में पद्मश्री एवं 2018 में पद्म भूषण तथा उदित नारायण को वर्ष 2009 में पद्मश्री, 2016 में पद्म भूषण से सम्मानित हो चुके हैं.

संजीव की आवाज के कायल रहे हैं दिग्गज कलाकार

सुपौल जिले के राघोपुर प्रखंड अंतर्गत मोतीपुर गांव के संजीव झा 1996 में सा-रे-गामा पा में अपनी गायन शैली के लिए क्वार्टर फाइनल तक का सफर तय किया था. उस वक्त अनु मलिक, जतीन ललित, नदीम श्रवण व सोनू निगम जज हुआ करते थे. संजीव ने किशोर दा की आवाज में आपके अनुरोध पे मैं ये गीत सुनाता हूं गाकर जजों का दिल जीत लिया था. एक सुखी संपन्न परिवार के संजीव झा 1989 में अपना घर परिवार छोड़ महानगरी की ओर महज डेढ़ सौ रुपया लेकर विदा हुए. प्रभात खबर से बातचीत में संजीव ने बताया कि जब वे मुंबई स्टेशन पहुंचे तो वहां का दृश्य देख थोड़ी देर के लिए उनका कदम आगे बढ़ने से ठहर गया. लेकिन दिल में कुछ करने की तमन्ना थी. जिसके कारण वे पैदल ही वहां से निकल पड़े.

Also Read: Bhagalpur News: कुप्पाघाट के संत स्वामी सत्यप्रकाश बाबा हांगकांग में करेंगे प्रवचन, चार साल पहले ली थी दीक्षा

अंजान शहर में उनके गांव के एक व्यक्ति पुलिस विभाग में नौकरी करते थे, जहां वे लोगों से पुछते-पुछते पहुंचे. उन्होंने खाना खिलाया और एक जगह रहने की व्यवस्था कर दी. उस जगह एक ही कमरा में कई मजदूर रहते थे. किसी तरह एक माह वहां रहे. इसके बाद वे वहां से निकल पड़े और गीत गुनगुनाते रहे. इसी दौरान उन्हें जतिन-ललित के ऑकेस्ट्रा में गाने का मौका मिला. जहां उन्होंने बेहतर प्रदर्शन किया. इसके बाद वे सा-रे-गामा पा में ट्रायल करने लगे. कुछ दिनों के बाद उन्हें मौका मिला तो उन्होंने अपनी गायन शैली के लिए जज के मुरीद बन गये.

उदित नारायण के गाना से मिली प्रेरणा

उदित नारायण के गाना पापा कहते हैं बड़ा नाम करेगा से उन्हें गाना गाने की प्रेरणा मिली. संजीव ने बताया कि अब तक वे पांच बार विदेश में भी अपना प्रदर्शन कर चुके हैं. उनकी बेटी श्रुति भी एक गायिका है. आज वे खुद का श्रुति-संजीव इंटरटेंमेंट ऑकेस्ट्रा चला रहे हैं. अब तो मुंबई में खुद का फ्लैट है. एक बेटी के पिता संजीव अपनी बेटी के गायन से काफी संतुष्ट हैं. कहते हैं कि कलाकार भले ही बूढ़ा हो जाये, लेकिन उनकी कला कभी बूढ़ी नहीं होती.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें