अभिमान से मुक्ति का साधन है श्रीमद्भागवत कथा :आचार्य शुभम रामानुज
कहलगांव खुटहरी काली मंदिर प्रांगण में श्रीमद्भागवत कथा के तृतीय दिवस पर कथा के दौरान आचार्य शुभम रामानुज ने कहा कि अहंकार से प्रत्येक व्यक्ति का विनाश होता है
कहलगांव खुटहरी काली मंदिर प्रांगण में श्रीमद्भागवत कथा के तृतीय दिवस पर कथा के दौरान आचार्य शुभम रामानुज ने कहा कि अहंकार से प्रत्येक व्यक्ति का विनाश होता है. प्राणी को अहंकार नहीं करना चाहिए, क्योंकि समय, सत्ता और संपत्ति कुछ भी स्थिर नहीं रहने वाली है. न तो समय का अहंकार करना चाहिए, न सत्ता का अहंकार होना चाहिए और न ही संपत्ति का. सदैव भगवान का स्मरण करते रहना चाहिए.जो कुछ प्राप्त है भगवान की कृपा से पर्याप्त है. अभिमान में किसी का अपमान नहीं करना चाहिए, क्योंकि यह सबसे बड़ा अपराध है. भगवान स्वयं अपने मुख से कहते हैं कि एक बार कोई हलाहल विष पी जाए, तो बचा सकता हूं. जल में डूब रहा हो, तो मैं बचा सकता हूं. अग्नि में जल रहा हो, तो मैं बचा सकता हूं, लेकिन यदि कोई व्यक्ति संत, ब्राह्मण, गुरु का यदि अपमान करता है, तो मैं उस भक्त को बचाने में समर्थ नहीं हूं. अभिमान से मुक्ति का एकमात्र साधन है श्रीमद् भागवत कथा. विदुर जी का प्रसंग श्रवण कराते हुए महाराज जी ने यही उपदेश दिया कि हमारा भी भाव विदुर जैसा यदि हो जायेगा, तो प्रभु हमारे भी घर आकर के प्रसाद पाकर हमारे घर को धन्य करेंगे और हमको स्वीकार करेंगे. जब तक हमारे जीवन में संतोष रूपी धन नहीं आ जाता, तब तक चाहे जितना हम धन कमा ले, यश काम ले हम इस संसार के सबसे बड़े गरीब कहलाते हैं. जिस दिन हमारे अंदर संतोष आ जायेगा कि प्रभु की कृपा से जो प्राप्त है, वही पर्याप्त है, तो इस संसार के सबसे अमीर हम कहलायेंगे. इस कलयुग में जीव मुक्त होना चाहता है, तो भगवान का नाम ही एक ऐसा संसाधन है, जिससे प्रभु को प्राप्त कर सकता है. कहते हैं कि कलयुग केवल नाम अधारा सुमिर-सुमिर नर उतरहि पारा.
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